Tuesday, November 25, 2008

धमाके से तीन दिन पहले ही आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया
इकबालिया बयान भी मौजूद था, बस रिक्त स्थानों में नाम भरने थे

साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने अपने बयान में कहा है की ऐ टी एस ने मानव अधिकारों की उपेक्षा करते हुए हिरासत के बीच उस पर जो अत्याचार किए, उस में यह शामिल था की उसे एक अश्लील बात चीत की सी डी सुनवाई गई। इस के अतिरिक्त उसे नग्न करने की धमकी दी गई और गालियाँ भी दी गई। हम पिछले दो दिनों से हिरासत में लिए गए आरोपियों को दी जाने वाली पीडाओं की दास्ताँ बयान करते रहे हैं। पाठकगन, हमारे देशवासी भाई, बहन और श्री लाल कृष्ण अडवानी जी समझ सकते हैं की पुलिस हिरासत में लिए जाने के बाद मुसलमान आरोपियों के साथ कितना असभ्य व्योहार किया गया। हम ने बहुत ध्यान के साथ कुछ बातें प्रस्तुत करने का प्रयास किया, वह भी इस प्रकार की जितनी गन्दगी उस कार्य में थी उस का इशारा तो मिल जाए परन्तु उसे खुल कर बयान नहीं किया जाए। हम इस मामले में लाल कृष्ण अडवानी जी के विरोधी नहीं हैं, पुलिस हिरासत में आरोपियों के साथ अमानवीय बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए परन्तु साथ ही हम यह भी कहना चाहेंगे की राष्ट्रिय स्तर के नेताओं को इस मामले में सभी के पक्ष में आवाज़ उठानी चाहिए। ऐसा नहीं के साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के मामले में तो आसमान सर पर उठा लिए जाए और उस से १०० गुना अधिक अत्याचार जब दूसरे आरोपियों पर हो तो आँखें बंद कर ली जायें परन्तु इन नेताओं की आँखें खोलने को लिए हम एक वाक्य अवश्य कहना चाहेंगे की अगर अब तक आप पुलिस कार्यवाही में हस्तक्षेप न करने के कारन से मौन रहे तो अब अडवाणी जी ने जो राह दिखाई है कुछ क़दम आप भी उस पर चलें और विभिन्न बम धमाकों में बंदी बनाये गए आरोपी जो अपने न किए पापों का दंड भुगत रहे हैं, और उन के साथ किए जाने वाला व्योहार बिल्कुल अवर्णीय और निंदनीय है, आप उन के पक्ष में आवाज़ उठायें। अब जब की असली अपराधियों के चेहरे से नकाब उठने लगी है तो चाहे ऑपेरशन बटला हाउस का मामला हो, चाहे मक्का मस्जिद हैदराबाद का, उन सैंकडों आरोपियों की खैर ख़बर लें की वे किस हाल में हैं और उन के साथ कितना अत्याचार हो रहा है। यदि उन का दोष साबित नहीं हो पाया है और उन के विरुद्ध इतने सबूत नहीं मिले हैं की उन्हें अधिक हिरासत में रखा जाए तो उन का रिहाई का प्रबंध करें। यदि साध्वी प्रज्ञा, प्रोहित और उपाध्याय के लिए भारत के सब से बड़े वकील उपलब्ध हो सकते हैं तो कोई तो हो जो उन का भी हाल पूछे। यदि वे निर्दोष हैं तो उन्हें भी न्याय मिले। कम से कम अब तो किसी को यह भय नहीं होगा की जामिया मिलिया इस्लामिया के वाइस चांसलर प्रोफ़ेसर मुशीरुल्हासन के कानूनी सहायता उपलब्ध कराने पर कुछ हिंदू संघटन क्रुद्ध हो गए थे, अब किस मुहँ से वह आप के द्बारा कानूनी सहायता उपलब्ध कराने पर प्रशन उठाएंगे। अब तो वह स्वयं भी वही कहने लगे हैं जो प्रोफेस्सर मुशीरुल हसन और लोकतान्त्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाले न्याय प्रिय कहते रहे हैं। पुलिस हिरासत में हिंसा की घटनाएं और भी हैं जो आगे आने वाली कड़ियों में पाठकों और राष्ट्रिय