Wednesday, October 7, 2009

तो मुंबई में लागू होगा परमिट सिस्टम!




किसी भी व्यक्ति का बात करने का अंदाज़ और उसकी ज़बान, उसके व्यक्तित्व का आईना होती है, जिससे उसके मिजाज़ और परिवारिक पृष्ठभूमि को समझा जा सकता है। अपने इस लेख में अगले कुछ वाक्य जो मैं लिखने जा रहा हूं, वह मेरे लेख का हिस्सा अवश्य हैं परन्तु उनका संबंध मुझ से नहीं है। यह देश के एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ की ज़बान है, जो उन्होंने अपने अख़बार में प्रयोग की हैः‘‘कांग्रेस और राष्ट्रवादी के हरामखोरों ने महाराष्ट्र का जो सत्यानाश किया है, जनता के जीवन को जिस तरह से नष्ट किया है, उसे सुधारने के लिए शिवसेना-भारतीय जनता पार्टी के हरीश चंद्र के हाथ में सत्ता की चाबी सौंपनी ज़रूरी है।

गांधी जी कहा करते थे कि हिंदुस्थान को दुनिया भर के बेसहारों और दलितों का आश्रय स्थान बनना चाहिए। हिंदुस्थान वैश्विक धर्मशाला बन चुका है। इस धर्मशाला में हिंदुस्थानियों की अपेक्षा बांग्लादेशी और पाकिस्तान प्रेमियों की आबादी ज़्यादा हो गई है। शिवराय के महाराष्ट्र की हालत कुछ ज़्यादा ही दयनीय है। धर्मशाला में भी किसी मालिक की अनुमति की आवश्यकता होती है। मुंबई और महाराष्ट्र को ‘‘आओ-जाओ घर अपना’’ है वाली धर्मशाला बना दी गई है। मुंबई की छाती पर बांग्लादेशी सवार हो गए हैं।

इसलिए हमारा पक्का इरादा है कि सरकार में आने पर हम मुंबई में परमिट सिस्टम लागू करेंगे। .................................................................... कांग्रेसवालों ने महाराष्ट्रवासियों को फोड़कर सत्ता पर कब्ज़ा करने का स्वप्न संजोया है। उसके लिए मनसे जैसी नालायक औलाद को हाथ में लेकर राजकरण का गजकर्ण चलाया गया है। यह गजकर्ण मुस्लिम लीग की अपेक्षा ज़्यादा भयंकर है। मुस्लिम लीग और उसके मोहम्मद अली जिन्ना ने धर्म के नाम पर खुल्लम-खुल्ला पाकिस्तान बनाया। देश तोड़ा, खून की नदियां बहाई और हमेशा-हमेशा के लिए हिंदुस्थान के हिंदुओं को दुखी और अस्थिर किया।

अंग्रेज़ों ने जिन्ना की खोपड़ी में ज़हर घोलकर उसके हाथ में कुल्हाड़ी सौंप दी। उस कुल्हाड़ी से हिंदुस्थान के दो टुकड़े कर दिए गए। कांग्रेसवाले महाराष्ट्र और मराठी माणुस के लिए वही बंटवारे का बीज बो चुके हैं। उस समय मोहम्मद अली जिन्ना था, इधर घरवाला ही जिन्ना है।’’यह इबारत थी महाराष्ट्र मुम्बई से प्रकाशित होने वाले मराठी और हिन्दी अख़बार ‘‘दोपहर का सामना’’ के सम्पादकीय की, जिसके सर्वेसर्वा हैं बाला साहब ठाकरे। वही बाला साहब ठाकरे जो शिवसेना के सुप्रीमो भी हैं। वह कांग्रेस या एन।सी.पी के लिए क्या दृष्टिकोण रखते हैं, यह कांग्रेस ओर एन.सी.पी वाले जानें या वह जानें, हमें इस पर कुछ नहीं कहना।

बाल ठाकरे अपने भतीजे राज ठाकरे को जो चाहे कहें, यह उनका घरेलू मामला है। जैसाकि स्वयं अपने लेख में उन्होंने उसे घरवाला कहा है, परन्तु यदि राज ठाकरे को जिन्ना कहा जाएगा तो फिर हमें इतिहास के दामन में झांक कर देखना होगा। देश के विभाजन की परिस्तिथियों पर ग़ौर करना होगा। मोहम्मद अली जिन्ना की कार्यप्रणाली पर ग़ौर करना होगा। मोहम्मद अली जिन्ना की भूमिका पर नज़र डालनी होगी और बाल ठाकरे के अनुसार आज के जिन्ना यानी राज ठाकरे के किरदार को समझना होगा। पिछले दो दिनों में इसपर बहुत कुछ लिखा है, आगे भी लिखने की आश्यकता हो सकती है।

