Wednesday, March 2, 2011

आईये! आज बात करते हैं राजनीति की.....
अज़ीज़ बर्नी

पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की तिथियों की घोषणा कर दी गई है, जिसके अनुसार पश्चिम बंगाल में 18, 23, 27 अप्रैल 2011 असम में 4 और 11 अप्रैल 2011, तमिलनाडू , केरल में 13 अप्रैल 2011 में वोट डाले जाने हैं। अगर पांडुचेरी के चुनावों पर मुस्लिम वोट बैंक की दृष्टि से बहुत अधिक ध्यान न दें तो भी शेष चार राज्यों में चुनावों के महत्व को समझा जा सकता है। असम में लगभग 33 प्रतिशत मुसलमान हैं, अर्थात प्रत्येक 3 में से एक वोटर मुसलमान हैं। जबकि पश्चिम बंगाल और केरल में यह अनुपात लगभग 25 प्रतिशत है, अर्थात हर चार में से एक वोटर मुसलमान है। तमिलनाडू में यह अनुपात ज़रा कम है वहां मुसलमानों की संख्या 5.6 प्रतिशत है, फिर भी इस राज्य मंे मुसलमानों के वोट को महत्वहीन करार नहीं दिया जा सकता। अब अगर हम इन चारों राज्यों की विधानसभाओं में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व पर नज़र डालें तो पश्चिम बंगाल में 295 में केवल 44 अर्थात 14 प्रतिशत, असम में कुल 126 में केवल 22 अर्थात 17 प्रतिशत और केरल की कुल 140 सीटों में 16 अर्थात 11 प्रतिशत इसी तरह तमिलनाडू में 234 में केवल 8 अर्थात 3 प्रतिशत मुस्लिम प्रतिनिधि हैं। विधानसभा अथवा संसदीय क्षेत्रों का जिस तरह परिसीमन होता है उसमें इस बात को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि जिसकी जितनी आबादी है उसको उसी अनुपात से संसद या विधानसभा में प्रतिनिधित्व मिल जाएगा, इसलिए अगर उपरोक्त राज्यों में से कुछ ऐसे चुनाव क्षेत्रों को चिन्हित कर लिया जाये जहां मुसलमान निर्णायक संख्या में मौजूद हैं, वे जीत सकते हैं तो भी इस बात को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि उन राज्यों में मुसलमानों की जितनी आबादी है, उन्हंे अपने अपने राज्यों में उसी अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो जायेगा।
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर नज़र डालंें तो पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की स्थिति को सबसे कमजोर ठहराया गया है। अगर मुसलमानों के हालात को बेहतर बनाने के कारणों पर विचार करें तो लंबी अवधि से जिन बिन्दुओं पर ध्यान दिलाया जाता रहा है, वह हंै शैक्षिक पिछड़ापन और नौकरियों का प्राप्त न होना। और भी कारण हंै, परन्तु जिन कारणों पर सबसे अधिक गुफ्तगू की जाती है, वह यही है कि मुसलमान शैक्षिक दृष्टि से बहुत पिछड़े हैं और रोजगार के मामले में भी यही तर्क दिया जाता है कि अगर उचित शिक्षा ही प्राप्त नहीं करेंगे तो रोजगार किस तरह उपलब्ध होगा। यहां अगर रोजगार का अर्थ सरकारी नौकरी समझा जाये तो स्थिति और भी चिंताजनक नज़र आती है। सरकारी नौकरियों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व इतना कम क्यों है, अगर केवल इसी विषय पर गुफ्तगू करेंगे तो बाकी सभी पहलूओं पर रोशनी नहीं डाली जा सकेगी। फिर भी इतना उल्लेख कर देना अनुचित नहीं होगा कि उच्च शिक्षा का न होना तो एक कारण है ही, परन्तु दूसरा और प्रमुख कारण उनके साथ किया जाने वाला भेदभाव भी है। आईए ज़रा शेष दो कारणों पर विचार करें अर्थात शैक्षिक पिछड़ेपन और रोजगार का प्राप्त न होना, अब यहां रोजगार का अर्थ सभी प्रकार के रोजगार की प्राप्ति है तो यह मसला केवल मुसलमानों के साथ ही नहीं है, अन्य समुदायों के लोग भी शैक्षिक पिछड़ेपन के शिकार हैं और नौकरियों का प्रश्न उनके सामने भी है, परन्तु हम यहां केवल उपरोक्त चार राज्यों के चुनाव तथा मुसलमानों की समस्याओं को लेकर गुफ्तगू का इरादा रखते हैं, बाकी विषयों पर फिर कभी चर्चा की जायेगी।
