Sunday, September 27, 2009

.............तो इस गरीब की भी ईद हो जाए!

इस जहां की रस्मों को यूं निभाना पड़ता है
ग़म हज़ार हों फिर भी मुस्कुराना पड़ता है
रमज़ानुल मुबारक
के महीने में जब मैं अपना अंतिम लेख लिख रहा था तो अगला दिन ईद का दिन था अर्थात हम मुसलमानों के लिए सबसे बड़ी खुशी का दिन। मगर क्या यह हम सबकेे भाग्य में था? शायद नहीं बल्कि निश्चित रूप से नहीं... हां हम में से बहुत से लोग भाग्यशाली हैं, जिनमें अल्लाह के करम से मैं स्वंय भी हूं कि तमाम दुख दर्द से दूर रहकर यह खुशी मना सकते थे, मगर ऐसे नाम और चेहरे उस समय भी मेरे मन में थे, जिन के दर्द ने पुरी तरह मुझे खुशियों में डूबने न दिया। शायद यही कारण रहा कि पूर्व के भांति मैं इस बार ईद की नमाज़ अदा करने अपने पैतृक नगर बुलन्दशहर न जा सका और नोएडा के ही एक मस्जिद में नमाज़ अदा की।

रमज़ानुल मुबारक का अंतिम लेख लिखते समय मैं ने यह गुंजाईश बाक़ी रखी थी कि इस सिलसिलेवार लेख की अगली क़िस्त ईद के बाद लिखी जायेगी अर्थात यह लेख ईद के ठीक एक दिन बाद भी लिखा जा सकता था और दो तीन दिन के विराम के बाद भी। दरअसल रमज़ानुल मुबारक का अंतिम सप्ताह सारी व्यस्तताओं के बावजूद कई प्रकार के मानसिक तनाव से भरा रहा। कोटा, राजस्थान के मुमसाद असदक़ साहब लगातार फोन करके मुझे अपने बेटे की गुमशुदगी के सम्बन्ध में बताते रहे थे। लगभग रोज़ाना उनका फोन आता, उनकी बेचैनी मेरे लिए भी निराशा और पीड़ा का कारण थी। निराशा इसलिए कि अपेक्षानुसार सफलता नहीं मिल रही थी तथा पीड़ा इसलिए कि एक ओर इस समुदाय को यह ताना सुनना पड़ता है कि यह समुदाय शिक्षा से दूर है, अनपढ़ है गंवार है और दुसरी ओर शिक्षित युवकों के सर पर मंडराता हुआ यह खतरा जो रह रहकर यह सोचने पर मजबूर करता था कि कहीं यह मुस्लिम युवकों को शिक्षा से विमुख करने के एक सोचे समझे षड्यंत्र का भाग तो नहीं है।

एक दूसरी परेशानी थी मेरे संवाद्दाता को प्राप्त होने वाली धमकियां। चांद रात को श्रीनगर से मेरे संवादद्ाता ‘सरीर खालिद’ ने अत्यन्त परेशानी की अवस्था में रोते हुए मुझे फोन पर बताया कि उसका जीवन खतरे में है, उसे लगातार धमकियां मिल रही हैं। उसकी पत्नी भी लगातार भयभीत है तथा रोये जा रही है। मैंने उनको सान्तवना दी, फिर उसके बार बार कहने पर उसकी पत्नी से भी बात की। उसकी गलती केवल यह थी कि उसने एक पत्रकार के रूप में अपना दायित्व निभाते हुए एक लेख लिखा जो राज्य के एक चर्चित व्यक्ति के समर्थकों को असहनीय लगा। इस लेख की चंद लाईनें पाठकों की सेवा में प्रस्तुत की जा रही हैंः

