Sunday, December 7, 2008

१९९३ के अतिरिक्त सभी आतंकवादी घटनाएं संघ व मोसाद की साजिश का नतीजा हैं!

करकरे इस सच्चाई को सामने ला रहे थे

इस प्रमाण के बारे में आप का क्या कहना है? आप इस का अनुवाद करके इसे अपने ब्लॉग में क्यूँ नहीं डाल देते? क्या यह सही नहीं है की आप और आपके मित्र गाँधी के हत्यारों के लिए सहानुभूति रखते हैं?

कृपया इसे ध्यान से पढ़ें: १९९१ तक आर एस एस का आतंकवाद सन्वेदन्विहिन पड़ा हुआ था क्यूंकि कांग्रेस ने उसे दबा दिया था और इस लिए भी सोवियत संघ (यु एस एस आर) के साथ भारत के घनिष्ठ सम्बन्ध थे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आर एस एस को संरक्षण देने वाला कोई नहीं था।

१९९१ के बाद अर्थार्त राजीव गाँधी की हत्या और सोवियत संघ के टूटने के बाद, भारत ने इस्राइल को स्वीकार कर लिया। अमेरिका से निकटता बढ़ गई और शेष बातें इतिहास का अंश हैं।

भारत में आतंकवाद का अध्यन करने के लिए यह पृष्ठभूमि अत्यन्त भयानक है। आतंकवाद के आधुनिक अवतार भारत में, उसके द्वारा इस्राइल को स्वीकार कर लेने के बाद आयत किए गए। इससे आप भी इनकार नहीं कर सकते।

१९९० का वही दशक, अर्थात नरसिम्हा राव के बाद का दौर, जब मुसलमानों पर अत्याचारों का सिलसिला पुन: तेज़ हो गया था। वास्तव में उस दौर में भारत में अधिक बम धमाके हुए। करकरे इस सच्चाई को सामने ला रहे थे की १९९३ के अतिरिक्त सभी धमाके और आतंकवादी गतिविधियाँ संघ मोसाद के आपसी षड़यंत्र का परिणाम थी। आप उन की पत्नी से जा कर पूछें, अपनी मौत से पहले वह इसका खुलासा मीडिया के सामने करने वाले थे और देश छोड़ कर कहीं बहार चले जाने का इरादा रखते थे।

क्या आप यह नहीं देख रहे हैं की करकरे की मृत्यु पर कोई सरकारी व्यक्तव्य अब तक नहीं आया है और आप ने एक क़दम आगे जाते हुए यह परिणाम मेरे मेल पर भेजा है की यह निर्मल आनंद का "संयोग" था।

तो फिर सच्चाई को कौन तोड़ मरोड़ कर पेश कर रहा है? आज केवल दो प्रकार के हिंदू हैं, एक वह जो आर एस एस और आतंकवाद का समर्थन करते हैं और दूसरे वे जिनकी संख्या अधिक है, जो इसका विरोध करते हैं।

इस्राइल - अमेरिका - आर एस एस का यह खेल १९९१ से चल रहा है की आतंक पैदा करो। मुसलमानों के नाम का प्रयोग करो और अंडरवर्ल्ड के कुछ अपराधियों को "जिहादी" कह कर पुकारो तथा इस प्रकार सभी मुसलमानों को बदनाम करो। आर एस एस - अमेरिका - इस्राइल का यह गठजोड़ केवल मुसलामानों को परेशान करने के लिए नहीं है। वह "मुस्लिम आतंकवाद" के नाम पर मुसलमानों को डरा कर भारत को अस्थिर करना चाहते हैं। अब आप यह पूछेंगे की आर एस एस आख़िर भारत को अस्थिर करना क्यूँ चाहेगा? क्यूँ नहीं? फासीवादी भगवान में या मानव द्वारा बनाये गए राज्य में विश्वास नहीं रखते। क्यूँ आर एस एस का उद्देश्य "अखंड भारत" का निर्माण करना है। उसे कहीं भी खड़ा किया जा सकता है, गुजरात या महाराष्ट्र के किनारे पर भी। फासीवाद के दृष्टिकोण पर ध्यान दें। राज्य की सीमा वहीँ तक होती है जहाँ तक उन की सत्ता होती है। वह उस भारत की बिल्कुल परवाह नहीं करते जिसकी स्थापना १९४७ में हुई थी। वह उसे भारत नहीं मानते। उस के मस्तिष्क में एक काल्पनिक भारत की रूपरेखा मौजूद है। जिस की सीमा फिलस्तीन तक मिली हुई हों। इस लिए आप देख सकते हैं की स्थानीय भाषा में, काल्पनिक चित्र हमें घटया और बटवारे की राजनीती तक ले जाते हैं। यह इतिहास की भाषा का नियम है।

