Thursday, July 22, 2010

संघ परिवार या आतंक परिवार?
अज़ीज़ बर्नी

कुछ व्यवसाय ऐसे हैं, जिन्हें समाज में अत्यंत सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, उनमें डाक्टरी का पेशा, पठनपाठन और सीमाओं पर तयनात देश की रक्षा की ज़िममेदारियां संभालने वाले सैनिक सर्वोपरिय आते हैं। रसूल-ए-अकरम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्ल॰ ने शिक्षा प्राप्त करने के लिए चीन तक जाने की बात कही। चीन न तो उस समय इस्लामी शिक्षाओं का केंद्र था और न ही आज है। अगर हमारे रसूल सल्ल॰ ने हमें यह निर्देश दिया कि शिक्षा प्राप्त करने के लिए चीन तक जाने की आवश्यकता पड़े तो भी ज़रूर जाया जाए, यानी शिक्षा प्राप्त करने के लिए न तो दूरियों को मन में रखा जाए, न राष्ट्र की सीमाओं को, न शिक्षा का प्रकाश दिखाने वालों के धर्मों को, अर्थात शिक्षा जिससे भी प्राप्त करते हैं, अवश्य करें, चाहे उसका धर्म कोई भी क्यों न हो।

डाक्टरी का पेशा भी इतना सम्मानजनक है कि बहुत से लोग इस व्यवसाय से जुड़े व्यक्तियों को ईश्वर के बाद का स्थान देते हैं। इसलिए कि वह इन्सानों की जान बचाने का काम अंजाम देता है। हमारी सीमाओं पर तयनात सिपाही केवल देश की सीमाओं की रक्षा ही नहीं करते, हमारी संस्कृति की भी रक्षा करते हैं और अपने देश की जनता की भी रक्षा करते हैं। अगर दुर्भाग्यवश हमारे शिक्षा दीक्षा से जुड़े व्यक्ति शिक्षा देने का दायित्व निर्वाह करने के बजाय समाज को गुमराह करने की दिशा में चल पड़ें तो फिर हम उन्हें क्या कहेंगे। पुणे के वाडिया काॅलेज में कैमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर इन्सानों की जान लेने के लिए बम निर्माण का प्रशिक्षण देने का काम करते रहे हैं। अपोलो अस्पताल के डा॰ आर॰पी॰ सिंह, जिनके कारनामों के बारे में कल के लेख में प्रकाश डाला गया था, वह देश के उपराष्ट्रपति महामहिम हामिद अन्सारी साहब की जान लेने के इरादे से विनाश की सामग्री अपने साथ लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया पहुंचे थे अब यह अलग बात है कि उन्हें यह अवसर नहीं मिल सका। (अल्लाह बड़ा कारसाज़ है।) कर्नल पुरोहित और मैजर उपाध्याय के नाम अब तक हमारे पाठकों के मन में समा चुके होंगे। शहीद हेमंत करकरे ने मालेगांव बम धमाकों की जांच करते हुए उनके देश विरोधी, मानवता विरोधी चेहरों को बेनक़ाब किया था।

