Wednesday, December 24, 2008


शहादत तो शहादत है उस पर सवाल कैसा
मगर सच्चाई का सामने आना भी राष्ट्र के हित में है
भारत के इतिहास में यह पहला अवसर है जब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है, हिंदू भी, मुस्लमान भी और अन्य देशवासी भी। मुंबई में आतंकवादियों के हमले के तुंरत बाद पहले गेट वे ऑफ़ इंडिया और फिर देश के दूसरे शहरों में भारतीय जनता ने जिस एकजुटता का प्रदर्शन किया, वह आतंकवादियों के मुहँ पर भरपूर तमांचा है। शायद आतंकवादियों का बम धमाकों के द्वारा मकसद था की भारत को गृहयुद्ध का शिकार बना दिया जाए, हिंदू और मुस्लमान एक दूसरे के खिलाफ मोर्चेबंदी पर मजबूर हों और इस प्रकार उन के नापाक इरादे पूरे हो जाएँ। उन्हें यह दृश्य देख कर अवश्य ही मायूसी हुई होगी की उन का मकसद पूरा नहीं हुआ और साथ ही देश के राजनीतिज्ञों ने भी यह भली भांति समझ लिया होगा की भारतीय जनता का यह प्रदर्शन उन के लिए भी किसी सबक से कम नहीं है। क्यूंकि वह अब न उनके पारंपरिक बयान सुनना चाहते हैं और न किसी तरह की सफाई में उन की रूचि है। यहाँ तक की सहायता स्वरुप दी जाने वाली धनराशि में भी पीडितों को कोई रूचि नहीं है। लेकिन यह तस्वीर का एक रुख है। अब नज़र डालिए तस्वीर के दूसरे रुख पर।
भारत ही नहीं शायद विश्व इतिहास में ऐसा पहला अवसर है जब किसी देश की संसद सत्तारूढ़ पार्टी, विपक्ष और अन्य राजनितिक दल सब के सब किसी एक आतंकवादी के बयान पर एक जुट हैं।
हमारे देश भारत की अखंडता पर हमला करने वाले आतंकवादियों में से जिंदा पकड़े जाने वाले एक अजमल आमिर कसाब नामक आतंकवादी का बयान पुलिस के माध्यम से मीडिया और सरकार तक पहुँचा है, उस बयान पर मीडिया खास तौर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तो अपने अपने अंदाज़ में उस की पब्लिसिटी कर ही रहा है, मगर हैरान करने वाली बात यह है की हमारी सरकार और दूसरी सभी पार्टियों ने भी बिना किसी विलंब के इस बयान को इतना प्रमाणित मान लिया मानो येही अन्तिम सत्य है और इस बयान को जारी करने वाला कोई आतंकवादी या अपराधी नहीं, कोई ऐसा विश्वसनीय और सत्यप्रिय व्यक्ति है जिस की ज़बान से निकलने वाला एक एक शब्द हमारे लिए स्वीकार्य है, न तो इस में संदेह की गुंजाईश है और न किसी अन्य जांच की। हाँ! अगर इस जांच के नाम पर कुछ बातें सामने आजाती हैं तो वे भी वहीँ हैं जो उस के बयान को सही साबित कर सकती हों।
ऐसी बात न तो उस आतंकवादी ने कही जिस से परदे के पीछे की घटनाओं को समझा जा सके और न ही हमारी पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने उन तमाम सबूतों पर नज़र डाली जो चारों तरफ़ बिखरे पड़े हैं। हम अपने इसी लेख की १०० वीं किस्त में ऐसे बहुत से सबूतों को सामने लाने वाले हैं, जिस की एक झलक आज की इस किस्त में भी पाठकों की सेवा में प्रस्तुत की जा रही है। लेकिन पहले ज़रा एक नज़र राजनेताओं के रवैये पर।
