Wednesday, April 6, 2011

मालेगांव आरोपियों की रिहाई हुई मुश्किल, बदल गया असीमानन्द का बयान
अज़ीज़ बर्नी

असीमानन्द के बयान का शेष भाग मुझे आज पाठकों की सेवा में पेश करना है, हालांकि यह क्रमानुसार 4 दिन पूर्व ही पाठकों की सेवा में पेश कर दिया जाना चाहिए था, परन्तु क्रिकेट विश्व कप में भारत की शानदार जीत और कुछ अपरिहार्य कारणों से यह सम्भव नहीं हो सका। बयान का आरम्भिक भाग हम 3 अप्रैल 2011 के प्रकाशन में पाठकों की सेवा में पेश कर चुके हैं। आरम्भिक भाग के मुक़ाबले आज का अन्तिम भाग कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, जो हम आज के लेख के आरम्भिक वाक्यों के बाद आपकी सेवा में पेश करने जा रहे हैं। असीमानन्द ने अपने बयान के आरम्भ में अपने निजी जीवन पर प्रकाश डाला था। कहाँ, किस घर-परिवार में पैदा हुए, बचपन किस तरह बिताया, धार्मिक विचारधारा ने कब उनके दिल व दिमाग़ में जगह बनाई, स्वामी विवेकानन्द के व्यक्तिव से प्रभावित होना, आदिवासियों की सेवा भावना का दिल में पैदा होना, बचपन ही से संघ परिवार से संलग्नता, फिर उच्च शिक्षा प्राप्त करके नियमित रुप से उनके आन्दोलन में शामिल होना। इक़बालिया बयान का शेष भाग पेश करने से पूर्व इस आरम्भिक जीवन के बारे में कुछ कहना चाहेंगे। अभी हम इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहते कि असीमानन्द ने 18 दिसम्बर 2010 को मैजिस्ट्रेट दीपक दबास की अदालत में जो बयान दिया, वह बिना किसी दबाव के था या दबाव के तहत दिया गया। जहां तक आरम्भिक जीवन के हालात का सम्बंध है तो उसमें पुलिस की क्या रुचि हो सकती है और अगर यह बयान दबाव में दिलवाया गया, क्या पुलिस को इस बात की आवश्यकता थी कि असीमानन्द के बयान में उनके जीवन के आरम्भ के वह पहलू सामने रखे जिनका उनके केस से कोई सम्बंध साबित नहीं होता, सिवाए इसके कि संघ परिवार से उनके नज़दीकी सम्बंध रहे। लेकिन 2004 से पूर्व के नज़दीकी सम्बंध इस प्रकार के नहीं थे कि उन्हें आपŸिाजनक कहा जा सके और वे तमाम बातें जो इक़बालिया बयान के आरम्भिक भाग में थीं, पुलिस की सूचनाओं से कहीं अधिक ख़ुद असीमानन्द की जानकारी पर ही आधारित नज़र आती हैं। अपने जीवन की आरम्भिक शिक्षा प्राप्त करने, आदिवासियों की सेवा में काम करने के सिलसिले में वह कहां कहां गए, कितने दिन कहां रुके, यह इस दौरान पुलिस की रुचि का विषय नहीं हो सकता था, इसलिए कि न तो इस दौरान किसी आपराधिक गतिविधि से उनका कोई सम्बंध रहा और न इस बीच कोई ऐसा व्यक्ति उनके जीवन में आया, जिससे कि पुलिस ने उन पर नज़र रखनी शुरु की होती। जनवरी 2003 के बाद की जो घटनाएं मिलती हैं, जब उनकी साध्वी प्रज्ञा सिंह से मुलाक़ात हुई और यह बात उन्हें ज्यंतीभाई केवट द्वारा मालूम हुई कि साध्वी प्रज्ञा सिंह उनसे मिलना चाहती है, इससे पूर्व अक्तूबर 2002 तक आदिवासियों की सेवा के लिए 9 दिन तक डांग ज़िला में उन्होंने शबरी कुंभ के नाम से कैम्प चलाया, तब तक ऐसी किसी भी संदिग्ध गतिविधि से असीमानन्द की संलग्नता ज़ाहिर नहीं होती। अक्तूबर 2002 के ”शबरी कुंभ आयोजन“ के बीच ही आर.एस.एस के उन सदस्यों से असीमानन्द की मुलाक़ात नज़र आती है, जिनसे आगे चल कर बम धमाकों का सम्बंध जुड़ता है, लेकिन अक्तूबर 2002 से पूर्व तक पुलिस द्वारा असीमानन्द पर नज़र रखे जाने का कोई कारण नहीं मिलता। इससे पूर्व के जीवन के बारे में उन्होंने जो भी बताया है यह सब कुछ असीमानन्द की स्वंय की जानकारी पर ही आधारित नज़र आता है।