बावजूद इन सभी विडंबनापूर्ण घटनाओं के हमारा विश्वास आज भी उन सभी व्यवसायों से सम्बन्धित व्यक्तियों पर क़ायम है और इन रहस्योदघाटनों के बाद भी उनके सम्मान में कोई कमी नहीं होगी, इसलिए कि कुछ लोगों के गुमराह हो जाने से इन प्रतिष्ठित व्यवसायों के महत्व को कम करके नहीं देखा जा सकता, परंतु यह चिंता का विषय अवश्य है जो हम सभी भारतीयों को बिना धर्म और समुदाय के भेदभाव के संगठित होकर इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर करता है कि संघ परिवार और उसके कारिंदे आख़िर देश और इस देश की जनता के भविष्य को किस किस तरह तबाह कर रहे है। हिंदू राष्ट्र का सपना दिखाने वाले क्या यह हिंदुओं के हितैषी हैं? हिंदू धर्म के गौरव में वृद्धि कर रहे हैं? क्या यह श्रीराम के आदर्शों के अनुयायी नज़र आते हैं? अपने कार्य से तो बिल्कुल नहीं और कार्य उसके विपरीत है तो आस्था क्या ख़ाक होगी। कौन नहीं जानता कि बम धमाकों में मारे जाने वाले बेगुनाह हिंदू भी होते हैं और मुसलमान भी। निसंदेह गिरफ़्तारियों तथा आरोपित ठहराए जाने के मामले में मुसलमान ज़रूर निशाने पर रहते हैं, परंतु मरने वालों की संख्या में हिंदू भाई कहीं अधिक होते हैं। अगर हम धार्मिक स्थलों पर किए गए बम धमाकों के अलावा सार्वजनिक स्थानों को मन में रखें तो! क्या हम किसी भी उद्देश्य से चलाए जा रहे इस अभियान की प्रशंसा कर सकते हैं? क्या इस कृत्य को सहन कर सकते हैं, जो बेगुनाह इन्सानों की जान लेने पर उतारू हों? माना कि कुछ मुसलमान आतंकवाद के आरोप में गिरफ़्तार कर लिए जाते हैं, उन्हें जेल की सलाख़ों के पीछे पहुंचा कर पीड़ाएं दी जाती हैं, उनके परिवार के सदस्य बदनाम होते हैं, उनके धर्म इस्लाम को बदनाम करने का बहाना मिल जाता है, परंतु किस क़ीमत पर? बेगुनाह हिंदू भाइयों की हत्या करके? उनकी माओं की गोद सूनी करके? उन घरों के चिराग़ों को बुझा कर? कभी दिल पर हाथ रख का उन माओं से भी पूछा जाए, उन बहिनों से भी पूछा जाए जिनके भाइयों की कलाई अब उनके सामने राखी बांधने के लिए नहीं होगी। उन विधवाओं से पूछा जाए, जिनकी मांग का सिंदूर उजड़ चुका होता है, क्या वह केवल मुसलमानों को बदनाम करने के नाम पर उनके अपनों के प्राणों की बलि देने के लिए तैयार हैं? हमें नहीं लगता कि उनमें से कोई एक भी इस प्रश्न पर अपनी सहमति व्यक्त करेगा। अब रहा प्रश्न हिंदू राष्ट्र के लिए चलाए जा रहे आंदोलन का, तो यह आंदोलन तो भारत, मुसलमान और इस्लाम की दुशमनी के लिए नज़र आता है। इसमें हिंदू राष्ट्र का प्रश्न कहां है? देश बदनाम होता है, एक विशेष समुदाय बदनाम होता है, इस्लाम धर्म बदनाम होता है और मिलता क्या है? तबाही, बेगुनाह इन्सानों की हत्या’ह्न

ज़रा सोचिए जो बेगुनाह सलाख़ों के पीछे सज़ा पा रहे होते हैं, वह तो फिर भी जीवित रहते हैं और उन्हें अपनी बेगुनाही सिद्ध करके छूट जाने का अवसर भी होता है, परंतु जो बेगुनाह, इस ख़ूनी राजनीति की भेंट चढ़ कर मारे जाते हैं, वह तो फिर से जीवित नहीं हो पाते, क्या उन जुनूनियांे के इस कार्य का समर्थन किया जा सकता है?

हमने बहुत पहले शहीद हेमंत करकरे की मृत्यु पर प्रश्न उठाए थे, ऐसे बहुत से प्रमाण पेश किए थे, उनकी पत्नी श्रीमति कविता करकरे से कई बार मिलकर उनकी आंखों में झांक कर उनकी पीड़ा को पढ़ने का प्रयास किया था। क्यों वापस लौटा दिया उन्होंने नरेंद्र मोदी को अपने दरवाज़े से? क्यों स्वीकार नहीं की एक करोड़ रुपए की राशि? बहुत कुछ लिखा था हमने और इन्शाअल्लाह फिर लिखेंगे। परंत आजके अंग्रेज़ी दैनिक ‘‘हिंदुस्तान टाइम्स (22-07-2010) के पृष्ठ 15 पर प्रकाशित एक संक्षिप्त समाचार का उल्लेख ज़रूर करना चाहेंगे जो यह स्पष्ट करता है कि 26 नवम्बर 2008 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले का शिकार शहीद हेमंत करके दरअसल एक जानलेवा षड़यंत्र का शिकार हुए थे। महाराष्ट्र के पूर्व आईजी पुलिस एसएम मुशरिफ़ ने अपनी पुस्तक ृृॅीव ज्ञपससमक ज्ञंतांतमश्श् में हेमंत करकरे का हत्यारा हिंदू आतंकवादियों को ठहराया है। इस समय हमारे सामने दिल्ली से प्रकाशित होने वाले एक और अंग्रेज़ी दैनिक ‘मेल टुडे’’ की उस खोजी रिपोर्ट का शेष भाग भी मौजूद है जिसके कुछ प्रमुख अंश हमने अपने कल के लेख में प्रकाशित किए थे और आज फिर हम इस विशेष रिपोर्ट का शेष भाग अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं इसके बाद हमारे लेख का सिलसिला जारी रहेगा।