इस बीच एनडी टी.वी. ने भी अपने विशेष कार्यक्रम में इस मुद्दे को उठाया है अतः आज के इस लेख में जिन्ना के सन्दर्भ में कही गई बात पर बहस नहीं करनी है बल्कि इस लेख में जो अन्य बातें कही गई हैं उस पर पाठकगण का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। हमने भाषा का उल्लेख इसलिए किया था कि इससे सामने वाले के चरित्र को समझने का अवसर मिलता है। अगर यह सामने वाला कोई साधारण व्यक्ति है तब हम उसकी बात को अनदेखा कर सकते हैं। उस पर अधिक ध्यान देने या बहस की आवश्यकता महसूस नहीं करते, लेकिन यदि वह व्यक्ति हमारा नेता बनने का दावा करता हो, राज्य का सर्वेसर्वा बनने का इच्छुक हो तब हमें ध्यान देना आवश्यक लगता है, इसलिए कि हम अपना भविष्य ऐसे अशिष्ठ व्यक्ति के हाथों में कैसे सौंप सकते हैं जिसे बात करने का सलीका भी न हो जो कुछ भी कहा गया इस सम्पादकीय में उसका भावार्थ तो वही रह सकता था हां मगर भाषा सुसंस्कृत हो सकती थी।

बंग्लादेशियों और पाकिस्तान से प्यार करने वालों का सन्दर्भ किनके लिए और क्यों दिया गया है यह भी किसी से छुपा नहीं है इसका उल्लेख भी हम ज़रा आगे चलकर करेंगे। इस समय जिस विशेष बात पर ध्यान दिलाना आवश्यक है वह यह है कि अगर सत्ता में आए तो हमारा पक्का इरादा कि हम मुम्बई मं परमिट सिस्टम लागू करेंगे, अर्थात अपने ही देश में एक शहर से दूसरे शहर जाने के लिए अर्थात देश के किसी भी भाग से मुम्बई में प्रवेश करने के लिए परमिट की आवश्यकता होगी। दूसरे शब्दों में देश के अन्दर ही एक और पासपोर्ट दरकार होगा।

इस बात का सम्बन्ध किसी धर्म, जाति या साम्प्रदाय से नहीं बल्कि उन तमाम भारतीयों से है जबकि मुम्बई को मुम्बई बनाने में, मुम्बई को भारत की आर्थिक राजधानी बनाने के लिए बहुतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हम बेहद सम्मान के साथ बाल ठाकरे साहब की सेवा में यह निवेदन करना चाहते हैं कि मुम्बई ही नहीं पूरे भारत का सबसे बड़ा व्यापारी परिवार मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी मुम्बई में रहते हैं लेकिन धीरूभाई अम्बानी का सम्बन्ध गुजरात से था। टेªजिडी किंग दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खांन और कपूर परिवार पेशावर से आकर मुम्बई में बसें। धर्मेन्द्र, सुनील दत्त और विनोद खन्ना इन सभी का सम्बन्ध पंजाब से था। दुनिया भर में अपनी ताकत का लोहा मनवाने वाले दारा सिंह भी इसी धरती से सम्बन्ध रखते थे।

बोलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन का परिवार उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद से सम्बन्ध रखता है तो बादशाह अर्थात शाहरूख खांन का सम्बन्ध दिल्ली से है। वेजयंती माला और रेखा से लेकर रानी मुखर्जी, सुष्मिता सैन, ऐश्वर्या राॅय तक सभी पश्चिम बंगाल या दक्षिण भारत से आने वाली अभिनेत्रियां हैं। फीरोज़ खांन,संजय खांन,समीर खांन, अकबर खांन इन सबका सम्बन्ध बंगलौर से है तो अपनी अदाकारी का लौहा मनवाने वाली जयाप्रदा और तब्बू आंध्रा प्रदेश से हैं। मोहम्मद रफी नौशाद जैसे नामों में से कोई भी मराठी नहीं।