नेताओं की सेवा में प्रस्तुत की जायेंगी। इन में वह पात्र भी शामिल हैं जो बंदी बनाये जाने के दौरान पीडाएं सहन करने वाले आरोपियों ने रोजनामा राष्ट्रिय सहारा को जेल की सलाखों के पीछे से लिख कर भेजे हैं और अपनी कहानी में बयान किया है की किस प्रकार षड़यंत्र कर के उन्हें फंसाया गया। हम यह नहीं कहते की कौन दोषी है और कौन निर्दोष, परन्तु हमारे कानून का कहना है की भले ही १० दोषी छूट जाएँ परन्तु एक निर्दोष को दंड न मिले। क्या हमारा अमल इस के अनुसार है? आज की इस कड़ी में प्रस्तुत कर रहे हैं हम १२ मार्च १९९३ को मुंबई में हुए बम धमाकों के आरोपियों से जुड़ी कुछ घटनाएं जिस में उन का कहना है की केवल पुलिस ने ही नहीं, टाडा जज तक उन के साथ न्याय नहीं किया और उन्हें षड़यंत्र द्वारा फंसाया गया।
१२ मार्च १९९३ को हुए मुंबई बम धमाकों के आरोपियों का कहना है की इन के विरुद्ध षड़यंत्र का उत्कर्ष है। इस केस में आरोपियों को बुनयादी सुरक्षा प्रदान करने की साधारण परम्परा पर अमल नहीं किया गया और टाडा न्यायाधीश ने पुलिस द्वारा प्रताड़ित करने से सम्बंधित शपथपत्र को रद्द कर दिया। इस से स्पष्ट होता है की पुलिस कर्मियों, राजनीतिज्ञों और टाडा न्यायाधीश ने आरोपियों के विरुद्ध आरम्भ से ही भेद भाव किया। मुंबई बम धमाकों कर षड़यंत्र रचा गया ताकि दूसरों द्वारा किए गए अपराध के लिए निर्दोषों को दोषी ठहराया जाए। इस को अतिरिक्त भारत में कानून व संविधान की सत्ता को पामाल किया जाए।
कानून के उल्लंघन के कई उदहारण प्रस्तुत किए जा सकते हैं। वादी ने वादामाफ गवाह के PW2 के दावों पर बहस की है. वरली चार्जशीट में पृष्ठ 515 पर जो साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है वह ग़लत है। इस में पुलिस अधिकारी ने लिखा है की वादा माफ़ गवाह को 10 मई 1993 को गिरफ्तार किया गया लेकिन दस्तावेज़ में 16 अप्रेल 1993 दर्ज है। बम धमाकों के अन्य मामलों कर उल्लेख करते हुए चार्जशीट में कहा गया है की मुंबई के सहार अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बमबारी का प्रयास किया गया था। चार्जशीट में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है की मुंबई पुलिस बम निरोधी दस्ते के प्रमुख जाधव ने 12 मार्च 1993 को सहार अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का दौरा किया परन्तु धमाकों के कुछ दिन पश्चात् जाधव ने जो रिपोर्ट दर्ज की उस में सहार हवाई अड्डे के दौरे से सम्बंधित कोई बात नहीं बताई गई। तत्पश्चात आरोपियों ने जो इकबालिया बयान दिए हैं, विशेष रूप से डी सी पी संजय पाण्डेय ने जो बयान दर्ज किए हैं, उन में अलग अलग तहरीरें शामिल हैं। सरसरी जायज़ा लेने से ही यह मालूम होता है की यह इकबालिया बयान पहले ही लिख लिए गए थे और बीच में स्थान रिक्त छोड़ दिया गया था ताकि आरोपियों के नाम लिख दिए जाएँ और तत्पश्चात उन से पूछ ताछ की जाए।