विपक्षी सांसदों का रवैया तो समझ में आता है, इस लिए की आमिर कसाब का बयान तो उन के लिए बड़े संतोष की बात है। हेमंत करकरे मालेगाँव बम धमाकों के बाद अपनी और अपनी टीम की जांच द्वारा आतंकवाद के जिस नेटवर्क को बेनकाब कर रहे थे उस के घेरे में भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार के लोग भी आने लगे थे। अत: उन की समझ में आगया था की अगर यह आग उन के दामन तक पहुँची तो वे और उन के हिंदू राष्ट्र के सपने सहित सारी राजनितिक योजनायें अर्थात सब कुछ ख़ाक में मिल जायेंगी, येही कारण था की इन रहस्योद्घतनों के बाद उन्होंने हेमंत करकरे के खिलाफ हर स्तर पर मोर्चेबंदी शुरू कर दी थी। न केवल यह की उनके खिलाफ हर तरफ़ से ज़हर उगला जा रहा था, बल्कि उन्हें जान से मारने की धमकियाँ तक मिल रही थीं, जिस का ज़िक्र उन्हों ने अपनी ज़िन्दगी में ही किया था, जो अधिकान्क्ष अखबारों में छपा और रोजनामा राष्ट्रीय सहारा ने भी इन घटनाओं को सामने रखा। कुछ छोटी राजनितिक पार्टियों की यह मजबूरी हो सकती है की वे अपने दोनों हाथों में लड्डू रखना चाहती हैं, आज वह कांग्रेस के साथ हैं, इस लिए की कांग्रेस सत्ता में है। कल अगर कांग्रेस के स्थान पर वह पार्टी सत्ता में आजाये जो विपक्ष में है तो फिर उन्हें उस के दरवाज़े पर भी दस्तक देने की आव्यशकता हो सकती है। आज उस के विरुद्ध आवाज़ उठाने के बजाये खामोशी ही बेहतर है। परन्तु अब प्रशन यह उठता है की कांग्रेस के सामने ऐसी क्या मजबूरी थी की वह एक आतंकवादी के बयान पर अडिग रहने और रखने के लिए दृढ़संकल्प है। केन्द्र सरकार में केंद्रीय मंत्री अब्दुर रहमान अंतुले ने शहीद हेमंत करकरे की मौत के कारण जानने की बात कह दी तो इस में इस कदर तूफ़ान खड़ा करने का क्या कारण था? हाँ यदि अडवाणी एंड पार्टी में भूकंप आजाये, संघ परिवार सकते की स्थिति में पहुँच जाए, शिव सेना चीखने चिल्लाने लगे, यह बात तो समझ में आती है क्यूंकि यह सब वही लोग हैं जिन्हें हेमंत करकरे बेनकाब कर रहे थे और जिन के लिए अजमल आमिर कसाब का बयान किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है। परन्तु कांग्रेस के लिए तो अब्दुर रहमान अंतुले द्वारा उठाई गई आवाज़ राहत पहुँचा रही है। जो लोग कांग्रेस की भूमिका को भारतीय जनता पार्टी के साथ जोड़कर देखने लगे थे और जिन्हें एक तरह से कांग्रेस भी भगवा रंग में रंगी नज़र आने लगी थी, उस से छुटकारा दिलाने का कम किया, ऐ आर अंतुले ने। अत: कांगेस को तो अपने केंद्रीय मंत्री का आभारी होना चाहिए था। बहर हाल इस और अभी चिंतन की गुंजाईश बाकी है। क्यूंकि कांग्रेस ने अभी कोई आखिरी फ़ैसला नहीं किया है। सम्भव है की उसे यह ख्याल आजाये की हेमंत करकरे की शहादत के पीछे अगर कोई और भी कहानी है तो इस प्रशन को उठाकर श्री अंतुले ने ठीक ही किया इसलिए की उन के द्वारा उठाया गया यह प्रशन भारत की जनता के दिलों में भी है। हाँ बस उन्होंने इस सवाल को जुबां देदी है। अन्यथा रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में तो इस घटना के तुंरत बाद से ही प्रशन उठता रहा है और मैंने ख़ुद मुंबई पहुँच कर चप्पे चप्पे का निरिक्षण किया। जहाँ जहाँ भी आतंकवादी हमले हुए या जिस जगह भी आतंकवादियों के कदम पड़े, ख़ुद वहां पहुँच कर सभी जगह का गहराई से जायज़ा लिया ताकि सत्य को समझा जा सके।