अगर इन सबको अलग कर दें तो मुम्बई में क्या रह जाता है? जो सम्मान दौलत और शोहरत कमाकर उन्होंने और उन जैसे व्यक्तियों ने मुम्बई को दी और विश्व के मानचित्र पर एक प्रतिष्ठित नाम बनाया आखिर वह उनके सिवा कौन लोग हैं जिनका नाम लिया जा सके? ठाकरे के परिवार या भारतीय जनता पार्टी के नेतागण जिनमें नरेन्द्र मोदी जैसे नाम आज सबसे अधिक उल्लेखनीय हैं उन्हें किस रूप में देखा जाता है, यह किससे छुपा है क्या यह वही नरेन्द्र मोदी नहीं हैं जिन्हें गुजरात दंगों के बाद मुख्यमंत्री रहते हुए भी अमेरिका और इंग्लैण्ड में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी।

बाल ठाकरे, उद्धव ठाकरे, राज ठाकरे राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय स्तर पर किन बतों के लिए लोकप्रिय हैं यह दुनिया जानती है। उन्होंने मुम्बई को मुम्बई बनाने में कौन सी भूमिका निभाई है यह श्रीकृष्णा कमीशन की रिपोर्ट में साफ-साफ दर्ज है। चन्द पंक्तियां सन्दर्भ के रूप में पेश हैंः-1- 22 जून 1997 को श्रीकृष्णा कमीशन को मोहित नाम के व्यक्ति ने अपने बयान में कहा कि फोन काल्स के कारण मेरी और शिवसेना चीफ की बात में रूकावट पड़ रही थी वह एक साथ कई फोन पर बोल रहे थे, और जैसा मैंने सुना और समझा, वह सेना के कार्यकर्ताओं को मुसलमानों पर हमला करने का आदेश दे रहे थे मराठी में उन्होंने ‘‘सरला नडिया ना मारून टाका’’ कहा फोन करने वाले को निर्देश दिया कि ध्यान रहे कि कोई भी मुसलमान अदालत में गवाही देने के लिए जिन्दा न बचने पाये।2-कमीशन की रिपोर्ट कहती है कि ‘‘8 जनवरी 1993 से इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि मुसलमानों और उनकी सम्पत्तियों पर सुनियोजित ढंग से हमला करने में शिवसेना और शिवसैनिकों ने मुख्य भूमिका निभाई और यह सबकुछ पार्टी के कई नेताओं शाखा प्रमुख से लेकर शिवसेना प्रमुख की निगरानी में हुआ।

सेनाप्रमुख ने एक तजुर्बेकार जनरल की तरह अपने वफादार शिवसैनिकों को मुसलमानों पर सुनियोजित ढंग से हमले के द्वारा बदला लेने का आदेश दिया। शिवसेना के द्वारा साम्प्रदायिक दंगे भड़काए गए और उसका प्रयोग अपराधी तत्वों ने एक अवसर के रूप में किया जब तक शिवसेना यह जान पाई कि बदले के नाम पर बहुत कुछ किया जा चुका है तब तक स्थितियां उनके लीडरों के काबू से बाहर हो गई थीं और उनके नेताओं को इसे समाप्त करने की अपील करनी पड़ी’’।3-कमीशन यह शामिल करना नहीं भूली ‘‘यहां तक कि जब यह स्पष्ट हो गया कि शिवसेना के नेता ही साम्प्रदायिक दंगे की आग लगाने में शामिल रहे हैं तब पुलिस ने कहा कि अगर ऐसे नेताओं को हिरासत में लिया जाता है तो साम्प्रदायिक स्थितियां और भी बदतर हो सकती हैं और मुख्यमंत्री सुधाकर राव नायक के शब्दों में कहें तो ‘बोम्बे में आग लग जाएगी’

जैसा कि हमने अपने कल के लेख में लिखा था कि भारतीय जनता पार्टी और शिवेसना के प्रदर्शन को सामने रखने के लिए हमारे पास गुजरात दंगे और श्रीकृष्णा कमीशन की रिपोर्ट में दर्ज ऐसी अनेक घटनाएं हैं जिनसे इन पार्टियों के स्वभाव को समझा जा सकता है, लेकिन मैं आज के और आने वाले कल के लेख में यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि वास्तव में मुस्लिम दुश्मनी के नाम पर हिन्दुत्व का ढिंढोरा पीटने वाली यह पार्टियां हिन्दुओं की प्रतिनिधि पार्टियां हो ही नहीं सकतीं बल्कि जहां उन्होंने एक तरफ मुसलमानों के नरसंहार और उन पर किये जाने वाले अत्याचारों के कारण उनके दिलों में घृणा और नाराज़गी पैदा की है वहीं हिन्दु भाईयों को भी कुछ कम कष्ट नहीं दिये हैं।

