Monday, October 25, 2010

‘‘इंद्रेश’’ का नाम तो हेमंत करकरे अपनी ज़िन्दगी में ही बता गए थे!
अज़ीज़ बर्नी

हमारे देश हिन्दुस्तान के न्यायालय या संसद ने कब संघ परिवार को इस बात के योग्य क़रार दिया कि देश मेें कौन देशप्रेमी है और कौन देशद्रोही, इस का प्रमाण पत्र उन से लेना होगा। इंद्रेश देशपे्रमी हैं, आज यह प्रमाण संघ परिवार के अनेकों दिग्गज बांट रहे है। तरूण विजय, राम माधो, निर्मला सीता रमन जैसे लोग बार बार यही दोहराते चले आरहे हैं कि इंद्रेश देशपे्रमी हैं। उन पर यह आरोप गलत लगाया गया है। संभवत वह हिंदुस्तान के इतिहास और संघ परिवार के रोल को भूल रहे हैं। इसलिए हमें ऐसे तमाम लोगों को फिर से याद दिलाना होगा और उनके चरित्र की रौशनी में यह भी निश्चित करना होगा कि आजादी के मसीहा महात्मा गाॅंधी देश प्रेमी थे या उनकी हत्या करने वाला संघ परिवार का प्रोडक्ट नाथू राम गौडसे । हम जब भी देश से प्रेम करने वालों की सूची बनाते हैं तो उन में मोहन दास करमचंद गांधी,सुभाष चंद्र बोस,चंद्रशेखर आज़ाद और शहीद अश्फाकुल्ला खां...... जैसे नामों कों स्थान मिलता है। क्या संघ परिवार चाहता है कि अब नाथू राम गोडसे और इंद्रेश जैसे लोगों का नाम भी इस सूची में शामिल कर लिया जाए। हम जानते हैं 26 नम्वबर 2008 को हिन्दुस्तान पर होने वाले आतंकवादी हमले का सत्य क्या है,षडयंत्र रचने वाले कौन थे, षडयंत्र का आधार क्या था और इस को अंतिम रूप किस प्रकार दिया गया, यह रहस्य कभी जनता के सामने नहीं आएगा। एक के बाद अनेक रहस्यों का पर्दा फाश होता रहेगा, एक के बाद एक नाम सामने आते रहेंगे और हम उन्ही नामों मे उलझे रहेगें या इस कोशिश में लगे रहेंगे कि आखिर उनका इस्तेमाल करने वाला कौन था पाकिस्तान या अमेरिका इससे आगे बढ़कर कुछ सोचेगें ही नहीं। यही कारण है कि हम अंतिम परिणाम पर कभी नहीं पहंुच पायेंगे और यदि किसी परिणाम को अंतिम परिणाम सिद्व करके सामने रख भी दिया गया तो वह पूरी तरह सत्यता पर आधारित नहीं होगा, यह कम से कम हमारी सोच से दूर की बात है, और यह सोच हमारे अनुभवों के आधार पर है, कोई कोरी कल्पना नहीं, इस लिए कि हम ने आज़ाद हिंदुस्तान में पहली बार सत्तारूढ़ दल से लेकर विपक्ष और उनके समर्थकों,यानी कुल संसद सदस्यों लोकसभा और राज्यसभा सहित सभी कोे किसी एक आतंकवादी के बयान पर एक राय होते हुए पहली बार देखा था और यदि किसी ने थोड़ी सी भी इस आतंकवादी के बयान पर आलोचना करने की कोशिश की तो संसद के अंदर ही नहीं बाहर भी उसे विरोध का सामना करना पड़ा। इस आतंकवादी हमले से पूर्व जिस प्रकार साध्वी प्रज्ञा सिंह को बचाने के लिए एक अभियान चलाया जा रहा था, उसी प्रकार आज इंद्रेश को देशप्रेमी सिद्व करने या दूसरे शब्दों में बचाने का अभियान चलाया जा रहा है, ताकि दबाव बनाया जा सके उन सब पर जिन के पास ऐसे सबूत हैं, जिन से यह सिद्व होता है कि इंद्रेश का संबंध अजमेर बम धमाकों से है। बात बहुत पुरानी नहीं है, अभी दो वर्ष का समय ही बीता है। पुस्तकालयों में देखें तो दर्जनों समाचारपत्र के तराशे मिल जायेगें, और यह सत्यता सामने आजायगी कि जिस से मालेगाॅंव बम विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, दयानंद पांडे, कर्नल पुरोहित और कैप्टन उपाध्याय के नाम सामने आने पर, जो लोग आग बबूला हो गए थे आज फिर उसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले शोर मचा रहे हैं। उस समय भी लाल कृष्ण अडवानी,साध्वी प्रज्ञा सिंह के समर्थन में न केवल भाषण देकर माहौल बना