शैक्षिक पिछड़ेपन की समस्या एक दिन में हल नहीं हो सकती, लंबा समय दरकार है। इसी तरह रोजगार का मामला है, राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर रोजगार के अवसरों में वृद्धि होगी तो इस समस्या के हल की गुंजाईश सभी के लिए निकलेगी। इस में मुसलमानों के लाभांवित होने का रास्ता भी निकल आएगा। लेकिन हम इस समय बात करना चाहते हैं राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर और वह इसलिए कि सभी प्रकार की समस्याओं का हल किसी न किसी तरह राजनीति से जुड़ता है। भारतीय जनसमुदाय के जो वर्ग ऐसे हैं, जिन्हें राजनीतिक प्रतिनिधित्व, राजनीतिक संरक्षण, राजनीतिक महत्व प्राप्त है, उनके सामने यह समस्याएं होते हुए भी इतनी कठिन नहीं होतीं, जितनी की मुसलमानों के लिए हैं। अर्थात शैक्षिक पिछड़ेपन का अगर वह शिकार हैं तो उन पर ध्यान देने वाला राजनीतिक नेतृत्व कोई न कोई ऐसा रास्ता निकाल ही देता है जिससे उनके लिए यह रोजगार का मसला उतना कष्टदायक सिद्ध नहीं होता। केंद्रीय तथा राज्य सरकारों की अनेकों स्कीमें ऐसी होती हैं, जिनमें सरकारी सहायता तथा बैंकों से कर्ज लेकर अपना कारोबार शुरू किया जा सके। इससे लाभान्वित वही होते हैं जिसके पास कोई राजनीतिक सहारा है। राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हो तो प्राईवेट सैक्टर में भी और साधारण शिक्षा प्राप्त करने पर भी कहीं न कहीं रोजगार का बंदोबस्त हो ही जाता है। ऐसी छोटी मोटी नौकरियों की सरकारी स्तर पर भी कमी नहीं है। जो कम पढ़े-लिखे लोगों को प्राप्त हो जाती है या हो सकती है। अब ऐसा भी नहीं है कि मुसलमान इस श्रेणी में भी न आते हों। उनमें शिक्षा की इतनी कमी हो कि वह तृतीय तथा चतुर्थ ग्रेड की सरकारी नौकरियां भी प्राप्त न कर सकें या निजि सैक्टर में उन्हें औरों की तरह अवसर न मिल सके। हम आज यह गुफ्तगू इसीलिए करना चाहते हैं कि यह तो आपके लिए संभव नहीं है कि उपरोक्त राज्यों में आप अपनी आबादी के अनुपात में उम्मीदवारों का चयन कराने में सफल हो जायें और उनमें भी ऐसे लोग चुनकर पहुंच जायें जो इस कौम की समस्याओं के समाधान में पूर्ण रूचि ले सकें, पूरी ईमानदारी से काम कर सकें, लेकिन एक काम तो ऐसा है जो आप कर सकते हैं। इसलिए आज के लेख में हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि अपने मतों के अनुपात को अपनी राजनीतिक शक्ति में किस तरह परिवर्तित किया जाए आज इस पर विचार करना है आपको। यह राजनीतिक शक्ति आपको किस तरह प्राप्त होगी, कहां किसके साथ जाने से प्राप्त होगी, किन प्रतिनिधियों के द्वारा प्राप्त होगी, किस पार्टी पर भरोसा करके प्राप्त होगी इस की समीक्षा करना शुरू करें। यद्यपि यह काम बहुत पहले हो जाना चाहिए था, परन्तु आज से भी हो जाये तो मतदान की तिथि में अभी इतना समय है कि आप किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं। अलग-अलग राज्यों