अंत में, आपके विचार में १८५७ पर आधारित मेरी पुस्तक को क्यूँ दबा दिया गया।

अपने पिछले लेख, में मैंने यह दिखाने का प्रयास किया था की इस्राइल के बाहर रहने वाले यहूदी जिन्हें "सियांमस" कहते हैं, वह मोसाद की सहायता करने के लिए उतारू हैं और अपने इस कार्य में जान भी दे सकते हैं।

कोई भी बुद्धिमान इस संभावना से इनकार नहीं कर सकता की नरीमन हाउस में रहने वाले रब्बी और उनकी पत्नी भी "सियांमस" थे।

मैंने बहुत से प्रमाण प्रस्तुत किए हैं। क्या आप जानते हैं की करकरे को ९ एम् एम् बुल्लेट से मारा गया था? अब आप मुझ से मेरे माध्यमों की बात पूछेंगे, जिस के बारे में स्पष्ट है की मैं आपको नहीं बता सकता। परन्तु ९ एम् एम् की गोलियाँ पुलिस सर्विस रेवोल्वेर में होती हैं, न की ऐ के ४७ में। अब आप मेरी बात समझ गए?

फिलहाल RAWऔर गृह मंत्रालय में शिवराज पाटिल के विरोधी पदाधिकारिगन करकरे की हत्या से सन्दर्भ में गुजरात ऐ टी एस की भूमिका की छानबीन कर रहे हैं, कया आप अब भी नहीं समझ पाये?

एक और पक्का प्रमाण:

नरीमन हाउस के बाहर खड़े हो कर सी एन बी सी न्यूज़ के साथ एक टेलीफोनिक इंटरव्यू में, फ्रीलांस जर्नलिस्ट अरुण अस्थाना ने बताया की ऐसी भी सूचनाएँ प्राप्त हुईं हैं की कुछ आतंकवादी हमला करने से पहले नरीमन हाउस के निकट गेस्ट हाउस में १५ दिनों तक ठहरे थे। अस्थाना ने यह भी बताया की "उन के पास भारी मात्रा में गोला बारूद, हथ्यार और खाने की सामग्री थी।"

अब दूसरी रिपोर्टों से भी यह बात स्पष्ट हो चुकी है की नरीमन हाउस में रहने वालों ने भी भारी मात्रा में खाने की सामग्री का आर्डर दिया था। यह खाना ३०-४० व्यक्तियों के लिए कई दिनों के लिए काफ़ी था। इतनी मात्रा में खाना क्यूँ मंगवाया गया? और अंत तक नरीमन हाउस पर हमला क्यूँ नहीं किया गया? मुंबई में रहने वाला एक गुजरती हिंदू सी एन एन आई बी एन टी वी पर प्रात: ३.३० या इस के आस पास आया और उस ने बताया की दो माह से नरीमन हाउस में संदिग्ध गतिविधियाँ जारी थी। बहुत से विदेशी इस में आते जाते रहे। यह बात पुलिस को भी बताई गई थी परन्तु किसी ने भी कोई कार्यवाही नहीं की।

सी एन एन आई बी एन ने इस समाचार को दोबारा नहीं चलाया, इस के पश्चात जब मुंबई के आम लोगों ने नरीमन हाउस पर धावा बोलने की धमकी दी तब जा कर एन एस जी कमांडोस अन्दर घुसे। यदि नरीमन हाउस के अन्दर केवल दो आतंकवादी ही छुपे हुए थे तो फिर उस पर धावा बोलने में इतना विलंब क्यूँ किया गया?

