Monday, March 23, 2009

आज़म खान आख़िर चाहते क्या हैं?

आज़म खान नाराज़ हैं और समाजवादी पार्टी की बैठकों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। इस से पहले वो विधानसभा की कार्यवाही में भी हिस्सा नहीं ले रहे थे, यहाँ तक के अपनी पार्टी के मुख्य मुलायम सिंह यादव का फोन भी रिसीव नहीं कर रहे थे। मुलायम सिंह जब हर प्रकार के प्रयास करके थक गए तब उन्होंने यह शिकायत मीडिया के सामने की के आज़म खान मेरा फोन नहीं उठाते। मुलायम सिंह ने यह भी कहा के वो जहाँ कहें मैं उन से जाकर मिल सकता हूँ, कम से कम वो अपनी बात तो सामने रखें, उनकी हर शिकायत दूर की जायेगी। इस का प्रभाव पड़ा, मुलायम सिंह के इस दर्द भरे अंदाज़ का आज़म खान पर और वो अगले ही दिन दिल्ली में उन के घर पहुँच गए। लेखक की इस दौरान लगातार आज़म खान साहब से बात चीत होती रही थी और १८ मार्च को भी जब वो मुलायम सिंह से मिलने के लिए जा रहे थे तब भी लगभग आधा घंटा फोन पर बात हुई थी, अगर उस दिन सब कुछ सामान्य रहता तो मुलायम सिंह जी से मुलाक़ात करने के बाद ३-४ बजे के बीच हम दोनों की मुलाक़ात तय थी लेकिन आज़म खान और मुलायम सिंह जी की यह मुलाकात लम्बी हो गई........इस के बाद आज़म खान जनेशवर मिश्रा साहब से मिलने उनके घर चले गए जहाँ समाजवादी पार्टी के दोनों लीडरों की बात चीत पर आधारित एक बयान मीडिया के लिए जारी किया जाना था। बयान जारी भी हुआ, परन्तु यह पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का बयान था। जिस में आज़म खान से बात चीत का हवाला दिया गया था। इस का ऐसा संदेश था की दोनों नेता किसी एक नतीजे पर पहुँच गए हैं या पहुँच जायेंगे और डेढ़ दो महीने से पैदा हुई यह दूरी समाप्त हो जायेगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ, आज़म खान की नाराज़गी अब भी जारी है। २१ तारिख को लखनऊ में होने वाली पार्टी मीटिंग में हिस्सा न लेकर उन्होंने यह एहसास दिला दिया के मुलायम सिंह की मुलाकात अपनी जगह और तमाम मतभेद अपनी जगह।

अब सवाल यह पैदा होता है के आख़िर आज़म खान चाहते क्या हैं? क्या वे कल्याण सिंह के साथ बने रिश्तों को लेकर नाराज़ हैं? क्यूंकि कल्याण सिंह बाबरी मस्जिद की शहादत के लिए जिम्मेदार हैं। मुस्लमान उन्हें पसंद नहीं करते और आज़म खान स्वयं भी उन्हें बाबरी मस्जिद के लिए जिम्मेदार मानते हैं। लिहाज़ा पार्टी के साथ बने कल्याण के रिश्ते को वो स्वीकार नहीं कर सकते।

क्या नाराजी का कारन कल्याण सिंह नहीं........, ठाकुर अमर सिंह हैं, जिनके आज़म खान से रिश्ते पिछले काफ़ी समय से ठीक नहीं चल रहे हैं और अमर सिंह के कारन ही आज़म खान इस पार्टी में हाशिये पर चले गए हैं, जिस के निर्माताओं में वे स्वयं भी शामिल हैं और इसी एहसास ने उन्हें बगावत करने पर आमादा कर दिया है।

क्या कारण न कल्याण सिंह न अमर सिंह........बलके झगडा रामपुर की एक लोकसभा सीट है जहाँ से जया प्रदा इस समय लोक सभा की सदस्य हैं और आने वाले चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी की उमीदवार भी हैं। आज़म खान जया प्रधा को पसंद नहीं करते हैं। रामपुर से उन्हें पार्टी का उमीदवार नहीं देखना चाहते, बलके स्वयं चुनाव लड़ना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने जया परदा के काफले पर हमला कराया जैसे की खबरें आई थीं और बाद में आज़म खान के समर्थकों के विरुद्ध रिपोर्ट भी दर्ज करायी गई।

