Saturday, June 26, 2010

और... ये हैं भारत में कश्मीर के इलहाक़ के दस्तावेज़

कश्मीर से संबंधित मेरे इस क्रमवार लेख का आज सातवां दिन है और इस सिलसिले का यह सातवां लेख आपके सामने पेश है। इस बेहद नाज़ुक समस्या पर क़लम उठाने से पहले ही मैंने यह तय कर लिया था कि बात को केवल शब्दों अथवा भावनाओं के सहारे ही नहीं बल्कि वास्तविकता की रोशनी में रखा जाएगा इसलिए कि मैं अच्छी तरह समझता हूं कि मेरा यह लेख आने वाले दिनों में एक दस्तावेज़ के रूप में देखा जाएगा और इसे स्वतंत्रता के बाद हिंदुस्तान के इतिहास की श्रेणी में रखा जा सकेगा। हम आजादी के 61 वर्षों के बाद भी विभाजन के कारणों को जिस तरह समझ रहे हैं और समझते रहे हैं, वह अंतिम स्तय नहीं है। इस बटवारे की वास्तविकता क्या थी, बहुत जल्द मेरा यह लेख उन वास्तविकताओं को सामने रख देगा। लेकिन साथ ही मैं यह भी साफ़ कर देना चाहता हूं कि मेरा उद्देश्य केवल कश्मीर और कश्मीर की एक करोड़ डेढ़ लाख जनसंख्या के अधिकारों की सुरक्षा और उनके दर्दनाक हालात की चर्चा ही नहीं है बल्कि मेरे ध्यान का केंद्र भारत और भारत की 115 करोड़ की जनसंख्या का खुशहाल, शांतिपूर्ण जीवन और उन्नति है। हमारे बीच जो नफ़रतें और मारकाट का एक न समाप्त होने वाला सिलसिला देश के विभाजन से शुरू हुआ और आज तक जारी है। शायद उस समय तक इसका रुकना संभव नहीं है जब तक कि सम्पूर्ण भारत इन वास्तविकताओं को न समझ ले जिसकी बुनियाद पर देश दो टुकड़ों में विभाजित हुआ। ‘कश्मीर’ के हिंदुस्तान के साथ सम्मिलित होने का फैसला कब और किन परिस्थितियों में हुआ? आज 61 वर्षों बाद भी अगर कश्मीर की स्थिति सामान्य नहीं है, हिंसा का सिलसिला जारी है तो उसका बुनियादी कारण क्या है? क्यों हम हमेशा संम्प्रदायिकता की आग में जलते रहे हैं? देश विभाजन के साथ हिंदू-मुस्लिम दंगों का जो सिलसिला शुरू हुआ वह ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है, आख़िर क्यों? हमने भारत के इतिहास का भयानक दंगा 2002 में गुजरात भी देखा जहां लगभग 3 हज़ार मुसलमान धार्मिक घृणा के कारण क़त्ल कर दिए गए और आज भारत आतंकवाद की लपेट में है। इस सबकी बुनियादों में ऐसा क्या है जो हमारी शांति और एकता का दुश्मन बन गया है। यदि गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह वास्तविकता पूरी तरह साफ़ हो जाएगी कि इसके पीछे देश विभाजन के हवाले से पेश की गई ग़लत थ्योरी है जिसने हिंदुओं और मुसलमानों के दिलों में घृणा पैदा की। हम तमाम ऐतिहासिक हवालों की रोशनी में इस लेख को आगे बढ़ाना चाहते हैं ताकि यह सच सामने आए कि वह केवल और केवल राजनीति थी जिसने भारत के दो टुकड़े किए। यह देश द्विराष्ट्र के दृष्टिकोण के तहत विभाजित नहीं हुआ, भारत की जनता धर्म की बुनियादों पर अलग-अलग देश नहीं चाहती थी बल्कि भारत के वह राजनीतिज्ञ जिनके दिलों में कुर्सी की ललक थी, जिनके हृदय और मस्तिष्क में सम्प्रदायिकता गहराई के साथ जड़ें जमा चुकी थी। आज की स्थिति के लिए ज़िम्मेदार वही लोग हैं। बहुत जल्द मैं उन सबके चेहरे हमारे इस लेख में साफ़ साफ़ नज़र आने लगेंगे, इसी कोशिश की अगली कड़ी के रूप में आज मैं अपने पाठकों की सेवा में पेश करने जा रहा हूं महाराजा हरि सिंह का वह पत्र रूपी प्रमुख दस्तावेज़ जो 26 अक्तूबर 1947 को उनके हस्ताक्षर के साथ गवर्नर जनरल हिंदुस्तान लार्ड माउंट बेटन को भेजा गया और साथ ही उसके दूसरे दिन लार्ड माउंट बेटन के उस पत्र के उत्तर में पत्र।

वह प्रमुख दस्तावेज़ जिस पर महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर 1947 को हस्ताक्षर किए थेः