अब प्रस्तुत है असीमानन्द के बयान का शेष भाग, उसके बाद गुफ़्तगू का सिलसिला जारी रहेगाः
”उसके 2-3 महीने बाद सुनील का फिर फ़ोन आया कि दोबारा कहा, भरत भाई का फ़ोन आया है सुनील आपसे फ़ोन लगाने का प्रयास कर रहा है लेकिन फोन नहीं लग रहा और एक दो दिन में वो आपके पास आकर मिलेगा। दो तीन दिन बाद सुनील मेरे पास आया और उसके साथ में दो लड़के थे जिसके नाम राज और मेहुल थे। राज और मेहुल शबरी धाम में सुनील के साथ पहले भी तीन चार बार आ चुके थे। सुनील ने मुझे बताया कि अजमेर में जो बम कांड हुआ है वो हमारे लोगों ने ही किया है। सुनील ने यह भी बताया कि वो भी वहां पर था। मैंने सुनील से पूछा कि आपके साथ और कौन-कौन थे। सुनील ने मुझे बताया कि हमारे साथ और दो मुस्लिम लड़के थे। मैंने सुनील जोशी से यह पूछा कि मुस्लिम लड़के तुम्हें कैसे मिले तो सुनील जोशी ने कहा कि लड़के इंद्रेश जी ने दिये थे। मैंने सुनील जोशी को बताया कि इंदे्रश जी ने अगर आपको मुस्लिम लड़के दिये हैं तो आप जब पकड़े जायेंगे तो इंद्रेश जी का नाम भी आ सकता है। मैंने सुनील जोशी को कहा कि उसको इंदे्रश जी से जान का ख़तरा है। मैंने सुनील जोशी को यह भी कहा कि तुमने मुस्लिम से काम करवाया है तो तुम्हें मुस्लिम से भी अपनी जान का ख़तरा है। मैंने सुनील जोशी को कहा कि तुम कहीं मत जाओ यहीं पर रुको। सुनील जोशी ने मुझे बताया कि उसे देवास, मध्य मप्र में कुछ काम है और वो जल्दी जाकर जल्दी वापस आ जायेगा। सुनील ने कहा कि राज और मेहुल को वो वहीं पर छोड़ कर जायेगा। सुनील जोशी ने यह भी बताया कि राज और मेहुल बड़ौदा बैस्ट बैकरी केस में भी वांटेड हैं। मैंने सुनील को कहा कि बैस्ट बैकरी केस भी गुजरात का है और शबरी धाम भी गुजरात में है इसलिए इनको यहां रखना ठीक नहीं है। इसलिए यहां से इन्हें ले जाओ। सुनील जोशी उन दोनों को लेकर दूसरे दिन देवास मप्र निकल गया। इसके कुछ दिन बाद भरत भाई का फ़ोन आया कि ख़बर मिली है कि सुनील जोशी का मर्डर हो गया है। मैंने उसी दिन कर्नल पुरोहित को फोन किया और बताया कि सुनील जोशी नाम के हमारे लड़के का मर्डर हो गया है जो अजमेर बम ब्लास्ट में शािमल थे। मैंने कर्नल पुरोहित को कहा कि तुम तो इंटेलिजेंस में हो तो पता करके बताओ कि सुनील जोशी का मर्डर किसने किया है। कर्नल पुरोहित ने मुझे बताया बाद में कि सुनील जोशी ने पहले भी मर्डर किया था और ऐसा लगता है कि उसी का बदला उससे लिया गया है।
2005 में शबरीधाम में इंद्रेश जी जो आरएसएस की कार्यकारिणी समिति के सदस्य हैं हमें मिले थे। उनके साथ में आरएसएस के सभी बड़े पदाधिकारी थे। आरएसएस की सूरत की बैठक के बाद सभी शबरीधाम के दर्शन के लिए आये थे। उसके बाद पंपा सरोवर में जहां शबरी कुंभ का आयोजन हो रहा था। वहां एक टैंट में इंदे्रश जी हमको मिले थे। उस समय सुनील जोशी भी वहां पर थे। इंदे्रेश जी ने हमको बताया कि आप जो बम का जवाब बम की बात करते हो वह आपका काम नहीं है। आरएसएस से आपको आदेश मिला है कि आदिवासियांें के बीच में काम करो बस उतना ही करो। उन्होंने और बताया कि आप जो सोच रहे हैं हम लोग भी इस विषय पर सोचते हैं। सुनील को इस काम के लिए जिम्मेदारी दी गई है। इंद्रेश जी ने कहा कि सुनील को जो मदद चाहिए वो हम करेंगे।