यह तीन कारण हो सकते हैं आज़म खान की नाराज़गी के अब। अब इन में से वो कौनसा कारण है यह तो आज़म खान ही बेहतर जानते होंगे। जो बात इस बीच वह बार बार यह कहते रहे हैं, वह तो यही है की कल्याण सिंह के पार्टी से रिश्ते उन्हें स्वीकार नहीं हैं। उन्होंने अमर सिंह या जया परदा से अपनी कड़वाहट को गुस्सा और नाराज़गी का कारन एक बार भी नहीं बताया। हम से जो उन्होंने कहा, वह तो यही था की मुस्लमान या कल्याण, पार्टी को दोनों में से किसी एक का चुनाव करना होगा। हमारे ख्याल में आज़म खान अगर स्पष्ट रूप से यह बात किसी जनसभा में या समस्त मीडिया के सामने कहें की आज़म खान या कल्याण समाजवादी पार्टी को दोनों में से किसी एक का चुनाव करना होगा तो बात आईने की तरह साफ़ होगी। अब समय इतना नहीं है की बात को घुमा फिरा कर कहा जाए। यदि आज़म खान कल्याण सिंह को इशु मान कर नाराज़ हैं तो साफ़ साफ़ कहें की जहाँ कल्याण है, वह वहां नहीं रह सकते लिहाज़ा अब यह पार्टी तय करे के किसे रखना है, किसे नहीं।

यदि कारन अमर सिंह हैं तो भी स्पष्ट करें की इशु कल्याण सिंह नहीं, अमर सिंह से उनके निजी रिश्तों में आई कड़वाहट है। २० मार्च की रात एक पार्टी में अमर सिंह ने अनेक मुस्लिम लीडरों की उपस्थिति में कहा की आज़म खान और उनके रिश्तों में अब इतनी कड़वाहट है की दोनों का साथ चलना मुश्किल है। आज़म खान पार्टी में सक्रीय होंगे तो वह घर बैठ जायेंगे। इस के बाद अगले ही दिन लखनऊ में समाजवादी पार्टी की मीटिंग में जहाँ अमर सिंह और मुलायम सिंह दोनों ही उपस्थित थे, आज़म खान नहीं पहुंचे, फिर भी लेकिन आज़म खान नहीं थे। आज़म खान की नाराज़गी को दूर करने के लिए तय किया गया की अगर आज़म खान रामपुर से चुनाव लड़ना चाहते हैं तो जाया परदा को वहां से हटा लिया जायेगा।

मतलब बहुत साफ़ है की पार्टी के वरिष्ट नेता मुलायम सिंह और अमर सिंह, आज़म खान की नाराज़गी का कारन रामपुर से जाया परदा की जगह उनके चुनाव लड़ने की इच्छा को मानते हैं बाकी आज़म खान या अमर सिंह के निजी रिश्तों को। यदि आज़म खान की नाराज़गी का कारन यही है तो यह उनका निजी मामला है। इस से मुसलमानों को क्या लेना देना और यदि कारन यह नहीं कल्याण सिंह से बना सम्बन्ध है तो फिर लुका छुपी का खेल खेलने की बजाय छाती ठोंक कर कहना होगा की उनके लिए इशु रामपुर की सीट और अमर सिंह से रिश्ते नहीं, बलके कल्याण की मुस्लिम विरोधी सोच और पार्टी से बने उनके रिश्ते हैं।

उन्हें यह भी स्पष्ट करना होगा की उनकी पार्टी के नेता लगातार कहते रहे हैं की कल्याण सिंह और आज़म खान तो उस समय एक प्लेट फॉर्म पर खड़े नज़र आते थे, जब मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह की मदद लेकर उत्तर परदेश में सरकार बनाई थी, जिस में आज़म खान भी मंत्री थे। कल्याण के बेटे, राजवीर और उनकी नजदीकी कुसुम राय भी मंत्री थीं। यदि उस समय भारतीय जनता पार्टी छोड़ कर आए कल्याण सिंह पर आज़म खान को कोई एतराज़ नहीं था तो आज हाय तौबा क्यूँ? आज़म खान ने पूरे घटना क्रम की जानकारी परिस्थितियों का उत्तर सामने रखते हुए लेखक को बताया की दोनों बातों में फर्क क्या है, मगर यह दोनों की निजी बात चीत थी, बेहतर होगा की आज़म खान का आज भी दृष्टीकोण वही है तो वह सबके सामने रखें ताके जनता के सामने पूरी बात आईने की तरह साफ़ हो। अगर वास्तव में इशु कल्याण है और वह यह मानते हैं की कल्याण सिंह मुसलमानों के अपराधी हैं, उनका अपराध क्षमा योग्य नहीं है और इसी बुन्याद पर वो पार्टी से नाराज़ हैं और उन का यह फ़ैसला राष्ट्र और मुसलमानों के हित में है। अपने इस फैसले को लेकर जनता के सामने आना चाहिए। यह ऐसी बात नहीं है, जिसे दिल में रख कर वो अपने घर बैठ जाएँ और यदि कारन अमर सिंह या जाया परदा हैं तो फिर चाहे वह घर बैठें, राजनीती छोडें या राज बब्बर और बैनी प्रसाद वर्मा की तरह ताल ठोंक कर मैदान में आयें........फ़ैसला उनका।

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