एक इकबालिया बयान में जिस पर डी सी पी संजय पाण्डेय ने हस्ताक्षर किए हैं उस में आरोपियों ने इकबालिया बयान से इनकार किया है इस को बावजूद भी इकबालिया बयान आगे बढ़ता जाता है और उस के किरदार के सम्बन्ध में खुलासा पेश किया जाता है। टाडा की धरा 15 (A) में बताया गया है की इकबालिया बयान स्वैच्छा से लिया जाए, तो जब एक आरोपी यह बयान देता है की मैं किसी बयान को स्वीकार नहीं करता तो पुलिस अधिकारी ने क्यों इस कार्य को आगे बढाया? इस से यह साबित होता है की यह इकबालिया बयान मन घडत है। शायद पुलिस को बम धमाकों के सम्बन्ध में पहले से सूचना थी। पुलिस स्टेशनों में कई ऐसे रिकॉर्ड मौजूद होने की बात कही गई है जिन में कहा गया है की आरोपियों ने पुलिस को सचेत किया था की मुंबई में बम धमाके करने का प्लान तैयार कर लिया गया है और फ़रवरी 1993 में रायगढ़ जिले में कोंकण साहिल के रास्ते आर डी एक्स का भण्डार लाया जायेगा। पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों में से तीन आरोपियों को बम धमाकों के दिन अर्थार्त 12 मार्च 1993 से पूर्व गिरफ्तार किया था और उन्होंने भी इस बात की पुष्टि की थी। तत्पश्चात जब धमाके हुए तो पुलिस ने विभिन्न पुलिस स्टेशनों में दर्ज 27 सी आर को एक विषय के अंतर्गत जोड़ दिया, यह संविधान का खुला उल्लंघन है। चार्जशीट में दावा किया गया है की कई षड़यंत्र एक साथ चल रहे थे। चार्जशीट में कहा गया है की 4-5 षड़यंत्र पर कार्य चल रहा था। अब सवाल उठता है की इन षड्यंत्रों को अलग अलग मामलों के रूप में क्यों नहीं प्रस्तुत किया गया। पुरी दुनिया जानती है की महात्मा गांधी की हत्या के लिए एक से ज़्यादा षड़यंत्र रचे गए थे।
"हे राम " (Hey Raam) नामक एक फ़िल्म भी है, जिसे इंडियन सेंसर बोर्ड ने स्वीकृति प्रदान की है। इस फ़िल्म में अन्य षड्यंत्रों की ओर भी इशारा किया गया है। तो क्या अब न्यायालय के लिए यह उचित था की वह नाथू राम गोडसे के अलावा और लोगों को भी फाँसी पर चढ़ा दे जिन्होंने हत्या का केवल इरादा किया था?
नहीं ऐसा नहीं किया जा सकता तो फिर चार्जशीट में तो फिर चार्जशीट में विभिन्न षड्यंत्रों को क्यूँ जोड़ दिया गया? इस के अलावा जैसा की पहले भी बताया जा चुका है, सी बी आई ने देश के विरुद्ध युद्ध करने का आरोप रद्द कर दिया। आरोपियों पर यह आरोप लगाया गया की उन्होंने बाबरी मस्जिद की शहादत और मुंबई दंगों का बदला लेने के लिए बम धमाके किए। अब हर कोई जानता है की बाबरी मस्जिद की शहादत देश के विरुद्ध अत्याधिक गंभीर अपराध है क्योंकि इस के बाद मुसलामानों का बड़ी संख्या में क़त्ल किया गया। श्री कृष्ण कमीशन रिपोर्ट के अनुसार 1992-93 मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों में पुलिस सांप्रदायिक हो गई और शिव सेना कार्य कर्ताओं की तरह कार्य करने लगी। कमीशन ने यह साहसी रहस्योद्घाटन भी किया है की पुलिस वाले पहले शिव सेना कार्य करता बने हुए थे और एक लोकतान्त्रिक देश की पुलिस का झूठा नकाब ओढे हुए थे। यहाँ सारी मुंबई पुलिस ने संविधान का अपमान किया। मुंबई दंगों में 4000 से अधिक लोग मारे गए जिन में अधिकतर मुसलमान थे। इस के बावजूद बाबरी मस्जिद की शहादत और मुंबई दंगों को आरोपियों पर टाडा के तहत आरोप नहीं लगाये गए। यह अत्याधिक विचारणीय है की मुंबई बम धमाकों की चार्जशीट में कहा गया है की यह धमाके तीन मामलों में तीसरे स्थान पर थे। पहला मामला बाबरी मस्जिद की शहादत और दूसरा मामला मुंबई दंगे थे। इस लिए तीसरे मामले के आरोपियों पर टाडा क्यों लगाया गया जबकि तीसरे मामले के लिए उकसाने वाले पहले और दुसरे मामले के आरोपियों के विरुद्ध मामूली कानूनी धाराओं के अंतर्गत मुक़दमा चलाया जा रहा है?