मुझे यह भी पता चला था कि सुनील जोशी भरत भाई के साथ नागपुर में इंद्रेश जी से मिले थे और इंदे्रश जी ने भरत भाई के सामने सुनील को 50 हज़ार रुपये दिये थे। कर्नल पुरोहित ने भी एक बार मुझे बताया था कि इंदे्रश जी आई.एस.आई के एजेंट हैं और इसके पूरे डाकुमैंट्स उनके पास हैं। लेकिन कर्नल पुरोहित ने मुझे वह डाॅकुमैंट्स कभी नहीं दिखाए।
अप्रैल 2008 में भोपाल में अभिनव भारत की एक बड़ी मीटिंग हुई थी। उस मीटिंग में मैं, प्रज्ञा सिंह, भरत भाई, कर्नल पुरोहित, दयानंद पांडे, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी, हिमानी सावरकर, तपन घोष, डा॰ आर.पी सिंह, राजेशवर सिंह आदि लोग मौजूद थे। उस मीटिंग में मैंने बम का जवाब बम से देने का प्रस्ताव रखा था। वहां अभिनव भारत की एक बाॅडी बनाई जिसमें प्रेज़िडेंट आदि का चुनाव हुआ। जनवरी 2007 में भी अभिनव भारत की एक मीटिंग में, मैं कर्नल पुरोहित से मिला था। पुणे में भी कर्नल पुरोहित के साथ मैं एक मीटिंग में उपस्थित था।
अक्तूबर 2008 में संदीप डांगे का फोन मेरे पास आया मैं उस समय शबरी धाम में ही था। संदीप ने मुझे बताया कि वह वियारा वास स्थान पर है और मैं शबरी धाम में आना चाहता हूं और दो चार दिन रुकना चाहता हूं। मैंने उसे बताया कि मैं अभी नाडियाड जाने की तैयारी में हूं और मेरे न होने से उसका वहां रहना उचित नहीं होगा। संदीप ने कहा कि आप अगर नाडियाड जा रहे हैं तो हमें भी लेकर चलिए हम बड़ौदा तक आपके साथ जायेंगे। मैं अपनी सैंट्रो कार में शबरी धाम से वियारा बस स्टैंड पर आया। संदीप के साथ एक और आदमी था और वो दोनोें बड़ी जल्दी और हड़बड़ी में मेरी गाड़ी में बैठ गये। उनके पास दो-तीन वज़न वाले सामान के बैग थे। मैंने उनसे पूछा कि कहां से आ रहे हो। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र से आ रहे हैं। वो ठीक से बात नहीं कर पा रहे थे। मैं उनको लेकर राजपीपला हो कर बड़ौदा राजपीपला रोड के जंक्शन तक लेकर आया। वो लोग जंक्शन पर उतर गये। मुझे बाद में एहसास हुआ कि वो दोनों मालेगांव बम ब्लास्ट के अगले दिन ही मुझे वहां मिले थे। संदीप के साथ में जो दूसरा आदमी था मुझे बाद में मालूम हुआ कि उसका नाम रामजी था।
बम ब्लास्ट की हर घटना से पहले या एक दो दिन बाद सुनील मुझे बताता था कि यह हमारे लोगों ने किया है लेकिन मालेगांव, 2008 के बम ब्लास्ट तक सुनील का मर्डर हो चुका था और मुझे बाद में पता चला कि मालेगांव 2008 का बम ब्लास्ट भी हमारे लोगों ने ही किया होगा। जब तक सुनील जिंदा था सब बम कांड हम लोगों ने मिलकर किये लेकिन अब मुझे लगता है कि हमने जो भी किया वो ग़लत किया। मुझे अन्दर से बहुत पीड़ा हो रही थी। इसलिए मैंने यह क़बूल किया है। मैं और कुछ नहीं कहना चाहता।“
उपरोक्त इक़बालिया बयान में जो बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, वह हैं सुनील जोशी की बम धमाकों से संलग्नता। मालेगांव बम धमाकों की अभियुक्त और राम सिंह से मुलाक़ात का उल्लेख और सुनील जोशी के हवाले से आर.एस.एस के वरिष्ठ सदस्य इंद्रेश की चर्चा। जब इंद्रेश का नाम सामने आया था, तब संघ परिवार के ख़ेमें में ज़बरदस्त हलचल पैदा हो गई थी। यह मालेगांव बम धमाकों की जांच कर रहे शहीद हेमन्त करकरे के द्वारा ही सामने आ गया था, जिसमें आई.