रहे थे कि उसके खिलाफ अपराध सिद्व करने वालों को प्रभावित किया जाए, बल्कि उन्होंने प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से साधवी के समर्थन में मुलाकात भी की थी। और जहां तक आज दरगाह में हुए अजमेर बम विस्फोटों के संबंध में राजस्थान एटीएस के द्वारा इंद्रेश का नाम लिये जाने की बात है तो यह स्पष्टीकरण तो अपने जीवन में शहीद हेमंत करकरे ने उसी वक्त कर दिया था, हम अपने पुराने लेखों और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित समाचारों के तराशे आज भी सामने रख सकते हैं, जिन से यह स्पष्ट हो जाएगा कि इंद्रेश का नाम आज पहली बार सामने नहीं आया है।
‘‘30 अक्तूबर 2008-इधर बीजीपी हिन्दू संगठनों के नाम आने पर बोखलाहट में आ गई और खुलेआम अभियुक्तों के बचाव में खडी हो गई। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष राज नाथ सिंह ने मीडिया को निशाना बनाते हुए कहा कि मीडिया इस पूरे मामले को अरूषी हत्या कांड की तरह पेश कर रहा है। फिर प्रज्ञा सिंह के बचाव में कहा कि जो लोग संस्कृति और राष्ट्रीयता पर विश्वास रखते है, वह आतंकवाद में लिप्त हो ही नहीं सकते। उन्होंने एटीएस के नारको टेस्ट पर प्रशन चिन्ह लगाते हुए कहा कि किसी खतरनाक आतंकवादी को भी इस प्रकार प्रताड़ित नहीं किया जाता, लेकिन एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने सारे अभियुक्तों पर मकोका लगा दिया, वह किसी भी राजनीतिक दबाव से परे रहे इसी बीच हिंदू महासभा ने कर्नल पुरोहित और दूसरे अभियुक्तों को न्यायिक सहायता देने की घोषणा की।
15 नवम्बर 2008- राज नाथ सिंह ने इस पूरे मामले को एक बड़ा षडयंत्र कहा। उन्होंने कहा कि मैं पूरी तरह संतुष्ट हूॅं कि साध्वी वगैरह इस षडयंत्र में लिप्त नहीं है। श्री कांत पुरोहित ने समझौता एक्सप्रेस धमाके के लिए आरडीएक्स सप्लाइ किया, यह कहना था एटीएस का।
17 नवम्बर 2008- मालेगाॅव धमाके के तार अजमेर शरीफ और मक्का मस्जिद धमाके से जुडे है- एटीएस ने एक और जानकारी दी।
यानी राजस्थान एटीएस ने आज कोई नया रहस्योद्घाटन नहीं किया है। यह कारनामा तो अपने जीवन में शहीद हेमंत करकरे ही कर गए थे और हमने एटीएस के द्वारा मिली जानकारी को अपने इसी कालम के अन्र्तगत ‘‘मुसलमानाने हिंद-माज़ी, हाल और मुसतक्बिल’’ की 100 वी किशत में प्रकाशित किया था, जिसे आज भी देखा जा सकता है। और हमारे पुराने लेखें से यह पूरे तौर पर स्पष्ट होजाएगा कि जिस प्रकार आज संघ परिवार के लोग आग बबुला हो रहे हैं, इसी प्रकार 17 नवम्बर 2008 को एटीएस के द्वारा अपनी जांच को सामने रखने के बाद शोर मचा रहे थे। 18 नवम्बर 2008 को समाचार पत्रों में प्रकाशित यह समाचार आसानी से देखे जा सकते हैं। राज नाथ सिंह और एल के अडवानी ने एटीएस पर आरोप लगाया कि एटीएस और कांग्रेस में सांठ गांठ है और वह अन प्रोफेशनल ढ़ग से जांच कर रहे हैंै अर्थात यानी उनका यह राग पुराना है।
24 नवम्बर 2008- पुरोहित ने सीबीआई को बयान दिया, वीएचपी लीडर अभिनव भारत के गठन में आगे आगे थे। उन्होंने कहा कि आर एस एस लीडर इंद्रेश कुमार ने आईएसआई से तीन करोड़ रूपये लिए। कल यानी कल 25 अक्तुबर 2010 को अंग्रेजी दैनिक टाइम्स आॅफ इंडिया में प्रकाशित समाचार की ली गई निम्नलिखित चंद पंक्तियां सिद्व करती हैं कि दो वर्ष पूर्व हम ने जिस सच्चाई को सामने रखा था, शहीद हेमंत करकरे ने अपनी छानबीन में जिस सत्यता का पता लगाया था या आज राजस्थान पुलिस और एटीएस जिन सच्चाइयों को समने लारही है यह उसी सच्चाईयों की अगली कडी है। देखें टाईम्स आॅफ इंडिया में प्रकाशित खबरः