यह कि इण्डियनइंडिपेंडेंस एक्ट (Indian Independence) एक्ट 1947 के तहत यह प्रावधान किया गया है कि 15 अगस्त 1947 से भारत के नाम से एक आज़ाद ब्रिटिश कालोनी स्थापित की जाएगी और यह कि उस ब्रिटिश कालोनी भारत पर गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट 1935 का प्रावधान उन बदलाव, संशोधन और बढ़ोतरी के साथ होगा। जिसकी व्याख्या गवर्नर जनरल अपने आदेशों के माध्यम से करते रहेंगे और यह कि गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट 1935 के तहत, जिसे गवर्नर जनरल का समर्थन प्राप्त है इस बात का भी प्रावधान किया गया है कि कोई भी भारतीय राज्य अपनी सरकार के माध्यम से पंजीकरण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके उस ब्रिटिश कालोनी भारत के साथ सम्मिलित हो सकती है। इसलिए अब मैं श्रीमन इंद्र महिंदर राज राजेसवर महाराजा अधिराज श्री हरि सिंह जी, जम्मू व कश्मीर नरेश तथा तिब्बत अधिदीशाशी पती, जम्मू व कश्मीर, राज्य पर अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए पंजीकरण के दस्तावेज़ पर अमल करता हूं और
1.मैं यह घोषणा करता हूं कि मैं ब्रिटिश कालोनी भारत के साथ इस इरादे के साथ सम्मिलित होता हूं कि गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया, कालोनी की विधानसभा (लेजिस्लेटर), फेड्रल कोर्ट और कालोनी के उद्देश्य के तहत स्थापित की जाने वाली कोई भी अन्य अथॉरिटी उस पंजीकरण के दस्तावेज़ के मेरे माध्यम से लाने पर और सदा शर्तों के अनुसार और कालोनी के उद्देश्य को सामने रखते हुए जम्मू व कश्मीर राज्य के सिलसिले में जिसका उल्लेख अब उस ‘राज्य’ के तौर पर किया जाएगा। उन कर्तव्यों का निर्वाहन करेगी जो 1947 से किया जा चुका है जिसका उल्लेख अब ‘दि एक्ट’ के तौर पर किया जाएगा।

2.मैं इस बात को निश्चिंत बनाने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर लेता हूं कि एक्ट की धाराओं का मेरे माध्यम से अमल में लाए जाने वाले पंजीकरण के दस्तावेज़ के अनुसार, राज्य में असरदार तरीक़े से लागू किया जाएगा।

3. मैं उन मामलात को जिनकी व्याख्या शैड्यूल में की गई है और जिनके लिए कॉलानी की विधानसभा उस राज्य के लिए संविधान बनाएगी। मैं सर्मथन करता हूं।

4. मैं घोषणा करता हूं कि ब्रिटिश कॉलानी भारत के साथ मैं इस यक़ीन के साथ सम्मिलित हो रहा हूं कि यदि गवर्नर जनरल और राज्य के सत्ताधीशों के बीच कोई समझौता होता है तो कॉलीनी के लेजिस्लेचर किसी भी क़ानून के तहत राज्य की व्यवस्था के अधिकार राज्य के सत्ताधीशों के हाथों में होंगे तब उस समझौते के अर्थों के अनुसार ही उसका प्रावधान होगा।

5. मेरी पंजीकरण के दस्तावेज़ की शर्तों को एक्ट या इण्डियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 में की जाने वाले किसी संशोधन के माध्यम से उस समय तक नहीं बदला जाएगा जब तक उस संशोधन को मेरे माध्यम से उस दस्तावेज़ को एक आंशिक दस्तावेज़ के तौर पर स्वीकार नहीं कर लिया जाता।

6. यह दस्तावेज़ कालोनी लेजिस्लेचर को राज्य के उस प्रकार के किसी भी क़ानून बनाने का अधिकार नहीं देगा, जिसके तहत वह किसी भी उद्देश्य के लिए जबरन भूमि का मालिकाना अधिकार प्राप्त कर ले, लेकिन मैं इस बात का वचन देता हूं कि यदि कालोनी राज्य के लिए बनाए गए क़ानून के तहत इस बात को आवश्यक समझता है कि उसे किसी भूमि का मालिकाना अधिकार प्राप्त हो तो मैं उनकी दरख़्वास्त पर उस भूमि का मालिकाना अधिकार उनके व्यय पर यदि वह भूमि मेरी अपनी होगी तो उसको उन शर्तों पर प्राप्त करा दूंगा जिनसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के माध्यम से निर्धारित किए गए एक मध्यस्त के माध्यम से समझौता या समझौते के विरुद्ध तय की जाएगी।

7. इस दस्तावेज़ के तहत मैं इस बात का भी पाबंद हूंगा कि भविष्य में भारतीय संविधान के लिए या उस संबंध में भारतीय सरकार के साथ किसी भी समझौता के लिए अपनी स्वीकार्यता या ग़ैर स्वीकार्यता ज़ाहिर करके अधिकारों को खो दूं।

8. इस दस्तावेज़ का कोई ऐसा प्रावधान मेरे उन अधिकारों पर नहीं होगा जो मुझे फिलहाल राज्य पर या उस सिलसिले में राज्य के मुख्या के तौर पर प्राप्त हैं।