इस मानसिकता ने जो पहला कत्ल किया वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का था जो हिन्दू थे। सारे भारत में स्वयं को कट्टर हिन्दुवादी बताकर हिन्दु भाईयों का नाम अपने साथ जोड़कर कभी हिन्दु-मुस्लिम, कभी हिन्दू-सिख तो हिन्दू ओर ईसाई के बीच खाई पैदा करते रहे। पंजाब में जो कुछ हुआ वह हिन्दू और मुसलमानों के बीच नहीं हिन्दुओं और सिखों के बीच था। उड़ीसा और कर्नाटक में जो गिरजाघर जलाये गये उससे हिन्दू और ईसाइयों के बीच खाई पैदा हुई। बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों ने हिन्दु और मुसलमानों के बीच नफरत की दीवार खड़ी की। क्या यह सब देश की प्रगति और शांति में कारगर साबित हो सकता है?

नहीं बिल्कुल नहीं..........बल्कि यह सोच, यह मानसिकता देश की प्रगति में सबसे बड़ी रूकावट है। हिन्दु और मुसलमान के बीच, अर्थात भाई-भाई के बीच यह नफरत का सबसे बड़ा कारण है। आज जब दुनिया की बड़ी ताक़तें फिर से हमें अपना ग़ुलाम बनाने की कोशिशों में लगी हुई हैं, आज जबकि हमारे अपने पड़ोसियों से रिश्ते बहुत खुशगवार नहीं हैं, आज जब हम आतंकवाद के साए में जीने को विवश हो गए हैं, ऐसे में अपनी राजनीति के लिए नफ़रत के बीज बोने वालों को न तो इतिहास कभी मांफ करेगा और न आज हमें उनके धोखे में आना चाहिए।

दरअसल यह वही लोग हैं, यह वही मानसिकता है, जिसने पहले भी इस देश के टुकड़े किए और आज अलगाववादी मिजाज़ पैदा करके राज्यों को सरहदों की दीवारों में बांट देने के षड़यंत्र रच रहे हैं। उनका नाम कभी जिन्ना होता है तो कभी कोई ठाकरे हिदुस्तान की अखंडता और राष्ट्रीय एकता को हानि पहुंचाने के लिए सामने आ जाता है हमें इन चेहरों को धर्म के अधार पर नहीं देखना चाहिए। क्षेत्रीयता या भाषा के हवाले से भी नहीं देखना चाहिए। आवश्यकता है तो केवल और केवल उन्हें उनके चरित्र और मानसिकता से पहचानने की।

एक अंतिम वाक्य लिखकर मैं आज के इस लेख को समाप्त करता हूं कि पूरी दुनिया में कश्मीरियों के पृथकतावाद की चर्चा है, मगर कश्मीर की सीमा में प्रवेश करने के लिए परमिट सिस्टम की बात तो इस राज्य के किसी ऐसे जिम्मेदार ने भी नहीं की जिसका कद शिवसेना के चीफ जैसा हो और जो राज्य में सत्ता में आने का दावेदार हो। अतः इस बात को यूंही अनदेखा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका सम्बन्ध हर भारतीय से है। भारत की अखण्डता से है, साम्प्रदायिक सदभव से, राष्ट्रीय एकता से है।



کسی بھی شخص کا انداز گفتگو اور اس کی زبان، اس کی شخصیت کا آئینہ ہوتی ہے، جس سے اس کے مزاج اور خاندانی پس منظر کو سمجھا جاسکتا ہے۔ اپنی اس تحریر میں اگلے چند جملے جو میں لکھنے جارہا ہوں، وہ میری تحریر کا حصہ ضرور ہیں، مگر ان کا تعلق مجھ سے نہیں ہے۔ یہ ملک کے ایک نامور سیاستداں کی زبان ہے، جو انہوں نے اپنے اخبار میں استعمال کی ہے۔”کانگریس اور راشٹروادی کے حرام خوروں نے مہاراشٹر کا جو ستیاناس کیا ہے۔ جنتا کے جیون کو جس طرح سے نشٹ کیا ہے(عوام کی زندگی کو جس طرح برباد کیا ہے)، اسے سدھارنے کے لےے شیوسینا، بھارتیہ جنتا پارٹی کے ہریش چندر کے ہاتھ میں ستا کی چابی سونپنی ضروری ہے۔