‘‘विवाह तो एक सुन्नत है और किसी भी व्यक्ति का निजी मामला है। लेकिन कश्मीर में ऐसी कई विधवाएंे हैं जिनके पति यासीन मलिक के नेतृत्व में लड़ते हुए मारे गये। यासीन मलिक उनमें से किसी के साथ या फिर किसी ऐसी युवती के साथ विवाह कर सकते थे, जिसके माता-पिता वर्तमान आन्दोलन के बीच मारे गये हों। हमारे यहां तो ऐसी अनगिनत युवतियां साधनों की अनापूर्ति के कारण विवाह करने से रह गई हैं’’। उनका कहना हैः ‘‘ऐसे में यासीन मलिक एक उदाहरण प्रस्तुत कर सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।’’ कश्मीर विश्वविद्यालय के एक छात्र कहते हैंः ‘‘ फिर सबसे बड़ी बात यह कि यासीन मलिक को कोई हंगामा किये बिना दुल्हन को ले आना चाहिए था। मगर जिस प्रकार से लिबरेशन फ्रंट ने इसे एक संस्थापक बल्कि राष्ट्रीय समारोह के रंग में प्रस्तुत करने का प्रयास किया। वह परेशान हाल कश्मीरी जनता के एक बड़े लीडर के लिए शोभनीय नहीं था’’। कुछ लोगों को ‘‘मुशाल’’ के काम पर आपत्ति है कि वह महिलाओं के नग्न चित्र बनाती हैं, जो कि सभ्य समाज तथा इस्लाम के विरूद्ध है। कश्मीर में एक अनुमान के अनुसार ऐसी हजारों महिलाऐं हैं जिनके पति शस्त्र झड़पों में या हिरासत के दौरान मारे गये और वह 25 वर्ष से कम आयु में विधवा हो गईं और अब असहाय का जीवन व्यतीत कर रही हैं। महिला संस्था ‘‘दुख़्तराने मिल्लत’’ की अध्यक्षा सैयदा आसिया इंद्रावी ने कुछ वर्ष पूर्व यह कहा था कि कश्मीरी पुरूषों को दूसरे विवाह के लिए तैयार होकर अल्प आयु में विधवा हो चुकी उन युवतियों को अपनाना चाहिए ताकि उन (विधवाओं) का सही तरीके से पुनर्वास संभव हो सके’’।

इस लेख में ऐसा क्या था,जो इतना बुरा लगा कि मार डालने की धमकियां दी जाने लगी। यह कुछ लोगों के विचार थे जो सरीर ख़ालिद के लेख का एक भाग थे। किसी भी बड़े व्यक्ति को ऐसी बातों के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए। जब किसी का व्यक्तित्व उसके अपने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि जनता के बीच लोकप्रिय होता है तो बहुत लोगों की भावनांए उससे जुड़ी होती हैं। लोग अपने अपने तरीके से उस पर टिप्पणी करने लगते हैं। इतनी सी बात पर इतना बड़ा हंगामा क्यों? बहरहाल चांद रात के बाद ईद का दिन भी मेरे संवाद्दाता तथा उसकी पत्नी के लिए डरावना दिन था। उन्होंने ईद की नमाज़ ईदगाह के बजाये परिपुरा की एक छोटी सी मस्जिद में उसने नमाज़ अदा की। मैं दिन भर चिंतित रहा, कभी सरीर ख़ालिद के लिए तो कभी शादाब असदक़ के लिए, लोग आते रहे जाते रहे, में मुस्कुराकर उनका स्वागत करता रहा मगर शायद ईद जैसी खुशी का माहौल नहीं था। उस समय भी नहीं जब समाजवादी पार्टी के महासचिव एवं प्रवक्ता ठाकुर अमर सिंह ईद मिलने के लिए घर तशरीफ़ लाए।

डेढ़ घंटे उनके साथ रहने के दौरान मैं केवल उनकी जिन्दा दिली और खुशमिज़ाजी को देखता रहा, हां मेहमान खाने में उपस्थित अन्य अतिथि अवश्य ईद का आनन्द लेते रहे। इसी बीच मैंने सरीर खालिद से फोन पर बात करके उसकी खैरियत जानना चाहा और जब संतोषजनक जवाब मिला तो मैं मेहमान नवाज़ी के दायित्व की ओर मुड़ा। यहां अमर सिंह जी का पधारना और लम्बी बातचीत का उल्लेख करना इसलिए भी अनिवार्य लगा कि ठाकुर अमर सिंह जी के निमंत्रण पर उबैदुल्लाह खां आज़मी साहब समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये हैं तथा वह पार्टी के महासचिव भी नियुक्त किये गये हैं। यह ताज़ा समाचार ईद के तुरंत बाद आया। दोनों बातों पर टिप्पणी बाद में, अभी बात उसी विषय पर जहां से बात आरंभ की थी। मेरी मेज पर इस समय भी दो प्रमुख पत्र रखे हैं, एक मुमसाद असदक़ साहब का, जो उन्होंने गृहमंत्री पी.चिदम्बरम के नाम लिखा है। यह पत्र मेरे ही कार्यालय से गृहमंत्री तथा प्रधानमंत्री के निवास तथा कार्यालय को फैक्स किया गया। इसलिए कि मुमसाद असदक़ साहब न तो मानसिक रूप से गृहमंत्री के नाम पत्र लिख पाने के स्थिति में थे न ही उन्हें गृहमंत्री तथा प्रधानमंत्री के नम्बर प्राप्त थे।