अगर जैद ने बकर के पिता की हत्या कर दी और बकर ने जैद के रिश्तेदार की हत्या कर के और चार्जशीट में उस को वास्तविक प्रेरक करार दिया गया तो क्या यह सम्भव है की जैद और बकर के विरुद्ध केवल इस लिए अलग अलग कानूनों के अंतर्गत मुक़दमा चलाया जाए क्योंकि जैद एक हिंदू है और बकर एक मुसलमान? क्या यह सम्भव है की भारतीय संविधान की धरा 307 (हत्या का प्रयास) के अंतर्गत आरोपी माने गए व्यक्ति को धारा 302 (हत्या) के अंतर्गत भी आरोपी माना जाए। मुंबई बम धमाकों की चार्जशीट यह नहीं बताती की 12 मार्च 1993 को हुए धमाकों के पीछे षड्यंत्रों का बड़ा सिलसिला था। चार्जशीट में कहा गया है की इन धमाकों से पहले केवल एक षड़यंत्र नहीं था अपितु एक साथ कई षड़यंत्र रचे गए थे। चार्जशीट में यह नहीं बताया गया है की एक समय में कई षड़यंत्र एक अकेले षड़यंत्र का भाग थे तो सभी आरोपियों को 12 मार्च 1993 को हुए अपराध से क्यूँ जोड़ दिया गया? अगर पुलिस ने यह कहा होता की एक षड़यंत्र के तहत 12 मार्च को अपराध किया गया और दूसरे षड़यंत्र के अंतर्गत अन्य दिनांकों पर धमाकों की योजना बनाई गई थी तो इस के बाद पुलिस को हर षड़यंत्र की पहचान कर के उस से निबटना चाहिए था। अन्य षड्यंत्रों के आरोपियों के विरुद्ध अन्य धाराओं के अंतर्गत केस चलाया जाए क्योंकि उन्होंने जो धमाके करने का इरादा किया था, वे धमाके कभी नहीं हुए।
पुलिस ने बेबस मुसलमानों से हजारों करोड़ रूपये ज़बरदस्ती प्राप्त किए। आरोपियों की हत्या के लिए अपराधियों से सांठ गाँठ की गई। मुंबई बम धमाकों की घटना ज़बरदस्ती वसूली का एक असाधारण मामला है जिस में भारतीय संविधान के रक्षकों ने स्वयं संविधान का उल्लंघन किया और खुले षड़यंत्र के अंतर्गत संविधान से विद्रोह कर के मुसलामानों के साथ बहुसंख्यक वर्ग के मुकाबले पक्षपातपूर्ण कारवाई की यह भारतीय संविधान का खुला उल्लंघन है. हलाँकि संविधान में कहा गया है की जाती पाती, रंग व नस्ल और धर्म के भेद के बिना सभी भारतवासियों को समान अधिकार प्राप्त हैं........जारी

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