यह सरकार का गहरा षड़यंत्र है और कुछ नहीं। नरीमन हाउस के पूर्ण मामले पर जांच अत्याव्यशक है।

इस के बाद यह रिपोर्ट आई की "कुछ हद तक आश्चर्य की बात है की मुंबई के कामा हॉस्पिटल में उपस्थित आतंकवादी धाराप्रवाह मराठी बोल रहे हैं।" एक मराठी दैनिक "महाराष्ट्र टाईम्स" ने भी यह रिपोर्ट प्रकाशित की है की वह आतंकवादी जो कामा हॉस्पिटल में फायरिंग कर रहे थे उन्होंने ने सिविल ड्रेस में तैनात अस्पताल के एक कर्मचारी से मराठी में बात की थी।

इस समाचारपत्र के अनुसार जिन आतंकवादियों ने ऐ टी एस चीफ हेमंत करकरे, डिप्टी पुलिस कमिश्नर अशोक काम्टे और इनकाउन्टर स्पेशलिस्ट विजय सालसकर को निशाना बनाया, वह धाराप्रवाह मराठी बोल रहे थे।

इस समाचार पात्र का यह भी दावा है की युनिफोर्म पहने दो वाचमेन और अन्य लोगों पर गोलियाँ चलाने वाले आतंकवादियों ने बन्दूक की नोक पर उन से मराठी भाषा में पूछा की, " क्या तुम लोग यहाँ पर कर्मचारी हो?" उन कर्मचारियों में से एक ने आतंकवादियों का पैर पकड़ कर उन से कहा की "मैं यहाँ पर काम नहीं करता हूँ। मेरी पत्नी को दिल का दौरा पड़ा है और मैं उसे यहाँ भरती कराने आया हूँ।"

आतंकवादियों ने उससे एक बार फिर मराठी में पूछा की "तुम सच बोल रहे हो या झूठ?" कर्मचारी ने उत्तर दिया की "नहीं, भगवान की कसम मैं सत्य बोल रहा हूँ" , इस पर आतंकवादी ने उसे छोड़ दिया।

एक दूसरी रिपोर्ट यह बताती है की मुंबई के यहूदी, जो विस्थापित हो कर इस्राइल जा चुके हैं, वह भी धाराप्रवाह मराठी बोलते हैं तथा वह इस बात के लिए प्रसिद्द हैं की उन्हें मोसाद ने नियुक्त कर रखा है।

हेमंत करकरे की मृत्यु एक पहेली बनी हुई है। सभी सरकारी बयान एक दूसरे के विपरीत हैं। कुछ का कहना है की उन्हें सी एस टी के पास मारा गया, कुछ कहते हैं की उन की मृत्यु कामा हॉस्पिटल के पास हुई, कुछ मेट्रो सिनेमा के पास बताते हैं और कुछ का तो यह भी कहना है की उन्हें उस समय मारा गया जब वह पुलिस जीप में सवार थे। परन्तु उन्हें गोली कहाँ पर लगी? कुछ कहते हैं गर्दन पर और कुछ लोग ह्रदय के निकट बताते हैं। करकरे को एक टी वी पर बुल्लेटप्रूफ जैकेट पहेंते हुए दिखाया गया। ऐसी स्थिति में गोली उनकी गर्दन पर नहीं लगनी चाहिए थी, जबकि कोई स्नाइपर (छुप कर गोली चलाने वाला ) उन की प्रतीक्षा न कर रहा हो।

और अगर गोली उन के ह्रदय के निकट लगी तो फिर उन्होंने अपना यह जैकेट कब उतारा? किसी ने भी इस प्रशन का उत्तर देने का कष्ट नहीं किया। एक अन्य दृष्टीकोण भी उभर कर सामने आरहा है की करकरे को कामा के पास मारा गया परन्तु काम्टे और सालसकर की क्रित्यु मेट्रो (सिनेमा) के पास गोली बारी में हुई।

अब यह बातें स्पष्ट हो रही हैं:

१- बहुत से लोग गोरे रहे होंगे।

२- क्या वे अंतर्राष्ट्रीय खरीदे गए गुलाम थे? यदि हाँ, तो फिर किस देश के थे? किस ने उन्हें इकठ्ठा किया? यह बात सब को पता है की मोसाद और सी आई ऐ के पास ऐसे गुलामों के कई संघटन हैं, उन्हीं में से एक तथाकथित जिहादी भी हैं। वह जिहाद करते हैं और उन मुसलमानों को भ्रमित करते हैं जो विश्व की इस्लामोफोबिया से प्रभावित नहीं हुए हैं। सम्भव है की मुंबई में भी उन्हीं में से कुछ को प्रयोग किया गया हो परन्तु उन लोगों के पास अमेरिका, ब्रिटेन,मोरिशिअस तथा मलेसिया के पासपोर्ट क्यूँ थे?