हमारे विश्लेषण में बहुत से ऐसी बातें हैं जिस तरफ़ न तो पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने ध्यान दिया और न ही अजमल आमिर कसाब के बयान में इन बातों का उल्लेख किया गया। इन में से कुछ आज पाठकों की सेवा में पेश कर रहे हैं। शेष १०० वीं किस्त में।
*मुंबई में आतंकवादी हमले से पूर्व नरीमन हाउस में रहने वालों ने १०० किलो मास और अन्य खाने पीने की वस्तुएं मंगायीं। एक ही समय में इस्तेमाल किया जाए तो लगभग ५०० लोगों के लिए यह खाना पर्याप्त था। अगर ५० लोग दोनों समय यह खाना खाएं तो तब भी कम से कम पाँच दिन तक यह खाना चल सकता है। इतने खाने का आर्डर किस ने दिया और क्यूँ? अगर वहां रहने वालों की संख्या केवल ५ थी तो यह खाना किस के लिए मंगाया गया? आतंकवादी मछवारों की बस्ती बुधवार पार्क तक रबर की नाओ से पहुंचे। उस के बाद अलग अलग टुकडों में बट कर होटल ताज, ओबेरॉय और सी एस टी पहुंचे। हमने अजमल आमिर कसाब की फोटो के साथ साथ बुधवार पार्क (समुद्र के किनारे मछवारों की बस्ती) के उस स्थान की फोटो भी पाठकों के सामने प्रस्तुत की ताकि समझा जा सके की अगर यह आतंकवादी उसी रास्ते से आए थे और सीधे उपरोक्त स्थानों पर पहुंचे तो उनके जूते कीचड में सने हुए क्यूँ नहीं? उन के कपडों पर पानी और कीचड के निशान नहीं? ऐसा तो नहीं है की पेहले यह आतंकवादी नरीमन हाउस पहुंचे हों (उसी दिन या पहले कभी) और फिर वहां से तैयार हो कर योजनाबद्ध तरीके से हमला करने के लिए निकले हों। नरीमन हाउस के आस पास रहने वालों का बयान भी है की कुछ संदिग्ध चेहरे यहाँ कई रोज़ से नज़र आरहे थे। पुलिस ने उन पड़ोसियों में से किसी का भी बयान अभी तक सार्वजनिक क्यूँ नहीं किया? घटना की रात यानि २६ और २७ नवम्बर की मध्यरात्री नरीमन हाउस के निकट रहने वाले एक आदमी ने एक टी वी चैनल पर बताया था की पिछले कुछ दिनों से नरीमन हाउस में आने जाने वालों की गतिविधियाँ बढ़ गई थी, जिन में गोरे अर्थात अँगरेज़ दिखने वाले लोग शामिल थे, बाद में यह ख़बर कभी नहीं दिखायी गई। इस प्रकार एक सूचना के अनुसार उसी रात अर्थात २६ और २७ की मध्यरात्री एक आतंकवादी से तेलेफोनिक कांफ्रेंस द्वारा वाशिंगटन, न्यूयार्क और इस्राइल लगभग ५ घंटों तक बातचीत होती रही। यह बात क्या थी? पुलिस और खुफिया एजेंसियों की पकड़ में क्यूँ नहीं आई?
*होटल ताज और ओबेरॉय के सी सी टी वी कैमरों का फूटेज कहाँ है? इनमें आतकवादियों के चेहरे सुरक्षित होने चाहिए। क्या वह मारे गए ९ आतंकवादियों और एक जिंदा बचे आतंकवादी से मिलते हैं?
