Monday, September 20, 2010

फैसला तो आए पर फ़ासला न बढ़ने पाए
अज़ीज़ बर्नी

जैसे-जैसे 24 सितम्बर का दिन निकट आ रहा है, लोगों के दिलों की धड़कनें बढ़ती जा रही हैं, कुछ चिंता भी है और कुछ भय भी। आज प्रातः जब दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित ने फ़ोन पर गुफ़्तगू करते हुए यह कहा कि अज़ीज़ भाई आपका अख़्बार बहुत लोकप्रिय है, आपका लेख बहुत पढ़ा जाता है और इस समय शांति और एकता का संदेश घर-घर तक पहुंचना बेहद आवश्यक है, इसलिए मेरा यह निवेदन है कि आप अपने शब्दों में मेरा यह संदेश हर घर तक पहुंचा दें कि हम सब मिलकर शांति व एकता बनाए रखें, अफ़वाहों पर ध्यान न दें, लोग जगह-जगह इकट्ठे होकर इस तरह की बातें न करें, जिससे अफ़वाहें फैलाने वालों को कोई मौक़ा मिले। हमारी अपनी तरफ़ से सुरक्षा व्यवस्था की तैयारी मुकम्मल है, लेकिन जनता और मीडिया के सहयोग के बिना यह कठिन होगा।

बातें और भी हुईं, उनके स्वर और एक एक शब्द से उनकी ज़िम्मेदारी और शांति तथा एकता के लिए चिंता की भावनाओं का एहसास हो रहा था। उनकी हर बात का असल उद्देश्य यही था कि तमाम हिंदू और मुसलमान 24 सितम्बर को बाबरी मस्जिद के स्वामित्व के संबंध में आने वाले फ़ैसले को लेकर क़तई चिंतित न हों। हाईकोर्ट के फ़ैसले के बाद सुप्रीमकोर्ट जाने का मार्ग सभी के लिए खुला है। हां, परंतु कुछ शरारती तत्व ज़रूर माहौल बिगाड़ने का प्रयास कर सकते हैं। हमें उनसे सचेत रहना है, उन्हें असफल बनाना है। मैं उनकी इस भावना का सम्मान भी करता हूं और उनकी राय से सहमति भी रखता हूं।

