Thursday, April 1, 2010

ज्योति दिवस-एक अनुकरर्णीय प्रणाली









दो जन्मों की थ्योरी (Theory) बात कुछ अजीब सी लगती है, मगर जब अपने बारे में सोचता हूं तो कभी-कभी यह लगता है कि मुझे एक ही जीवन में दो बार जन्म लेने का अवसर मिला है। एक तो वह जब मैंने अपने घर परिवार में अपनी माँ के द्वारा जन्म किया और दूसरी बार जब ‘‘सहारा इण्डिया परिवार’’ में मैंने जन्म लिया। दोनों ही परिवारों के संस्कार में अपने व्यक्तित्व में महसूस करता हूं। मेरा धर्म क्या है, धर्म के तक़ाज़े क्या हैं, धर्म के अनुसार जीवन जीने का तरीक़ा क्या है, यह सीख़ा मैंने उस परिवार से जिसमें जन्म लिया और ‘‘सहारा इण्डिया परिवार’’ में आने के बाद समाज को समझने का सलीख़ा मिला, विभिन्न धर्माें और सोच के लोगों के साथ काम करने का अवसर मिला। आज पहली अप्रैल है, वह दिन जिसे ‘‘सहारा इण्डिया परिवार’’ के लोग माननीय सुब्रत राॅय सहारा (सहाराश्री जी) के पिताश्री परमआदरणीय श्री सुधीर चन्द्र राॅय के जन्मदिन को ‘‘ज्योति दिवस’’ के रूप में मनाते हैं। एक महान व्यक्तित्व के पिता की महानता को कई अर्थों में सलाम करने को दिल चाहता है, मगर आज के दिन की जो बात सबसे ज़्यादा अनुकरणीय चर्चा के योग्य है और जिसे मैं हमेशा हमेशा के लिए संजो कर रखना चाहता हूं वह है ‘‘सहारा इण्डिया परिवार’’ में आज के दिन परिवार से जुड़े छोटे छोटे समझे जाने वाले पदों पर बड़ी बड़ी ज़िम्मेदारी निभाने वालों के सम्मान के रूप में याद किया जाना। जिस समय यह समारोह चल रहा था तो मैं वहां खड़े हुए सोच रहा था कि हम जिनके काम को छोटा मानते हैं, अगर वह दो दिन भी दफ़्तर में न आऐं, अपनी ज़िम्मेदारियां न निभाऐं तो हमारी दिनचर्या मुश्किल हो जाए। दो दिन तक सफाई न किए जाने पर दफ्तर में बैठना मुश्किल होगा, दो दिन तक ड्राईवर न आए तो ख़ुद गाड़ी चला कर सारे काम निमटाना बहुत मुश्किल होगा और अगर इत्तेफाक़ से दो दिन तक आपका सफाईकर्मी न आए तो नियमित आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी हमारे लिए बहुत पीड़ाजनक हो जाएगा। कितना महत्वपूर्ण स्थान है इन सबका हमारे जीवन में और कितना महत्व देते हैं हम इन्हें। मैं एक बड़े पद की ज़िम्मेदारियां संभालने वाला वरिष्ठ अधिकारी हूं, कई दिन तक दफ्तर न आऊं तो शायद कामकाज में कोई बड़ी रूकावट न आए, मगर मुझ से जुड़े दूसरे कार्यकर्ताओं के बारे में यह बात नहीं कही जा सकती, इसलिए आज का दिन मुझे यह सिखाता है कि इस्लाम में जो सबको बराबरी का दर्जा देने की बात कही गई है, वह इसीलिए कि समाज की आवश्यकताओं के अनुसार सबके काम अलग-अलग हो सकते हैं, मगर एक समाजी ढ़ांचे के निर्माण के लिए सबकी अपनी अपनी जगह बहुत महत्वपूर्ण है, इसलिए किसी को भी कम करके नहीं देखा जाना चाहिए।

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