में आपकी पसन्द अलग-अलग हो सकती है। अब यह देखना आपका काम है कि कहां आपकी राजनीतिक शक्ति किसके साथ खड़े होने में आपका भला है और यह देखना भी आवश्यक है कि वह आपकी राजनीतिक शक्ति को स्वीकृति देगा या नहीं । भावनाओं में आकर किया गया कोई भी फैसला आपकी राजनीतिक शक्ति को बेअसर कर सकता है। हमारा वोट न तो किसी की दोस्ती पर निछावर कर देने के लिए होना चाहिए, न किसी से दुश्मनी निकालने का हथियार। यह खैरात में दिये जाने के लिए भी नहीं है और बख्शिश प्राप्त करने के लिए भी नहीं हैं। आज ही आपको यह ध्यान में रखना होगा कि किन किन समस्याओं का सामना आपको करना होता है, किन किन कारणों के आधार पर ठोकरें खाते फिरते हैं, आज अगर आप अपने मतों का प्रयोग दोस्ती या दुश्मनी के लिए करते हैं, किसी को भेंट देने या बख्शिश पाने के लिए करते हैं तो आपके वोट का जो बदला आपने खुद तय किया है, समझ लिजिए कि उसी समय वो आपको मिल गया।
यह तो आपको अच्छी तरह अंदाजा है ही कि राजनीतिक नेतृत्व, राजनीतिक शक्ति, राजनीतिक हैसियत न होने के कारण हमें किन किन समस्याओं का सामना करना होता है इसलिए हर कदम बहुत सोच समझकर उठाने की आवश्यकता है। यही एक अवसर आपके पास होता है जब आप अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कोई रणनीति तैयार कर सकतेे हैं। एक वोट का अर्थ आप अपनी समस्याओं के समाधान की ओर एक कदम आगे बढ़ने के रूप में भी हो सकता है और आपकी राह में कांटे बिछाने की सूरत में भी। आपका यह वोट किस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए है यह सोचना होगा। जरा सी चूक आपके वोट का उद्देश्य परिवर्तित कर सकती है और इस नाजुक मोड़ पर यह भी समझना होगा कि राज्यों के यह चुनाव केवल उस राज्य के रहनेवालों के भाग्य का ही निर्णय करेंगे इसलिए वह सोचें कि उन्हें क्या करना है, ऐसा नहीं है। आप यह सोचकर असंबद्ध न रहें कि न तो आप उस राज्य के मतदाता हैं और न राज्यों में रहने वालों की समस्या से आपका कोई संबंध है। सबको...जो जहां भी है, जिस हैसियत में भी है मिल बैठकर सोचना होगा कि कहीं से भी किसी तरह भी एक चिराग रोशन तो हो। समस्याओं के समाधान की शुरूआत कहीं से तो हो। देखिए कौन आपकी समस्याओं के समाधान में आपके लिए कितना कारगर सिद्ध हो सकता है। परन्तु एक बात का ध्यान रखें, आप किसी का विश्वास उसी समय प्राप्त कर सकते हैं जब आप उस पर भरपूर विश्वास करें। कोई आपकी जरूरतें तभी पूरी कर सकता है जब आप उसकी जरूरत बन जायें। जब उसे लगे कि आपके बिना सत्ता में आना संभव नहीं है और आप पर पूर्ण विश्वास किया जा सकता है तब ही आपके और उसके बीच एक ऐसा संबंध स्थापित हो सकता है कि कल आप पूरे विश्वास के साथ अपनी समस्याओं के समाधान के लिए उससे सम्पर्क कर सकते हैं। कदम कदम पर नित दिन एक नई समस्या आपके सामने होती है। धार्मिक मदरसों के विरूद्ध मोर्चाबंदी की जा रही है, उनकी रक्षा का प्रश्न है, आपको जरूरत है ऐसे सच्चे और हमदर्दों की जो इस मामले में कारगर साबित हो सकें। आप साम्प्रदायिक भेदभाव का शिकार हैं। ऐसे धर्मनिरपेक्ष चेहरे जिनके साथ आपने विश्वास का रिश्ता कायम कर लिया है, आप उनके दरवाजे तक पहुंच सकते हैं। पूरे अधिकार के साथ उनसे बात कर सकते हैं कि यहां केवल भेदभाव के आधार पर आपका अधिकार हनन किया जा रहा है। सामाजिक