گاندھی جی کہا کرتے تھے کہ ہندواستھان کو دنیا بھر کے بے سہاروں اور دلتوں کا آشرے استھان بننا چاہےے۔ ہندواستھان ویشوک دھرم شالہ بن چکا ہے۔ اس دھرم شالہ میں ہندواستھانیوں کی اپیکشا (کی بہ نسبت) بنگلہ دیشی اور پاکستان پریمیوں کی آبادی زیادہ ہوگئی ہے۔ شیورائے کے مہاراشٹر کی حالت کچھ زیادہ ہی دےنیےے (قابل رحم) ہے۔ دھرم شالہ میں بھی کسی مالک کی انومتی (اجازت) کی آوشیکتا (ضرورت) ہوتی ہے۔ ممبئی اور مہاراشٹر کو آﺅ جاﺅ، گھر اپنا ہے والی دھرم شالہ بنادی گئی ہے۔ ممبئی کی چھاتی پر بنگلہ دیشی سوار ہوگئے ہیں، اس لےے ہمارا پکا ارادہ ہے کہ سرکار میں آنے پر ہم ممبئی میں پرمٹ سسٹم لاگو کریں گے............ ................ کانگریس والوں نے مہاراشٹر واسیوں کو توڑ کر ستا پر قبضہ کرنے کا سوپن (خواب) سنجویا ہے۔ اس کے لےے منسے جیسی نالائق اولاد کو ہاتھ میں لے کر راج کرن (اقتدار) کا گج کرن (ہتھیار) چلایا ہے۔

یہ گج کرن مسلم لیگ کی اپیکشا(بہ نسبت) زیادہ بھینکر (خطرناک) ہے۔ مسلم لیگ اور اس کے محمد علی جناح نے دھرم کے نام پر کھلم کھلا پاکستان بنایا ہے۔ دیش کو توڑا، خون کی ندیاں بہائیں اور ہمیشہ ہمیشہ کے لےے ہندواستھان کے ہندوو¿ں کو دکھی اور آاِستھر (غیرمستحکم) کیا۔ انگریزوں نے جناح کی کھونپڑی میں زہر گھول کر اس کے ہاتھ میں کلہاڑی سونپ دی۔ اس کلہاڑی سے ہندوستان کے دو ٹکڑے کر دئےے گئے۔ کانگریس والے مہاراشٹر اور مراٹھی مانس کے لےے وہی بٹوارے کے بیج بو چکے ہیں۔ اس سمے (وقت) محمد علی جناح تھا، ادھر گھر والا ہی جناح ہے۔“یہ عبارت تھی مہاراشٹر ممبئی سے شائع ہونے والے مراٹھی اور ہندی اخبار ”دوپہر کا سامنا“ کے ادارےے کی، جس کے سروے سروا ہےں بالا صاحب ٹھاکرے۔ وہی بالا صاحب ٹھاکرے جو شیوسینا کے سپریمو بھی ہیں۔ وہ کانگریس یا این سی پی کے لےے کیا نظریہ رکھتے ہیں، یہ کانگریس اور این سی پی والے جانیں یا وہ جانیں، ہمیں اس پر کچھ نہیں کہنا۔ بال ٹھاکرے اپنے بھتیجے راج ٹھاکرے کو جو چاہے کہےں، یہ ان کا گھریلو معاملہ ہے۔

جیسا کہ خود اپنی تحریر میں انہوں نے اسے گھروالا قرار دیا ہے، مگر اگر راج ٹھاکرے کو جناح کہا جائے گا تو پھر ہمیں تاریخ کے دامن میں جھانک کر دیکھنا ہوگا۔ تقسیم وطن کے حالات پر غور کرنا ہوگا۔ محمد علی جناح کے عمل پر غور کرنا ہوگا۔ محمد علی جناح کے رول پر نظرثانی کرنی ہوگی اور آج کے جناح بقول بال ٹھاکرے یعنی راج ٹھاکرے کے کردار کو سمجھنا ہوگا۔ گزشتہ دوروز میں اس پر کافی کچھ لکھا ہے، آئندہ بھی لکھنے کی ضرورت پڑسکتی ہے، اس درمیان ”این ڈی ٹی وی“ نے بھی اپنے خاص پروگرام میں اس ایشو کو اٹھایا ہے، لہٰذا آج کی اس تحریر میں جناح کے حوالے سے کہی گئی بات پر بحث نہیں کرنا ہے، بلکہ اس تحریر میں جو دیگر باتیں کہی گئی ہیں اس پر قارئین کرام کی توجہ دلانا چاہتے ہیں۔ ہم نے زبان کا ذکر اس لےے کیا تھا کہ اس سے سامنے والے کے کردار کو سمجھنے کا موقع ملتا ہے۔