एक चश्मदीद गवाह ने, जिससे ख़ुफ़िया एजेंसियों ने पूछताछ की थी, दावा किया है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के निकटवर्ती सहयोगी इंद्रेश कुमार को मक्का मस्जिद और अजमेर दरगाह बम धमाकों की जानकारी न हो यह मुमकिन नहीं, क्योंकि इन धमाकों का प्रमुख संदिग्ध आरोपी सुनील जोशी उनका ही शिष्य था। हैडलाइंस टुडे के स्टिंग आप्रेशन में आतंकवाद की साज़िश के चश्मदीद गवाह ने आरोप लगाया है कि इंद्रेश कुमार ने ही सुनील जोशी को धमाकों का प्रशिक्षण तथा प्रेरणा दी थी। सुनील जोशी मध्य प्रदेश के देवास ज़िले का आरएसएस प्रचारक था, जिस पर मक्का मस्जिद बम धमाका करके 17 लोगों को हताहत करने और अजमेर शरीफ़ में बम धमाका करके दो लोगों को हताहत करने का आरोप है।

इंद्रेश कुमार आर.एस.एस की रणनीति का महत्वपूर्ण सदस्य है। स्पष्ट रहे कि ख़ुफ़िया अजेंसियां पहले ही इंदे्रश कुमार और देवेंद्र गुप्ता के संबंधों की जांच कर चुकी है। देवेंद्र अजमेर बम धमाकों का प्रमुख अभियुक्त है। अजमेर धमाके के बाद ही सुनील जोशी की दिसंबर 2007 में देवास में हत्या कर दी गई थी। सुनील जोशी ‘‘श्याम आरएसएस का गुजरात का एक सदस्य है जिसकी जोशी से घनिष्टता थी, जब कोई व्यक्ति किसी का स्वामी या प्रशिक्षक होता है तो यह असंभव है कि उसे यह मालूम न हो कि उसके सामने क्या चल रहा है। सुनील जोशी को 2006 के मालेगांव बम धमाके की प्रमुख आरोपी और जेल में बंद प्रज्ञा सिंह ठाकुर का भी क़रीबी माना जाता था और एक स्थानीय कांग्रेसी नेता की हत्या का आरोप भी उस पर लगा था।’’

मई और जून 2006 के बीच श्याम ने जोशी के साथ झारखंड की यात्रा की थी, जोशी ने उसे वहां 9 सिम कार्ड उपलब्ध कराए थे जिसमें से चार का प्रयोग मक्का मस्जिद तथा अजमेर बम धमाकों में आईईबी ब्लाक में किया गया था। श्याम, जोशी और असीमानंद के बीच की प्रमुख कड़ी भी था। असीमानंद गुजरात में एक आश्रम चलाता है और उसका नाम अजमेर तथा मालेगांव बम धमाकों के मास्टर माइंड के रूपमें जाना जाता है। श्याम के अनुसार इन धमाकों वाले दिन श्याम को 7ः45 पर सुनील जोशी ने फोन किया था और 330 सैकेंड तक उससे बात की थी और यह कहा था कि श्याम असीमानंद को यह बता दे कि दीवाली से पूर्व वह एक धमाका कर चुका है। श्याम के अनुसार असीमानंद ने जोशी से कहा था कि वह इसके आश्रम में आ जाए क्योंकि उसे उसकी जान का ख़तरा महसूस हो रहा है।