इसलिए मेरे कार्यालय से ही यह पत्र ड्राफ्ट करके उन्हें प्रेषित किया गया तथा जब इसे पढ़कर उन्होंने हस्ताक्षर कर दिये तब गृहमंत्री की सेवा में प्रेषित किया गया और उसकी एक प्रति प्रधानमंत्री के कार्यालय मंे भी फैक्स की गई ताकि शादाब असदक़ की तलाश में उचित क़दम उठाया जा सके।
सेवा में,
मान्नीय पी. चिदम्बरम
गृहमंत्री, भारत सरकार
नार्थ ब्लाक, नई दिल्ली
विषयः- गुमशुदा बेटे के मामले में गति लाने हेतु आवेदन
श्रीमान,
मेरा पुत्र शादाब असदक़, आयु 26 वर्ष, व्यवसायिक रूप से आईटी इंजीनियर तथा मेसर्स आईएल (इंटरोमेशन लिमिटेड, भारत सरकार का उपक्रम) में कांट्रेक्ट इंजीनियर के रूप में कार्यरत था।
वह 23 अगस्त 2009 को डिप्टी जीएम (कार्मिश्यल) रवि प्रभाकर के साथ आईएल की ओर से निविदा दाखिल करने हैदराबाद गया था। वह 07.09.09 को सिकंदिराबाद से सिकंदिराबाद- जयपुर स्पेशल ट्रेन(ंनम्बर 0995) द्वारा कोच नम्बर एचए1 बर्थ नम्बर 12 में कोटा वापस आ रहा था।
8.09.09 को लगभग 7.00बजे कोच अटेंडेन्ट गोपीचंद ने मोबाईल (09461163518)द्वारा मेरे लैंड लाईन फोन पर मुझे सूचना दी कि शादाब असदक़ 4-5 घंटे से अपनी सीट पर नहीं हैं और उसका सामान बर्थ पर पड़ा हुआ है। इस सूचना के बाद मैं कोटा रेलवे स्टेशन पहुंचा तथा जीआरपी एवं रेलवे कर्मचारियों की सहायता से उसका समान उठाया।
काफी प्रतीक्षा के बाद मैंने कोटा जीआरपी में एफआईआर लिखवाई (एफआइआर नम्बर 4973,दिनांक 09.09.09)अभी तक मेरे बेटे की कोई सूचना नहीं मिली है। मेरा सम्बंध अत्यन्त निचले मध्यम वर्ग से है। मेरा बेटा परिवार का अकेला कमाने वाला है।
मैं विवश हूं और अपने बेटे के सम्बंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए अकेला इधर से उधर भटक रहा हूं लेकिन कोई परिणाम नहीं निकल पा रहा है। रेलवे कर्मचारी , पुलिस तथा उसकी फर्म मेसर्स आईएल इस मामले में गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं वह केवल औपचारिकता निभा रहे हैं।
मेरा आप से निवेदन है कि मेरे बेटे का पता लगाने के सिलसिले में संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश देने का कष्ट करें। मैं और मेरा परिवार आपका अभारी होगा और अल्लाह ताला इसका नेक बदला देगा।
धन्यवाद सहित
आपका विश्वसनीय-मुमसाद असदक
मकान नम्बर-73-डी, आईएल टाउनशिप
कोटा (5) राजस्थानः324005
मोबाइल नम्बरः09982330307, निवास नम्बरः0744-2428306
संलग्नः एफआईआर की कापी
प्रतिलिपीः मान्नीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार नई दिल्ली।
दूसरा पत्र जो मेरे सामने है वह जस्टिस सुहैल एजाज सिद्दीकी साहब का है। भारत सरकार के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के शिक्षण इंस्टीटयूशन के अध्यक्ष हैं। आपने अपने पत्र के साथ ‘‘अल्पसंख्यकों के शिक्षा अधिकार की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग शिक्षण संस्थान की पहल ’’ के शीर्षक से जो पुस्तक भेजी थी उसके ‘‘पैशलफ़्ज’’ को पढ़ रहा था, जिसमें लिखा हैः
‘‘अल्पसंख्यकों की समस्याओं, विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक जो भारत के सबसे बड़ी अल्पसंख्यक है कि निदान तथा उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार दिलवाने, उनपर किसी भी अत्याचार तथा अन्याय के विरूद्ध निदान की कार्रवाई करने के लिए कंेद्रीय सरकार का राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग मौजूद है। इसके अलावा भी कई राज्यों ने अपने राज्य अल्पसंख्यक आयोग गठन किये हुए हैं।
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के गठन के काफी समय बाद भी जब मुस्लिम अल्पसंख्यक की शिक्षा, स्कूल, मदरसे तथा संस्थाओं की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन या सुधार नहीं हुआ तो भारत सरकार इस निर्णय पर पहुंची के शिक्षा तथा शिक्षण संस्थानों पर जबतक विशेष ध्यान नहीं दिया जायेगा तब तक कोई भी अल्पसंख्यक विशेष रूप से मुस्लिम अल्पसंख्यक की शिक्षा या शिक्षा के स्तर में सुधार संभव नहीं। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की आवश्यकता इसलिए भी महसूस की गई कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकार की सुरक्षा किसी एक्ट द्वारा की जा सकती है’’।