*हेमंत करकरे, विजय सलस्कर और अशोक काम्टे के मोबाइल फ़ोन कहाँ हैं? घटना के कुछ घंटों पूर्व तक किस किस ने उन्हें फोन किए, कितनी कितनी देर बात हुई? यह जानकारी ज़रूरी है।
*एक ख़बर यह भी है की हेमंत करकरे की मौत की ख़बर पहुँचने के बाद नरीमन हाउस में खुशियाँ मनाई गई। यह खुशियाँ मनाने वाले कौन थे? अगर आतंकवादी थे तो हेमंत करकरे की मौत से उन्हें खुशी क्यूँ? क्या वह इसी टास्क के लिए आए थे? और अगर खुशी मनाने वाले वह यहूदी थे जो नरीमन हाउस में रहते थे तो उन की खुशी मनाने की वजह? उनकी हेमंत करकरे से क्या दुश्मनी थी? हम पूरा विवरण अपने इसी लेख की १०० वीं किस्त में विस्तृत रूप से प्रकाशित करने का इरादा रखते हैं। परन्तु प्रशन सिर्फ़ इतने ही नहीं हैं। टी वी पर यह फूटेज बार बार दिखाया गया की हेमंत करकरे आतंकवादियों के पीछे जाने से पहले हेलमेट पहन रहे हैं। बुल्लेट प्रूफ़ जैकेट पहन रहे हैं, क्या इसी तरह की तयारी की विडियो ग्राफी अन्य अधिकारीयों की भी की गई थी? अगर हाँ तो वह कहाँ है? और अगर नहीं तो सिर्फ़ हेमंत करकरे की ही क्यूँ? कहीं इस लिए तो नहीं की हमने एनकाउंटर बटला हाउस में मोहन चंद शर्मा के मामले में बुल्लेट प्रूफ़ जैकेट न पहेन्ने का सवाल उठाया था।
*सी एस टी स्टेशन पर आतंकवादियों के दो फोटो जो पुलिस के द्वारा जारी की गई उन में से कसाब अकेला है और दूसरे फोटो में उस का साथी भी मौजूद है। दोनों फोटो में आतंकवादियों के अतिरिक्त कोई चीज़ फ्रेम में नहीं है, न तो यात्रियों का छूटा सामन और न ही भाग दौड़ में पैरों से निकल जाने वाले जूते चप्पल। यहाँ तक की फर्श पर कोई भी ऐसी चीज़ नज़र नहीं आरही है जो आमतौर पर दिन भर के प्रयोग के बाद नज़र आसकती है। जैसे अखबार, पानी की खाली बोतलें इत्यादि। फोटो अगर किसी फोटोग्राफर ने ली तो उस ने क्या देखा? उसे अभी तक सार्वजनिक क्यूँ नहीं किया गया? दोनों फोटो अगर सी सी टी वि द्वारा li गई तो इस अवसर की अन्य फोटो कहाँ हैं? इस लिए की सी सी टी वी में एक या दो फोटो ही नहीं होते बल्कि कांतिनुइटी में आगे पीछे की फोटो भी होती हैं, वह फोटो कहाँ हैं? कोई फोटो तो ऐसी होगी जिस में यह आतंकवादी गोलियाँ चलाते हुए दिखायी दें और वहां घायल लोग और आतंकवादी एक साथ नज़र आयेंगे।
प्रशन और भी बहुत हैं परन्तु आज जगह इससे अधिक नहीं दी जा सकती इस लिए आपको प्रतीक्षा करनी होगी, इस लेख की १०० वीं कड़ी की। सम्भव है इस दिन यह लेख एक दो पृष्ठों पर न हो कर १०० पृष्ठों पर आधारित हो और एक इतिहासिक दस्तावेज़ के रूप में इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए की आप उसे संभाल कर रख सकें अर्थात आलमी सहारा के रूप में। जहाँ तक तिथि का सम्बन्ध है तो हम चाहते हैं की हेमंत करकरे की शहादत के ४० वें दिन यह मुख्य अंक मंज़र आम पर आए। आज के बाद हम इस मुख्य अंक के बारे में समय समय पर जानकारी देते रहेंगे मगर एक अन्तिम प्रशन अभी आपके विचार के लिए छोड़ना चाहते हैं, पिछली रात्रि को १० बजे टी वी चैनल "आज तक" पर एक विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, जिसमें करकरे के साथ शहीद होने वाले विजय सलस्कर के जीवन के अन्तिम ८ मिनट की विडियो फ़िल्म प्रसारित की गई, क्या ऐसी ही फ़िल्म अशोक काम्टे और हेमंत करकरे के जीवन के अन्तिम समय की भी बनाई गई है? यदि नहीं तो केवल एक ही शहीद की विडियो फ़िल्म बनाने का कारण........? और इससे सम्बंधित एक महत्तवपूर्ण जानकारी यह भी की विजय सालस्कर को सभी गोलियाँ पीठ पर लगी, उनके पीछे तो हेमंत करकरे और उनके पीछे चार कांस्टेबल बैठे हुए थे, क्या जीवित बचा कांस्टेबल यह बता पायेगा की यह किस प्रकार सम्भव हुआ?