اگر یہ سامنے والا کوئی عام انسان ہے، تب ہم اس کی بات کو نظرانداز کرسکتے ہیں۔ اس پر زیادہ توجہ یا بحث کی ضرورت محسوس نہیں کرتے، لیکن وہی شخص اگر ہمارا رہنما بننے کا دعویٰ کرتا ہو، ریاست کا سربراہ بننے کا خواہاں ہو، تب ہمیں غور کرنا ضروری لگتا ہے، اس لےے کہ ہم اپنا مستقبل کسی ایسے بداخلاق شخص کے ہاتھوں میں کیسے سونپ سکتے ہیں، جسے بات کرنے کا سلیقہ بھی نہ ہو، جو کچھ بھی کہا گیا اس ادارےے میں اس کا مفہوم تو وہی رہ سکتا تھا، ہاں مگر زبان شائستہ ہوسکتی تھی۔ بنگلہ دیشیوں اور پاکستان سے محبت کرنے والوں کا حوالہ کن کے لےے اور کیوں دیا گیا ہے، یہ بھی کسی سے چھپا نہیں ہے۔ اس کا ذکر بھی ہم ذرا آگے چل کر کریں گے۔ اس وقت جس خاص بات پر توجہ دلانا ضروری ہے، وہ یہ ہے کہ اگر برسراقتدار آئے تو ہمارا پکا ارادہ کہ ہم ممبئی میں پرمٹ سسٹم لاگو کریں گے، یعنی اپنے ہی ملک میں ایک شہر سے دوسرے شہر جانے کے لےے یعنی ملک کے کسی بھی حصہ سے ممبئی میں داخل ہونے کے لےے پرمٹ کی ضرورت ہوگی۔

بالفاظ دیگر ملک کے اندر ہی ایک اور پاسپورٹ درکار ہوگا۔ اس بات کا تعلق کسی مذہب، ذات یا فرقہ سے نہیں، بلکہ ان تمام ہندوستانیوں سے ہے جبکہ ممبئی کو ممبئی بنانے میں، ممبئی کو ہندوستان کی اقتصادی راجدھانی بنانے کے لےے بہتوں نے اہم کردار ادا کیا ہے۔ ہم بے حد ادب کے ساتھ بال ٹھاکرے صاحب کی خدمت میں عرض کرنا چاہتے ہیں کہ ممبئی ہی نہیں، پورے ہندوستان کا سب سے بڑا تاجر گھرانہ مکیش امبانی اور انل امبانی ممبئی میں رہتے ہیں، لیکن دھیروبھائی امبانی کا تعلق گجرات سے تھا۔ شہنشاہِ جذبات دلیپ کمار عرف یوسف خان اور کپور خاندان پشاور سے آکر ممبئی میں بسے۔ دھرمیندر، سنیل دت اور ونودکھنہ ان سبھی کا تعلق پنجاب سے تھا۔ دنیا بھر میں اپنی طاقت کا لوہا منوانے والے داراسنگھ بھی اسی زمین سے تعلق رکھتے تھے۔

بالی ووڈ کے شہنشاہ امیتابھ بچن کا خاندان اترپردیش کے الٰہ آباد سے تعلق رکھتا ہے تو بادشاہ خان یعنی شاہ رُخ خان کا تعلق دہلی سے ہے۔ وجینتی مالا اور ریکھا سے لے کر رانی مکھرجی، سشمتا سین، ایشوریہ رائے تک سبھی مغربی بنگال یا جنوبی ہند سے آنے والی اداکارائیں ہیں۔ فیروز خان، سنجے خان، سمیرخان، اکبرخان ان سب کا تعلق بنگلور سے ہے تو اپنی اداکاری کا لوہا منوانے والی جیہ پردا اور تبو آندھراپردیش سے ہیں۔ محمد رفیع، نوشاد جیسے ناموں میں سے کوئی بھی مراٹھی نہیں۔ اگر ان سب کو الگ کردیں تو ممبئی میں کیا رہ جاتا ہے؟ جو عزت، دولت اور شہرت کماکر انہوں نے اور ان جیسی شخصیتوں نے ممبئی کو دیں اور دنیا کے نقشہ پر ایک باحیثیت نام بنایا، آخر وہ ان کے سواکون لوگ ہیں، جن کا نام لیا جاسکے؟ ٹھاکرے کے خاندان یا بھارتیہ جنتا پارٹی کے لیڈران، جن میں نریندر مودی جیسے نام آج سرفہرست نظر آتے ہیں، انہیں کس روپ میں دیکھا جاتا ہے، یہ کسی سے چھپا ہے؟