यह चार्जशीट राजस्थान एटीएस के द्वारा 2007 अजमेर दरगाह बम धमाका के संबंध में दाख़िल की गई संकेत करती है कि अभियुक्तों ने गुजराती समाज गेस्ट हाउस में ठहरने और सिम कार्ड प्राप्त करने के लिए फ़र्ज़ी पहचानपत्र का प्रयोग किया। चार्जशीट बताती है कि अभियुक्त देवेन्द्र गुप्ता को फर्ज़ी पहचानपत्र और सिम कार्ड हासिल करने के लिए कहा गया था। फ़र्ज़ी दस्तावेजों के आधार पर उस ने पश्चिमी बंगाल के बर्दवान इलाके में ड्राइविंग लाइसेंस लेने के लिए आवेदन किया। उसने दो लाईसेंस प्राप्त किए एक अपने लिए और एक मनोज कुमार के नाम से सुनील जोशी के लिए। इन हीं फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सुनील जोशी के जयपुर में गुजराती गेस्ट हाउस में एक कमरा बुक कराया जहां पर 31 अक्तुबर 2005 को आर एस एस लीडर इंद्रेश कुमार ने एक गुप्त मीटिंग में प्रज्ञा सिंह ठाकुर, सुनील जोशी,राम जी काल सिंगरा,लोकेश शर्मा और संदीप डाँगे से बात की। एटीएस की जांच के दौरान गेस्ट हाउस के प्रबंधन ने दावा किया कि उन के पास जोशी के ड्राइविंग लाईसेंस (फ़र्जी) की प्रमाण के तौर पर फोटो काॅपी सुरक्षित थी। गुप्ता उन्हीं फर्जी पहचान पत्रों का प्रयोग करके 10 सिम कार्ड प्राप्त करने में सफल होगया। इन में से 7 सिम कार्ड वेस्ट बंगाल से और 3 सिम कार्ड झारखंड से खरीदे गए थे। जोशी के ही फर्जी लाईसेंस पर दूसरे अभियुक्त राज जी काल सिंगरा के लिए सिम कार्ड प्राप्त किए गए। जोशी का फोटो नोएडा से संबंध रखने वाले एक योगा ट्रेनर के फोटो से बदल दिया गया और उस का नाम बदल कर बाबू लाल यादव कर दिया गया जिस का संबंध पश्चिमी बंगाल के आसनसोल से था। 29 दिसम्बर 2007 में मध्यप्रदेश में सुनील जोशी की हत्या कर दी गई।
राजस्थान के गृहमंत्री शांती धारीवाल इस बात पर जोर दे रहे हैं कि जोशी की हत्या आर एस एस कार्यकताओं ने की है। जबकि दूसरी ओर मध्य प्रदेश पुलिस मानती है कि उन की हत्या सीमी के समर्थकों ने की है। चार्ज शीट में यह दावा किया गया है कि एटीएस को सुनील जोशी की कुछ डायरियां प्राप्त हुई हैं जिनमें उसके चार साथियों राज,मेहल, घंश्याम और उस्ताद का उल्लेख है। एक पुलिस वाले ने बताया कि सुनील जोशी झारखंड के जमदाता क्षेत्र में आरएसएस का प्रमुख प्रचारक था।
जहां तक मक्का मस्जिद बम विस्फोट का संबंध है तो हम ने स्वयं 7 नवम्बर 2008 को आंधप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस रेड्डी से मिलकर यह निवेदन किया था कि मक्का मस्जिद धमाकों की नए सिरे से जांच की जाए और इस मामले को सीबीआई के हवाले किया जाए। यह खबर 8 नवम्बर 2008 को रोजनामा राष्ट्रीय सहारा - हैदराबाद- के पृष्ठ-4 पर प्रकाशित की गई। इस खबर की कुछ लाईनें एक बार फिर प्रस्तुत है ताकि हमारे पाठक समझ सकें कि आज जो परिदृश्य बदल रहा है उस में उनकी दुआओं, परवरदिगार आलम की इनायतों और रोज़नामा राष्ट्रीय सहारा की कोशिशों की क्या भूमिका है।