नोट: आज की इस ९९ वीं कड़ी में हम रोजनामा राष्ट्रीय सहारा में प्रकाशित २५ अक्तूबर से २५ नवम्बर तक की घटनाएं सिलसिलेवार अपने पाठकों की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं और १०० वीं कड़ी में हम २६ नवम्बर से २६ दिसम्बर तक की घटनाएं प्रस्तुत करेंगे ताकि जब आप भी इन कड़ियों को जोडें तो घटनाओं की पूरी तसवीरें आपके मस्तिष्क में सुरक्षित हो जाए।
मालेगाँव धमाका जांच
रोजनामा राष्ट्रीय सहारा देश में हो रहे आतंकवादी हमलों के पीछे बजरंग दल व शिवसेना सरीखे संघटनों के लिप्त होने की ओर इशारा करता रहा है। जब नांदेड, जालना और परभनी की एक मस्जिद में धमाका हुआ था, उस समय भी हम ने बजरंग दल की संदिग्ध गतिविधियों की ओर इशारा किया था, तब नांदेड में बजरंग दल के सदस्य के घर से नकली दाढ़ी और टोपी के साथ अरबी भाषा में कुछ लेख भी मिले थे, परन्तु इस दिशा में कोई कार्यवाही नहीं की गई। अंतत: उस समय वास्तविकता सामने आगई जब मुंबई ऐ टी एस ने २३ अक्टोबर २००८ को धमाकों में प्रयोग हुई साध्वी प्रज्ञा सिंह की मोटर साइकिल बरामद की और हिंदू संघटनों के विरुद्ध जांच आरम्भ कर दी। जांच के बाद हिंदू संघटनों और सेना के महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के चेहरे सामने आए।



आपकी सेवा में प्रस्तुत है ऐ टी एस की इस दिशा में की गई अब तक की जांच पर एक नज़र:-
ऐ टी एस की तथ्यों पर आधारित रिपोर्ट के अनुसार पहली बार हिंदू संघटनों के लिप्त होने की बात सामने आई। प्राथमिक जांच में ऐ टी एस ने ५ लोगों को गिरफ्तार किया जिन में साध्वी प्रज्ञा सिंह का भी नाम था। इसी दिन राज्य सभा सी पी एम् की नेता ब्रुन्दकारत ने हिंदू संघटनों की बात की थी। बाद में उन में से दो को छोड़ दिया गया।
इसी दिन कांग्रेस ने बजरंग दल, आर आर एस के साथ साथ बी जे पी तक का हाथ मालेगाँव धमाके में होने का संदेह प्रकट किया था।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ३२ दिन पूर्व
२५ अक्टूबर: ऐ टी एस ने इन में से तीन आरोपियों को नासिक कोर्ट में पेश किया। साध्वी प्रज्ञा, श्याम लाल भंवर और शिव नारायण को न्यायालय में पेश किया गया।
इसी तिथि को ऐ टी एस ने एक सनसनी खेज़ रहस्योद्घाटन करके ३ लोगों को गिरफ्तार किया जो पूर्व सैनिक थे। इसी दिन एन सी पी कार्यकर्ताओं ने मुंबई में वी एह पी के कार्यालय पर हमला किया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ३१ दिन पूर्व
२६ अक्टूबर: समाचार के अनुसार ऐ टी एस की टीम जांच के लिए भोपाल गई और दो पूर्व सेना अधिकारीयों से पूछताछ की गई।
इसी दिन भारतीय जनशक्ति पार्टी की अध्यक्ष उमा भरती ने कहा की प्रज्ञा किसी भी हिंसक मामले में संलिप्त नहीं हो सकती क्यूंकि वह एक साध्वी है और साध्वी केवल पूजा पाठ और शान्ति की बात करती है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ३० दिन पूर्व