३- वह कौन से मराठी थे जिन्होंने ने करकरे की हत्या कर दी? कामा हॉस्पिटल के पास का मार्ग पूर्ण रूप से सुनसान रहता है. यह सीधे मुंबई सी आई डी हेड्कोर्टर के पिछले द्वार तक जाता है. पुलिस के अज्ञात सूत्रों से पता चला है की करकरे को वहां पर करकरे विरोधी उस टीम द्वारा लाया गया था जो मुंबई पुलिस के हिंदुत्व समर्थक अधिकारी हैं और उन के साथ छोटा राजन के लोग भी सम्मिलित थे. करकरे, छोटा राजन के विरोधी थे. सालसकर भी प्रदीप शर्मा के विरोधी थे जो की मुंबई के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के पद पर थे और छोटा राजन के शूटर के रूप में कार्य करने के कारण अब जेल में हैं। इस लिए मराठी बोलने वाले आतंकवादी कुछ ऐसे यहूदी हो सकते हैं जिनका मुंबई से सम्बन्ध रहा हो या फिर हिंदुत्व ब्रिगेड के भाड़े के हत्यारे या छोटा राजन के आदमी हो सकते हैं।

४- ऐसा लगता है की कई चीज़ें एक साथ घटित हुईं. २६ नवम्बर की रात में ९.३० बजे जब मुंबई पर हमला हुआ तो उस समय महाराष्ट्र के मुख्या मंत्री विलासराव देशमुख (जो अब हटा दिए गए हैं) केरल में थे. उसके बाद ११ बजे देशमुख गृहमंत्री शिवराज पाटिल (यह भी हटा दिए गए हैं) को इस समाचार की सूचना दी. और पाटिल ने एन एस जी कामान्डोसको भेजने की तैयारी आरम्भ कर दी थी. इस का अर्थ यह हुआ की ११ बजे तक देशमुख को पता चल चुका था की क्या कुछ हो रहा है. फिर ऐसे में ९.३० से लेकर प्रात: एक बजे के बीच विभिन्न स्थानों पर मुंबई पुलिस को तैनात क्यूँ नहीं किया गया था? येही वह समय था जब करकरे उन स्थानों पर पहुँचते हैं. मुंबई ऐ टी एस एक प्रथक संस्था है, यह मुंबई पुलिस के अधीन नहीं है अर्थात ११ बजे से १ बजे के बीच मुंबई पुलिस के सशक्त ४० हज़ार जवान दृश्य से बिल्कुल गायब थे और तभी करकरे वहां पहुँचते हैं तथा अपने साथियों के साथ मौत का शिकार हो जाते हैं। क्या यहाँ पर कोई खिचडी नहीं पाक रही है? स्पष्ट है की ११ बजे से १ बजे के बीच मुंबई पुलिस को जान बूझ कर अलग रखा गया, ऐसे समय में जब की आतंकवादी पूरी ताकत के साथ लोगों को मारने में लगे हुए थे, तभी करकरे को वहां जाने के लिए कहा गया होगा और वह वहाँ गए यह समझ कर की वहाँ पर मुंबई पुलिस के लोग तैनात होंगे। परन्तु वहां कोई नहीं था केवल एक दो पुलिस कर्मी ! और फिर उन्हें मार दिया गया!

अमरेश मिश्रा

4 comments:

Anonymous said...

So disappointing that someone like Aziz Burney is giving a platform to useless conspiracy theories. As a rationalist Hindu, this is the worst thing I find in Muslims - their love for conspiracy thoeries, a self-denial mode, a refusal to believe that there could be bad Muslims, a refusal to introspect and reform themselves.

And now so-called intelligentsia of Indian Muslims like Aziz Burney is joining the bandwagon. Nice, so only RSS and Hindus are terorists, Muslims are all good. Thanks. I believe you. I'd try hard to remain a rationalist and now get pushed into RSS' lap.

Haider Khan said...

http://ibnlive.in.com/news/bajrang-dal-workers-trained-in-bombmaking-cops/76590-3.html

(at the end of the news post there is a table with BD-RSS activites)

My ques is if these people are trained in making bombs and die making bombs in incidents as late as 06 - THEN WHERE THE HELL ARE THESE BOMBS PLANTED???

Haider Khan said...

English Translation

http://translate.google.com/translate?u=http%3A%2F%2Fazizburney.blogspot.com%2F2008%2F12%2Fraw.html&hl=en&ie=UTF-8&sl=hi&tl=en

expiredream(aslansary) said...

INSHAALLAHA...
one day these bloody drama will release to the world.
it's Director,Producer and other Activeters will be deface as MALEGAON BLAST.the MUMBAI CARNAGE WAS ONLY FOR PREVENTING THE HANDS OF ATS'S CHIEF.