ख़बर का तराशाः ‘‘मिस्टर अज़ीज बर्नी ने मुख्यमंत्री वाई एस आर रेडडी से कहा कि वह मक्का मस्जिद बम विस्फोटों के साथ साथ लुम्बिनी पार्क और गोकुल चाट भंडार धमाकों की दोबारा छानबीन करायें। अज़ीज बर्नी ने कहा कि जब नांदेढ़ मालेगाॅव और मोडासा में बम विस्फोट हुए थे तब मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम नौजवानों का नाम उछाल कर उन को षडयंत्र करने वालों के रूप में प्रस्तुत किया गया था, तब भी राष्ट्रीय सहारा ने मामले की छानबीन के बिना निष्कर्ष निकालने की आदत से बचने की बात कही थी। जबकि अब मालेगाॅव और मोडासा बम विस्फोट में संघ परिवार का चेहरा बेनकाब हो गया है और इस के अन्य साथियों की गिरफतारी ने हिन्दू सम्प्रदायिक शक्तियों की देश विरोधी सरर्गमी उजागर कर दी तो ऐसी स्थिति में क्या यह समय का तकाजा नहीं है कि मक्का मस्जिद,गोकुल चाट भंडार और लुम्बिनी पार्क धमाकों की दुबारा छान बीन कराई जाए, ताकि इन धमाकों में शामिल असली चेहरे सामने आ सकें।
विदित हो कि इस मांग के बाद अनेक मुस्लिम नौजवानोें को रिहा कर दिया गया था, जो मक्का मस्जिद बलास्ट के संबंध में गिरफतार किये गए थे।
हम फिर यह स्पष्ट कर देना चाहेगें कि आतंकवाद में शामिल लोगों को केवल और केवल आतंकवादी के रूप में देखा जाए, उन्हें उन के धर्म से या उनके राजनीतिक संबंधों से नहीं जोड़ा जाए, लेकिन अफसोस उस समय होता है कि जब तीन तीन बार देश पर शासन करने वाला राजनीतीक दल ऐसे लोगों के नाम सामने आने पर हंगामा खड़ा कर देता है, 11 अक्टुबर 2007 को दरगाह अजमेर में बम विस्फोट किस का षडयंत्र था,शायद कभी सामने नहीं आता अगर मालेगांव में साध्वी प्रज्ञा सिंह की मोटर साइकिल की तरह यहां घटना स्थल से यह सिम कार्ड प्राप्त न होता। दरअसल हुआ यह कि दरगाह बम विस्फोट में एक बम नहीं फट सका था। इस बम को जब बेकार किया गया तो उसमें विस्फोटक पदार्थों के अतिरिक्त टाईमर डिवाईस के रूप में मोबाइल फोन भी मिला था। जिस बम से धमाका किया गया था उस का सिम कार्ड नम्बर 8991522000005190837 और मोबाईल नम्बर 9931304642 पाया गया। तबाह हुए सिम के आधार पर छानबीन की कारवाई में पता चला कि सिम कार्ड बिहार व झारखंड की मोबाईल कम्पनियों का है। यह सिम रामफर यादव,स्थान कांगोई, पोस्ट महजाम जिला दुम्का के नाम से जारी किया गया था। सिम दुमका के बस स्टैंड पर स्थित मोबाईल केयर नाम की दुकान से खरीदा गया था। वही उस जगह से मिले जिंदा बम से मिले मोबाईल फ़ोन के आधार पर जानकारी मिली कि इस में लगा सिम पश्चिमी बंगाल की मोबाईल कम्पनी ने जारी किया है। सिम का मालिक बाबुलाल यादव पुत्र मनोहर यादव, समध रोड, रूप नारायनपूूर, आसंसोल बर्दवान का पाया गया। बंगाल के चितरंजन से सरगम आडियो नाम की दुकान से खरीदा गया था। छानबीन से ज्ञात हुआ कि यह सिम फर्जी नाम व पते के पहचान पत्र से खरीदा गया था, इसी तरह के 11 सिम खरीदने का रहस्य सामने आया।’’
होना तो यह चाहिए कि बम विस्फोटों की सत्यता का पता लगा लेने पर हम अपनी गुप्तचर संस्थाओं की पीठ थपथपाएं और समझें कि जिन के नामों की पुष्टी हमारी गुप्तचर संस्था एक लम्बी जांच पडताल के बाद सामने रखती है। उन के बचाव में बिना सोच समझे फौरन बयानबाजी न आरंभ की जाए।
जो भी हो इस समय हम भयभीत है अतएव अपने देश की सरकार और गुप्तर संस्थाओं से नम्र निवेदन करना चाहते हैं कि वह 26 नवम्बर 2008 को देश पर हुए सब से बडे आतंकवादी हमले को जे़हन में रखें, उस के कुछ दिन पहले की गतिविधियों को ध्यान में रखे, एटीएस की जांच में सामने वाली घटनाओं को जेहन में रखें, विशेष कर शहीद हेमंत करकरे की भूमिका को सामने रखेें, अभियुक्तों के रूप में सामने आने वाले नामों को जेहन में रखेें, इन नामों के सामने आने पर एक विशेष मानसिकता के राजनीतिज्ञों की प्रतिक्रिया को जेहन में रखें और फिर तैयार रहें कि खुदा न करे हमारे देश को फिर बुरे हालात से न गुजरना पड़े। हम तो बस दुआ ही कर सकते हैं।
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