کیا یہ وہی نریندر مودی نہیں ہیں، جنہیں گجرات فسادات کے بعد وزیراعلیٰ رہتے ہوئے بھی امریکہ اور انگلینڈ میں داخلہ کی اجازت نہیں دی گئی تھی۔ بال ٹھاکرے، اودھو ٹھاکرے، راج ٹھاکرے قومی اور بین الاقوامی سطح پر کن باتوں کے لےے مقبول ہیں، یہ زمانہ جانتا ہے۔ انہوں نے ممبئی کو ممبئی بنانے میں کون سا کردار نبھایا ہے، یہ شری کرشن کمیشن کی رپورٹ میں صاف صاف درج ہے۔ چند سطریں بطور حوالہ پیش خدمت ہیں:

(1)22جون 1997کو شری کرشنا کمےشن کوموہت نام کے شخص نے اپنے بےان مےں کہا کہ فون کالس کے سبب مےری اور شےوسےنا چےف کی بات مےں رخنہ پڑرہاتھا۔وہ اےک ساتھ کئی فون پر بول رہے تھے اور جےسا مےں نے سنا اور سمجھا ۔ وہ سےنا کے کارکنوں کو مسلمانوں پر حملہ کرنے کے لئے حکم دے رہے تھے۔ مراٹھی مےں انہوں نے ’سرلا نڈےا نامارون ٹاکا‘ کہا۔ فون کرنے والے کو ہداےت دی کہ خےال رہے کوئی بھی مسلمان عدالت مےں گواہی دےنے کے لئے زندہ نہ بچنے پائے۔(2)کمےشن کی رپورٹ کہتی ہے کہ ”8جنوری 1993سے اس بات مےں کوئی شک نہےں ہے کہ مسلمانوں اور ان کی املاک پر منظم انداز مےں حملہ کرنے مےں شےوسےنا اور شےوسےنکوں نے کلےدی رول ادا کےا اور ےہ سب کچھ پارٹی کے کئی لےڈروں شاکھا پرمکھ سے لے کر شےوسےنا پر مکھ کی نگرانی مےں ہوا۔

سےنا پرمکھ نے اےک تجربہ کار جنرل کی طرح اپنے وفادار شےوسےنکوں کو مسلمانوں پر منظم انداز مےں حملے کے ذرےعہ بدلہ لےنے کا حکم دےا۔ شےوسےنا کے ذرےعہ فرقہ وارانہ فسادات بھڑکائے گئے اور اس کا استعمال جرائم پےشہ افراد نے اےک موقع کے طور پر کےا۔ جب تک شےوسےنا ےہ جان پائی کہ بدلے کے نام پر بہت کچھ کےا جاچکاہے تب تک حالات ان کے لےڈروں کے قابو سے باہر ہوگئے تھے اور ان کے لےڈروں کو اسے ختم کرنے کی اپےل کرنی پڑی۔“(3)کمشن ےہ شامل کرنا نہےں بھولا ” ےہاں تک کہ جب ےہ واضح ہو گےا کہ شےوسےنا کے لےڈران ہی فرقہ وارانہ فساد کی آگ لگانے مےں شامل رہے ہےں، تب پولس نے کہا کہ اگر اےسے لےڈران کو حراست مےں لےا جاتا ہے تو فرقہ وارانہ حالات اور بھی بدتر ہوسکتے ہےں اور وزےراعلیٰ سدھا کر راﺅ نائک کے لفظوں مےں کہےں تو ’بامبے مےں آگ لگ جائے گی‘ ۔جیسا کہ ہم نے اپنی کل کی تحریر میں لکھا تھا کہ بھارتیہ جنتا پارٹی اور شیوسینا کی کارکردگی کو سامنے رکھنے کے لےے ہمارے پاس گجرات فسادات اور شری کرشن کمیشن کی رپورٹ میں درج ایسے متعدد واقعات ہیں، جن سے ان پارٹیوں کے مزاج کوسمجھا جاسکتا ہے، لیکن میں اپنی آج کی اور آنے والے کل کی تحریر میں یہ واضح کردینا چاہتا ہوں کہ دراصل مسلم دشمنی کے نام پر ہندوتو کا ڈھنڈورا پیٹنے والی یہ پارٹیاں ہندوو¿ں کی نمائندہ پارٹیاں ہوہی نہیں سکتیں، بلکہ جہاں انہوں نے ایک طرف مسلمانوں کے قتل عام اور ان پر کےے جانے والے مظالم کی وجہ سے ان کے دلوں میں نفرت اور ناراضگی پیدا کی ہے، وہیں ہندوبھائیوں کو بھی کچھ کم اذیتیں نہیں پہنچائی ہیں۔ اس ذہنیت نے جو پہلا قتل کیا، وہ راشٹرپتا مہاتما گاندھی کا تھا، جو ایک ہندو تھے۔ سارے ہندوستان میں خود کو کٹرہندووادی بتاکر ہندوبھائیوں کا نام اپنے ساتھ جوڑ کر کبھی ہندو-مسلم، کبھی ہندو-سکھ تو کبھی ہندواورعیسائی کے درمیان خلیج پیدا کرتے رہے۔