इसी बीच एक महत्वपूर्ण रहस्योदघाटन यह भी हुआ कि हिन्दुत्व आतंकवाद के नेटवर्क की जड़ें काफ़ी गहरी हैं और पुणे के वाडिया काॅलिज के कैमिस्ट्री विभाग के अध्यक्ष और प्रोफ़ेसर इस संगठन की बम बनाने की कार्रवाई के शिक्षक हैं। बताया जाता है कि शरद कुंठे ने जो कि फिलहाल सीबीआई की पूछताछ में है, पुणे के निकट स्थिति एक पहाड़ी क्षेत्र सिंघ गढ़ में एक प्रशिक्षण शिविर भी चलाया था। महाराष्ट्र की एटीएस टीम ने शरद कुंठे से मालेगांव बम धमाकों और 2006 के नांदेड़ बम धमाकों के संबंध में सख़्ती के साथ पूछताछ की थी। राकेश धावड़े ने इस प्रशिक्षण शिविर के आयोजन में कुंठे की सहायता की थी, एक मैजिस्ट्रेट के सामने दिए गए अपने बयान में उसने कंुठे के इस मिशन से संबंधित जानकारी का राज़ फ़ाश किया था। मालेगांव बम धमाके के अभियुक्त कुंठे और धावड़े फिलहाल 2007 बम धमाकों के मास्टर माइंड लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के साथ नासिक जेल में बंद है। ‘‘जून 2003 में कुंठे ने मुझे पुणे सहादा सड़क और सिंघ गढ़ क़िला के निकट स्थित बंगले का इस लिहाज़ से सर्वे करने के लिए कहा था कि क्या इनमें से कौन सा स्थान प्रशिक्षण शिविर के लिए उचित रहेगा और मैंने सिंघ गढ़ को ही इस शिविर के लिए उचित बताया था।’’ धावड़े के इस बयान से कुंठे और प्रोफ़ेसर देव की उर्फि़यत रखने वाले एक सैनिक अधिकारी को सैक्योरिटी एजेंसियों को पकड़ने का अवसर मिला था। धावड़े ने बताया है कि देवागांशा में एक शिविर कैम्प के संबंध में ही वहां आए थे। प्रोफ़ेसर देव ने मुझे तुरंत दो टाॅर्च उपलब्ध कराने के लिए कहा था। मैंने उनसे पूछा था कि क्या उनका संबंध वीएचपी से है, यद्यपि उन्होंने मुझे अपने काम से काम रखने का निर्देश दिया था। प्रोफ़ेसर देव की अगुवाई में ही कुंठे के विद्यार्थियों को ज्वलंत सामग्री तैयार करने के लिए कठिन कार्य करने का प्रशिक्षण दिया गया था।

धावड़े की सूचना के अनुसार कुंठे के विद्यार्थियों ने पुणे के आसपास के क्षेत्रों पोदनदार क़िला में ही बम बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उन्होंने कुछ थैले, पैट्रोल का एक कनस्तर, गत्ते का एक डिब्बा और तीन चार बियर की बोतलें कार में रखे जाने का निर्देश दिया था। इन सब सामग्री के साथ हम लोग कार से उतर कर उस पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचे थे और दो विद्यार्थियों से कहा गया था कि वह इस क्षेत्र में गाड़ियों के आवागमन पर नज़र रखें। धावड़े ने जांचकर्ताओं को इस बात की भी विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई थी कि आतंकवाद के इस भगवा ब्रिगेड ने किस प्रकार दो अग्नि शस्त्र पदार्थ और हथियार उपलब्ध कराए थे। धावड़े ने मैजिस्ट्रेट को दिए गए बयान में यह भी ख़ुलासा किया है कि डा॰ कुंठे ने उन्हें रेलवे स्टेशन के निकट एक लाॅज की व्यवस्था करने का भी निर्देश दिया था। निर्देश के अनुसार मैं एक युवक को अपने साथ लेकर पास ही स्थित मथुरा लाॅज गया था। यह युवक एक बड़ा सा थैला भी उठाए हुए था। उसने मुझे वह पिस्टल भी दिखाई थी जो उसने अपनी शर्ट के नीचे छुपाई हुई थी। युवक ने मुझे बताया था कि इस थैले में ज्वलंत पदार्थ है और मैं इसे कुंठे के आवास स्थान तक लेकर गया था।

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1 comment:

त्यागी said...

बर्नी सहाभ आप तो कार्टूनिस्ट प्राण हो क्यूँ नहीं चाचा चौधरी और साबू पर कोई लेख लिखे. कृपया पिंकी और बंटी पर भी कुछ लिखे. मजा आता ही आपके लेख पढ़ कर. आप तो हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव से भी बड़े भांड है. कृपया टीवी पर भी कोई प्रोग्राम आप का आता हो तो उसकी भी जानकारी दे घर में छोटे बच्चे है उनका मन लगा रहेगा.