एस.आई से उनके सम्बंधों का हवाला भी दिया गया था। यही बात असीमानन्द के इक़बालिया बयान में सामने आई, इसलिए इक़बालिया बयान के इस भाग में इन्द्रेश की चर्चा एक ऐसा पहलू है जिस पर आगे भी बहस की ज़रुरत बाक़ी है। दूसरी महत्वपूर्ण बात सुनील जोशी का अजमेर दरगाह, मक्का मस्जिद बम ब्लास्ट और समझौता एक्सप्रेस धमााकों में उनके अपने लोगों का हाथ बताया जाना, अर्थात संघ परिवार से उनके सम्बंध का इशारा। सुनील जोशी की हत्या की जा चुकी है, सुनील जोशी की हत्या किए जाने की आशंका स्वामी असीमानन्द को भी थी और उन्होंने सुनील जोशी को इस ख़तरे से आगाह भी किया था। असीमानन्द ने सुनील जोशी को इन्दे्रश से अपनी जान का ख़तरा बताया था और उन मुस्लिम लड़कों से भी जो बम धमाकों में शामिल थे और इन्द्रेश के द्वारा भेजे गए थे। अब तीन बातें अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जो इस बयान के बदलने का कारण भी हो सकती हैं। सुनील जोशी का उपरोक्त बम धमाकों में लिप्त होना, बाद में उसकी हत्या हो जाना, असीमानन्द के अनुसार सुनील जोशी की जान को इन्द्रेश से ख़तरा होना। ज़ाहिर है जांच इसी दिशा में आगे बढ़ती है और जो बातें असीमानन्द ने कही हैं वे साबित होती हैं तो संदेह के दायरे में इन्दे्रश को आने से रोका नहीं जा सकता। ज़ाहिर है संघ परिवार के लिए यह कोई साधारण बात नहीं है। अब अगर यह बयान स्वामी असीमानन्द ने पहले किसी दबाव के बाद दिया था तो उसकी स्थिति एक दम भिन्न हो जाती है और इसी तरह अगर बाद में दिया गया बयान दबाव के कारण से है तो भी इस केस पर गम्भीर प्रभाव पड़ता है। मालेगांव बम धमाकों के सिलसिले में रिहाई की आस लगाए मुस्लिम युवकों के लिए दिक्कत पैदा हो सकती है। यह क़ानूनी पहलू है, जिस पर हम सुप्रसिद्व अधिवक्ता मजीद मेनन से गुफ़्तगू कर रहे हैं, उनसे बातचीत के बाद एक बार फिर इस विषय पर और इस इक़बालिया बयान से सम्बद्ध पहलुओं पर गुफ्तगू की जाएगी, लेकिन आज के लेख में केवल इतना ही।
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3 comments:

ms khan said...

janab burney sahab.assalmu alaikum sabse pahle me aapko mubarakbaad deta hoon.mubarakbaad isliye nahi ki aseemaanand ne apna bayaan badal liya mubarakbaad isliye ki aapne jis himmat aur zazbe ka muzahra karke kom ko raah dikhaai.jis tarah buri taqten watan me dehsatgardi ko sirf aur sirf humse jodkar dekhne ka jo riwaz ban gaya tha us riwaz ko aapne apni mehnat se chaknachur kar diya.kom ke logon ko aankh me aankh daalkar baat karne ki taqat aapne di hai iske liye aapka jitna shukriya kiya jaaye kam hai.rahi baat aseemanand ke bayaan badalne ki to yah to hona hi tha kyuki aseemanand ke bayaan se sachhai jo samne aa rahi thi.wo kahte hain na HUM AAH BHI BHARTE HAIN TO HO JAATE HAIN BADNAAM WOH KATL BHI KAR DEIN TO KOI JIKR NAHI HOTA.allah se dua hai ki watan se dehsatdardi aur dehsatgardon ka safaya ho jaye.aur allah aapki umar me barqat ata kare.

हमारीवाणी said...

प्रिय हमारीवाणी सदस्य,

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हमारीवाणी said...

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