कल सुबह से ही लगभग सभी टेलीविज़न चैनलों पर और आज सुबह के समाचारपत्रों में मैंने देखा कि दिल्ली की जामा मस्जिद के सामने विदेशी सैलानियों की बस पर हमला किए जाने का समाचार सु़िर्ख़यों में था। निःसंदेह यह ख़बर अनदेखी किए जाने योग्य तो बिल्कुल नहीं थी, इसका प्रसारण किया जाना और प्रकाशित किया जाना आवश्यक था। सरकार के लिए ज़रूर यह एक चिंता की बात थी कि वह समझ ले कि उसकी सुरक्षा व्यवस्था कितनी चुस्त-दुरुस्त है या उसे और अधिक बेहतर बनाने की कितनी आवश्यकता है। साथ ही इस बात के लिए ज़रूर अल्लाह का शुक्र अदा किया जाना चाहिए और चैकस पुलिसकर्मियों की प्रशंसा भी की जा सकती है, परंतु जिस तरह सुबह 11.22 की इस घटना के बाद से देर रात तक इस समाचार के केवल एक ही पहलू को लेकर गुफ़्तगू की जाती रही, क्या उससे पूरे देश में भय तथा आतंक का माहौल पैदा नहीं होगा, जैसा कि मैंने आरंभ में ही कहा कि समाचार अनदेखी किए जाने योग्य नहीं थे, इस पर भरपूर ध्यान देने और सरकार का ध्यान आकर्शित करने की आवश्यकता थी। परंतु ऐसे समाचारों को बहुत अधिक तूल देने का नुक़सान भी हो सकता है। निश्चित ही कुछ शरारती तत्व रहे होंगे, जिनका उद्देश्य माहौल को ख़राब करना ही रहा होगा। यह किसी आतंकवादी संगठन के संगठित षड़यंत्र का भाग नहीं लगता, जैसा कि पुलिस का मानना भी है। फिर भी बीबीसी को इण्डियन मुजाहिदीन की ओर से मिले ई-मेल का समाचार भी चर्चा का विषय रहा। 13 सितम्बर 2008 को दिल्ली में हुए बम धमाकों के बाद से जिस अज्ञात आतंकवादी संगठन इण्डियन मुजाहिदीन का नाम सामने आया था वह एक बार फिर सुर्ख़ियों में नज़्ार आया। हालांकि इस बीच पिछले दो वर्षों में इण्डिण्यन मुजाहिदीन का नाम सुनने को नहीं मिला। जहां तक हमारा मानना है इस नाज़्ाुक समय में बिना पुष्टि किए किसी के द्वारा भी कोई ऐसी बात नहीं कही जानी चाहिए, जिसे धार्मिक परिपेक्ष में देखा जा सके, जिससे किसी विशेष समुदाय की ओर उंगलियां उठाई जा सकें। आतंकवादी कार्यवाही किसी मुसलमान की हो या किसी हिंदू की, ऐसी कोई भी कार्रवाई किसी मुस्लिम आतंकवादी, किसी संगठन की ओर से हो या हिंदू आतंकवादी संगठन की ओर से, पहला प्रयास उसे असफल बनाने का, अपराधियों को गिरफ़्तार करके उन्हें उनके अनजाम तक पहुंचाने का होना चाहिए, न कि उससे कोई ऐसा संदेश जाए कि संकेत किसी विशेष धर्म की ओर है। इस समय रह-रह कर एक प्रश्न हर तरफ़ से मन में उभर रहा है कि क्या फिर 6 दिसम्बर जैसी परिस्थितियां हो सकती हैं। हमें दोनों घटनाओं के अंतर को समझना होगा। यह फ़ैसला अदालत की ओर से आना है और 6 दिसम्बर 1992 को जो कुछ हुआ, वह किसी अदालत की ओर से नहीं था, वह एक भीड़ थी, जिसकी भावनाओं को भड़का दिया गया था और भड़काने वालों का राजनीतिक उद्देश्य जग ज़ाहिर था फिर भी शायद वह लोग भी जो इसका राजनीतिक लाभ उठाना चाहते थे इन आकस्मिक परिस्थितियों के लिए तेयार नहीं थे। जैसा कि मस्जिद की शहादत के लिए ज़िम्मेदार नेताओं का भी कहना था कि उनका इरादा मस्जिद की इमारत को ध्वस्त करने या क्षति पहुंचाने का क़तई नहीं था, लेकिन बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो गये थे और भीड़ को नियंत्रण में रखना कठिन हो गया था। उनकी बात पूरी तरह सच हो या न हो परंतु इस सच्चाई से तो इनकार नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार ने भी यही सोचा था कि मस्जिद की सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं है। आज ख़ुदानख़ास्ता इस फैसले को लेकर किसी भी जगह लाखों लोगों के एकत्र होने की तो कोई संभावना नहीं है, फिर कौन व्यक्ति है जो यह नहीं जानता था कि न्यायालय में चल रहे इस केस का एक दिन फैसला आना है। हमें अर्थात सभी भारतीयों को किसी भी फैसले को खुले मन से स्वीकार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए। हमें अर्थात सभी भारतीयों को यह अधिकार भी प्राप्त है कि फैसले पर संतोष न होने की स्थिति में उसे अपने पक्ष में न पाने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएं और यह तो होगा ही, फैसला चाहे जो भी हो, तब फिर किसी भी नकारात्मक सोच को मन में रखने का कारण क्या है। हां, चिंता की दो बातें हैं कि किसी भी समुदाय की ओर से अदालत का फैसला आने के बाद प्रसन्नता या क्रोध प्रकट करने के लिए निकाली जाने वाली यात्रा क़ानून व्यवस्था की स्थिति को ख़राब कर सकती है और भावनाओं को उत्तेजित करके साम्प्रदायिक टकराव का रूप भी दे सकती है। बस इसी से बचने तथा सावधान रहने की आवश्यकता है। इस समय हर शांतिप्रिय, सहनशील भारतीय को अपने-अपने समुदायों में ज़िम्मेदारों तक पहुंच कर उन्हें इस बात के लिए अनुरोध करना चाहिए कि अपने-अपने स्तर पर वह शांति तथा एकता की अपील करें। उदाहरण स्वरूप मस्जिदों में सभी नमाज़ों के बाद शांति तथा एकता की दुआ हो और हमारे पेशइमाम अपने