श्रीमान सुहैल सिद्दीकी साहब तथा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जनाब मोहम्मद शफी कुरैशी साहब की सेवा में सादर निवेदन है कि आयोग जिस उद्देश्य के लिए गठित किया गया था, क्या वह उद्देश्य प्राप्त हो पा रहा है? यदि हां तो फिर इस प्रकार की समस्याऐं क्यों सामने आती कि एक विवश और असहाय बाप को ऐसी समस्याओं का हल नहीं मिलता और अगर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ऐसी समस्याओं का हल तलाश नहीं कर पा रहा है तो क्या यह संभव है कि आप लोग अपने विशेष प्रयास के साथ कुछ ऐसे कदम उठायें कि यह आयोग इन समस्यओं के लिए सहायक सिद्ध हो सके। अब तो अल्पसंख्यकों के लिए अलग से एक मंत्रालय भी गठित कर दिया गया है, अगर एक मंत्रालय और आयोग मिलकर भी ऐसी समस्याओं का समाधान खोज नहीं पायेंगे तो इस समुदाय की पीड़ा कौन दूर करेगा?

और अब अन्त में उल्लेख ईद के बाद ईद के उल्लास का। 24 सितम्बर को दिल्ली में जमीयत उलेमा की ओर से ईदमिलन के भव्य समारोह का आयोजन किया गया। एक मौलाना महमूद मदनी की ओर से होटल ली मैरिडयन में तथा दुसरा कांस्टीटयूशन क्लब में मौलाना अरशद मदनी साहब की ओर से। दोनों ही समारोह अत्यन्त भव्य तथा शानदार कहे जा सकते हैं, जिनका उल्लेख किसी दूसरे लेख में किया जायेगा। इस समय यह कुछ वाक्य केवल इसलिए कि अनेक प्रमुख व्यक्ति इन समारोहों में शामिल होने के लिए पधारे, जिनमें उपराष्ट्रपति, केंद्रीय मंत्री, दिल्ली की मुख्यमंत्री से लेकर अनेक सांसद शामिल थे, अगर उन दोनों समारोंहों के आयोजक अपने इन अतिथियों की सेवा में अपने एक पत्र के साथ कोटा राजस्थान के उस ग़रीब असहाय बाप की पीड़ा लिखकर उन से सहायता का निवेदन कर सकें तथा गृहमंत्री से उस गुमशुदा युवक का पता लगाने के मामले में रूचि लेने पर ज़ोर दें तो शायद अपने एकलौते बेटे के शोक में आंसू बहा रहे उस व्यक्ति के चेहरे पर भी मुस्कान आ जाए और विलम्ब से ही सही वह भी ईद मना सके।

नोटः मौलाना उबैदुल्लाह आज़मी साहब के समाजवादी पार्टी में शामिल होने पर लेख कल।
नीचे पी डी ऍफ़ की लिंक दी जारही है
http://groups.google.com/group/aziz-burney/web/to%20is%20gareeb%20ki%20bhi%20idd%20ho%20jaaye.pdf?hl=en

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