پنجاب میں جو کچھ ہوا، وہ ہندو اور مسلمانوں کے درمیان نہیں، ہندوو¿ں اورسکھوں کے درمیان تھا۔اڑیسہ اور کرناٹک میں جو گرجاگھر نذرآتش کےے گئے، اس سے ہندوﺅں اور عیسائیوں کے درمیان خلیج پیدا ہوئی۔ بابری مسجد سانحہ اور گجرات فسادات نے ہندوو¿ں اور مسلمانوں کے درمیان نفرت کی دیوار کھڑی کی۔ کیا یہ سب کچھ ملک کی ترقی اور امن و امان میں کارگر ثابت ہوسکتا ہے؟ نہیں، قطعاً نہیں.... بلکہ یہ سوچ، یہ ذہنیت ملک کی ترقی میں سب سے بڑی رکاوٹ ہے۔ ہندو اور مسلمان کے درمیان، یعنی بھائی بھائی کے درمیان یہ نفرت کی سب سے بڑی وجہ ہے۔ آج جب دنیا کی بڑی طاقتیں پھر سے ہمیں اپنا غلام بنانے کی کوششوں میں مصروف ہیں، آج جبکہ ہمارے اپنے پڑوسیوں سے رشتے بہت خوشگوار نہیں ہیں، آج جب ہم دہشت گردی کے سائے میں جینے کو مجبور ہوگئے ہیں، ایسے میں اپنی سیاست کے لےے نفرت کے بیج بونے والوں کو نہ تو تاریخ کبھی معاف کرے گی اور نہ آج ہمیں ان کے جھوٹے فریب میں آنا چاہےے۔

دراصل یہی وہ لوگ ہیں، یہی وہ ذہنیت ہے، جس نے پہلے بھی اس ملک کے ٹکڑے کےے اور آج علیحدگی پسندی کا مزاج پیدا کرکے ریاستوںکو سرحد کی دیواروں میں بانٹ دینے کی سازشیں رچ رہی ہیں۔ ان کا نام کبھی جناح ہوتا ہے تو کبھی کوئی ٹھاکرے ہندوستان کی سالمیت اور قومی یکجہتی کو نقصان پہنچانے کے لےے سامنے آجاتا ہے۔ ہمیں ان چہروں کو مذہب کی بنیادوں پر نہیں دیکھنا چاہےے۔ علاقائیت یا زبان کے حوالہ سے بھی نہیں دیکھنا چاہےے، ضرورت ہے تو صرف اور صرف انہیں ان کے کردار اور ان کی ذہنیت سے انہیں پہچاننے کی۔

ایک آخری جملہ لکھ کر میں اپنی آج کی اس تحریر کو ختم کرتا ہوں کہ تمام دنیا میں کشمیریوں کی علیحدگی پسندی کا چرچا ہے، مگر کشمیر کی سرحد میں داخل ہونے کے لےے پرمٹ سسٹم کی بات تو اس ریاست کے کسی ایسے ذمہ دار نے بھی نہیں کی، جس کا قد شیوسینا کے سربراہ جیسا ہو اور جو ریاست میں برسراقتدار آنے کا دعویدار ہو، لہٰذا اس بات کو یونہی نظرانداز نہیں کیا جاسکتا کیوں کہ اس کا تعلق ہر ہندوستانی سے ہے۔ ہندوستان کی سالمیت سے ہے، فرقہ وارانہ ہم آہنگی سے ہے، قومی یکجہتی میں ہے۔



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