ख़ुतबों में नमाज़ियों को शांति तथा एकता बनाए रखने और इस संदेश को आगे तक पहुंचाने की भी दरख़्वास्त करें। मुसलमान अपने हिंदू भाइयों के साथ और हिंदू अपने मुसलमान भाइयों के साथ मिलकर एक दूसरे के मन में उठने वाली आशंकाओं को दूर करने का प्रयास करें। हाल ही में मुम्बई में गणेश मूर्ति विसर्जन के समय तक माहौल का शांतिपूर्ण रहना तथा संपूर्ण समारोह का अत्यंत संुदरता के साथ समापन तक पहुंचना एक बड़ी और उत्साहजनक बात कही जा सकती है, क्योंकि इसी दौरान ईदुलफ़ित्र का त्यौहार भी था। महाराष्ट्र तथा गुजरात संवेदनशील राज्य हैं। महाराष्ट्र के लिए ‘गणेश चतुर्थी’ का त्योहार अत्यंत महत्वपूर्ण है। शिवसेना तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को लेकर सदैव चिंता भी रहती है, परंतु जिस प्रकार कहीं कोई अप्रिय घटना घटित नहीं हुई, इसको सामने रख कर यह आशा तो बंधती ही है कि 24 सितम्बर का दिन भी शांति के साथ बीत जाएगा। हां, परंतु देशव्यापी स्तर पर जहां केंद्र सरकार को किसी भी स्थिति से निपटने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा, वहीं राज्य सरकारों को ज़िला तथा क़सबा के स्तर पर पर्याप्त तैयारी रखनी होगी, इस बात का ध्यान रखना होगा कि बड़ी संख्या में जलसे, जुलूस की शक्ल में लोग एक स्थान पर एकत्र न हों। अगर इस बीच कुछ महत्वपूर्ण कार्यक्रमों या सभाओं, यात्राओं तथा सम्मेलनों की अनुमति पहले ही दे दी गई है तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि इसका विषय या विचार व्यक्त करने वालों के भाषण किसी की भी भावनाओं को भड़काने वाले न हों। वैसे सबसे बेहतर स्थिति तो यही होगी कि जनता स्वयं अपने तौर पर यह ज़िम्मेदारी स्वीकार करे कि बिना किसी विशेष आवश्यकता के घर के बाहर जाकर सार्वजनिक स्थल पर इकट्ठा होने से बचें। किसी भी तरह के जलसे जुलूस में भाग न लें, जहां भी इसकी आशंका हो कि इसका प्रभाव ग़लत भी पड़ सकता है उस जगह या उस कार्य से दूर रहें क्योंकि शरारती तत्व ऐसे किसी भी अवसर का लाभ उठा सकते हैं। इन तमाम पेशबंदियों तथा सतर्कता के बावजूद अगर फिर भी कहीं यह दिखाई दे कि कोई जुलूस आयोजित किया जा रहा है, प्रसन्नता प्रकट करने या फैसले से असंतोष होने की स्थिति में नाराज़गी प्रकट किए जाने के साथ कुछ नारेबाज़ी की जा रही है तो आप उसके बीच में न आएं, ख़ामोशी से किसी निकट के सुरक्षित स्थान पर शरण लंे अगर यह संभव हो सके तो अपने घरों के अंदर रहें, प्रशासन को सूचित करें और किसी के उकसाने पर जवाबी कार्यवाही न करें। प्रशासन को सूचना देते समय भी सावधानी के तौर पर केवल एक जगह सूचना दे देना ही प्रयाप्त न समझें, बल्कि एक से अधिक ज़िम्मेदार अधिकारियों तक यह सूचना पहुंचाएं कि आप अमुक क्षेत्र से अमुक व्यक्ति बोल रहे हैं और वहां की स्थिति सरकार तथा प्रशासन के लिए ध्यान देने योग्य है। अविलंब अपने क्षेत्र के पुलिस थानों के नम्बर और ज़िम्मेदार अधिकारियों के नाम प्राप्त कर लें और अपने पास सुरक्षित रखें। विधायकों तथा सांसद, जो भी आपके क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हों और क्षेत्र के समाचारपत्र या टेलीविज़न चैनल, उनके कार्यालय या प्रतिनिधि जिनके भी नम्बर आपको प्राप्त हो सकें, अवश्य अपने पास रखें, ताकि ज़रूरत पड़ने पर आप उनसे सम्पर्क कर सकें। घर से बाहर किसी भी आवश्यकता के मद्देनज़र जो व्यक्ति निकले वह अपनी पहचान अवश्य अपने साथ रखे, ताकि अचानक इसकी आवश्यकता पेश आए तो उसे दिखाया जा सके और एहतियातन ऐसे पहचानपत्रों की फोटोकाॅपियां कराकर अपने पास अवश्य रखें। किसी भी अधिकारी के देखे जाने के बाद अगर वह उसे अपने पास छोड़ने की ज़िद करे तो आप उसे फोटोकाॅपी देकर ओरिजनल अपने पास रख सकें। आप स्वयं अपने क्षेत्रों के संवेदनशील स्थानों को चिन्हित कर लें, अगर बहुत आवश्यक न हो तो ऐसे स्थानों पर जाने से बचें, जहां पहले भी छोटी-छोटी सी बातों पर साम्प्रदायिक टकराव होता रहा है। यह सभी एहतियाती क़दम हैं, इनको सामने रखने का उद्देश्य क़तई यह न समझा जाए कि यह हालात की गंभीरता की ओर इशारा करते हैं, बल्कि किसी भी अप्रिय घटना से सावधान रहने के उद्देश्य से ऐसी कुछ बातों की निशानदही की गई है। सबसे बेहतर फैसला तो आप स्वयं ले सकते हैं, बहरहाल ऐसे अवसरों पर पड़ोसियां से मधुर संबंध बहुत काम आते हैं। आशा की जानी चाहिए कि 24 सितम्बर को लेकर हमारे मन तथा मस्तिष्क में जितनी भी आशंकाएं हैं वह इनशाअल्लाह दूर होंगी। शांति के साथ यह दिन बीत जाएगा, फिर फैसला जो भी आए बात केवल उस फैसले पर होगी। इससे संबंधित जो भी क़दम उठाने की आवश्यकता होगी, ज़िम्मेदार व्यक्ति इस सिलसिले में अपनी पेशरफ़्त जारी रखेंगे, हर व्यक्ति को इस चिंता में इतना पड़ना नहीं चाहिए कि रोज़मर्रा का जीवन प्रभावित हो।

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