न्याय केवल एक शब्द नहीं है, बल्कि समाज में सभी प्रकार के अन्यायों से छुटकारा पाने के लिए आपको ऐसे न्यायप्रिय नेताओं की आवश्यकता होगी, जो हर स्तर पर आपको न्याय दिला सके। अब यह न्याय आपको नौकरी के मामले में भी दरकार है और शिक्षा प्राप्ति की प्रक्रिया में भी दरकार है, सामाजिक दुर्दशा दूर करने के लिए दरकार है या फिर वह जो बिन किये अपराधों की सजा पाने के लिए मजबूर हो गए हैं, उन्हें न्याय दिलाने के लिए भी दरकार है। इस सब के लिए रास्ता तो राजनीति के दरवाजे से ही होकर गुजरता है और वह राजनीति जो कल आपके भाग्य का फैसला करेगी, आज आपकी चैखट पर है। उनके सामने अपनी समस्याऐं रख दें, अगर आपको लगता है कि वह आपकी समस्याओं के समाधान के प्रति गंभीर हो सकते हैं, आपके लिए लाभप्रद हो सकते हैं तो उन्हें केवल एक वोट ही न दें, बल्कि उनके साथ विश्वास का रिश्ता भी स्थापित करें और एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि यह चुनाव हर स्तर पर साम्प्रदायिक तनाव दूर करने का माध्यम भी बनें। इसलिए कि अभी तक के चुनाव साम्प्रदायिक रूप धारण कर लेते रहे हैं, जहां हर तरह से आप ही घाटे में रहते हैं और फिर पांच वर्ष तक कदम-कदम पर उस तनाव की कीमत चुकाते रहते हैं। अब चुनाव कम से कम आपकी ओर से साम्प्रदायिक तनाव के नहीं, साम्प्रदायिक सद्भावना की ओर बढ़ते हुए कदम नजर आयें। आपके द्वारा दिये जाने वाला वोट बाकी सभी उम्मीदवारों और पार्टियों पर यह स्पष्ट कर दे कि आपने उसका चयन इसलिए किया है कि आपको इस रूप में अपनी समस्याओं का समाधान नजर आता है। घृणा, नाराज़गी या भेदभाव के आधार पर आप उसे वोट नहीं दे रहे हैं। अगर कोई दूसरा आपका वोट प्राप्त करना चाहता है तो फिर उसे अपने अन्दर वैसे ही गुण पैदा करने होंगे कि वह आपके चुनाव के दायरे में आ जायंे। ऐसी सूरत में वह भी आपके वोट का हकदार हो सकता है और एक बात कम से कम एक राज्य में आपकी पसन्द एक ही हो, ऐसा न हो कि हर सीट पर आपकी पसन्द बदल जाए, इससे आपकी शक्ति बिखर जाएगी। साथ ही पार्टी का चुनाव करते समय यह भी ध्यान रहे कि वह सत्ता में आ सकती है या सत्ता में भागीदार बन सकती है या नहीं।
मैं जानता हूं कि मेरा यह लेख पश्चिम बंगाल के अलावा अन्य राज्यों में हर उस दरवाजे तक सीधे नहीं पहुंच सकता जिनके लिए लिखा जा रहा है। हां परन्तु आप चाहें तो यह संभव हो सकता है। आप में से जो इस लेख को उनकी भाषा में अनुवाद करके पहंुंचा सकते हैं, वह ऐसा करें तो यह उद्देश्य पूरा हो सकता है जो इस लेख का सारांश मस्जिदों, मदरसों के माध्यम से या फोन पर अपनी गुफ्तगू के दौरान पहुंचा सकते हैं तो यह काम आसान हो सकता है। वैसे मेरा एक प्रयास यह भी है कि क्यों न हम ऐसे अवसरों का प्रयोग उर्दू के विकास के लिए करें, सोचें अगर ऐसा संभव हो जाये तो कितना अच्छा है।

1 comment:

Ravi Kumar said...

बर्नी जी आपका लेख पढ़कर दुख हो रहा है कि आप देश को धर्म में बांट रहे हैं।
हर जगह मुस्लिम मुसलमान मुस्लिम मुसलमान और कुछ भी नहीं।
भारत में तालीम का अधिकार सबके है लेकिन आप मुस्लिम की शिक्छा पर जोर दे रहे हैं।
अंतिम वाक्य में भी मस्जिद और मदरसे का ही जिक्र किया किसी गुरुद्वारे मंदिर या चर्च का जिक्र नहीं किया।
क्यूं मंदिर मस्जिद हिंदू मुस्लिम के नाम पर देश को बांट रहे हैं।