9। मैं घोषणा करता हूं कि मैं राज्य की ओर से इस दस्तावेज़ को अमल में लाता हूं और इस दस्तावेज़ में जब भी मेरा या राज्य के मुखिया का हवाला दिया जाएगा तो उसका अर्थ मेरे वारिसों का हवाला भी होगा। आज दिनांक 26 अक्तूबर 1947 को यह मेरे हस्ताक्षर से जारी हुआ।

हरि सिंह
महाराजा अधिराज,जम्मू व कश्मीर राज्य
गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया की ओर से दस्तावेज़ की मंज़ूरी

मैं इस दस्तावेज़ पर सत्ता पर बैठने की आज दिनांक 27 अक्तूबर 1947 को स्वीकार करता हूं।
माउंट बेटन ऑफ बर्मा
गवर्नर जनरल ऑफ इण्डिया
सत्ता के दस्तावेज़ के उन मामलात का शैड्यूल जिसके तहज राज्य के लिए कालोनी लेजिस्लेचर संविधान बना सकेगी।
ए- रक्षा
1. वह नौसेना, थलसेना, और वायु सेना जिनकी भर्ती या देखभाल की ज़िम्मेदारी कालोनी पर होगी। सम्मिलित राज्य की भर्ती फोर्सिस समेत अन्य हथियारबंद सैन्य, जो कालोनी के साथ संलग्लन होंगी या उसके साथ काम कर रही होंगी।

2.नवसेना, थलसेना और वायु सेना के काम, सैन्य इलाक़ों की व्यवस्था।

3.हथियार, गोला बारूद और ज्वलनशील हथियार।

4.ज्वलनशील पदार्थ।

बी-विदेशी मामले

1.बाहरी मामले, दूसरे देशों के साथ किए जाने वाले समझौतों को अंतिम रूप देना, भारत के बाहर हिज़ मेजिस्टी की कालोनियों के अन्य हिस्सों को हथियार डालने वाले अपराधियों समैत प्रतियार्पण की कार्रवाई।

2.उन लोगों की भारत में आवाजाही को पूर्णतः आसान बनाना जो ब्रिटिश नागरिक नहीं हैं लेकिन भारत में रह रहे हैं या उनका संबंध सम्मिलित राज्य से है। ऐसे लोगों के दाख़ला, आवाजाही और उन्हें देश निकाला से संबंधित मामलात। भारत से बाहर पवित्र स्थानों की यात्रा।

3.अधिकार, नागरिकता प्रदान करना।

सी-संचार

1.टेलीफोन, वायरलेस, दूरसंचार समेत पोस्ट एंड टेलीग्राफ।
2.फेड्रल रेलवेज़, छोटी रेलवेज़ को छोड़ कर सुरक्षा, कम से कम और अधिक से अधिक की़मतों व किरायों, स्टेशन व सेवाएं, टर्मिनल के चारजिस, इंटरचेंज ऑफ ट्रेफिक और वस्तुएं व यात्रियों की आवाजाही के एक संगठन के तौर पर रेलवे प्रशासन की ज़िम्मेदारी, वस्तुएं और यात्रियों की आवाजाही के एक संगठन की हैसियत से एक ऐसी रेलवे की व्यवस्था और सिक्योरिटी की ज़िम्मेदारी, जिसका संबंध छोटी रेलवेज से है।

3.गहरे पानी में जहाज़रानी और नेविगेशन की ज़िम्मेदारी।

4.बंदरगाहें,

5. बड़ी बंदरगाहें, अर्थात ऐसी बंदरगाहों की हदबंदी और बंदरगाह अथॉरिटी बनाना और उसके अधिकार।

6. हवाई जहाज़ और वायु नेविगेशन, हवाई अड्डों की उपलब्धता, एयर ट्रेफिक और हवाई अड्डों को व्यवस्था के तहत लाने से संबंधित कार्यवाही।

7. जहाज़रानी और हवाई जहाजों की रक्षा से संबंधित जहाज़ों को रास्ता दिखाने वाली रोशनी समेत लाइट हाउसिस की व्यवस्था।

8. समंदर और वायु रास्तों के ज़रिए मुसाफ़िरों और सामान की आवाजाही।

9. रेलवे और इसके बाहर किसी भी यूनिट की पुलिसफोर्स के सदस्यों के अधिकारों का विस्तार।

डी-आंशिक कर्तव्य

1.एक्ट की धारा या उससे संबंधित अन्य आदेशों के अनुसार, कालोनी की लेजिसलेचर के चुनाव की व्यवस्था।

2. उपर्युक्त मामलों से संबंधित क़ानून की ख़िलाफवर्जी।

3. उपर्युक्त मामलों के उद्देश्य के तहत जांच व आंकड़े की उपलब्धता।

4. उपर्युक्त मामलों के सिलसिले में सम्मिलित होने वाले राज्य की स्वीकृता के तहत सभी न्यायालयों के अधिकारों की हदबंदी।.........................................

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