२७ अक्टूबर: जबलपुर में साध्वी के घर की तलाशी ली गई और ऐ टी एस ने महत्त्वपूर्ण प्रमाण एकत्रित किए।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २८ दिन पूर्व
२९ अक्टूबर: प्रज्ञा के भाई ने मानवाधिकार कमीशन और मुंबई हाई कोर्ट में एक स्वतंत्र जांच कमीशन की मांग की और इसके साथ अन्य हिंदू संस्थायें भी खड़ी दिखाई दीं।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २७ दिन पूर्व
३० अक्टूबर: इधर भाजपा हिंदू संस्थाओं के नाम आने पर बोखला गई और खुले आम आरोपियों के बचाव में खड़ी हो गई। भाजपा अध्यक्ष राज नाथ सिंह ने मीडिया पर निशाना साधते हुए कहा की "मीडिया इस पूरे मामले को आरुशी मर्डर केस की भाँती प्रस्तुत कर रहा है" और प्रज्ञा के बचाव में कहा की जो लोग साँस्कृतिक राष्ट्रीयता पर विश्वास रखते हैं वे आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हो ही नहीं सकते। उन्होंने ने ऐ टी एस के नार्को टेस्ट पर प्रशनचिंह लगाया और कहा की किसी भयानक आतंकवादी को भी इस प्रकार से प्रताडित नहीं किया जाता, किंतु ऐ टी एस प्रमुख हेमंत करकरे ने सभी आरोपियों पर मकोका लगा दिया। इसी बीच हिंदू महासभा ने कर्नल पुरोहीत और अन्य आरोपियों को कानूनी सहायता देने का एलान किया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २५ दिन पूर्व
१ नवम्बर: साध्वी के ब्रेन मेपिंग टेस्ट में ऐ टी एस साध्वी से कुछ भी उगलवाने में नाकाम रही। यह टेस्ट नागपाडा पुलिस अस्पताल में इसी सप्ताह किया गया और इस के पश्चात पुलिस ने दूसरे फोरेंसिक टेस्ट की तयारी आरम्भ कर दी।
इसी दिन ख़बर आई की समीर कुलकर्णी को ऐ टी एस ने मालेगाँव धमाके के आरोपियों के रूप में पहले ही गिरफ्तार कर लिया है। समीर कुलकर्णी भोपाल की एक प्रिंटिंग प्रेस में कार्य करता था। पुलिस के अनुसार ३५ वर्षीया कुलकर्णी अभिनव भारत के संस्थापक सदस्यों में से था।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २४ दिन पूर्व
२ नवम्बर: भोंसला मिलेट्री स्कूल के प्रिंसिपल को गिरफ्तार कर उससे पूछताछ की गई। इसी तिथि को बाल ठाकरे ने भाजपा की इस बात के लिए आलोचना की की वह साध्वी का बचाव नहीं कर रही है और इस से हिंदू समाज की मानहानि हो रही है।
भाजपा और शिव सेना ने विभिन्न स्थानों से उच्च स्तर के अधिवक्ताओं को एकत्रित करके नासिक कोर्ट के समक्ष धरना दिया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २२ दिन पूर्व
४ नवम्बर: ऐ टी एस के अनुसार आरोपी प्रज्ञा सिंह ने स्वीकार किया की उसी ने अपनी मोटर साइकल कथित आरोपी रामजी जिसने बम रखा था को दी थी, किंतु साथ ही उस ने यह भी बताया की उसे इस के इस्तेमाल के सम्बन्ध में पता नहीं था की रामजी का इसकी मोटर साइकल को लेकर क्या Intention था, यह LML (Freedom) मॉडल की बाइक थी।
इसी दिन साध्वी के सम्बन्ध में कठोर रवैये से पलटते हुए भाजपा ने उसे कानूनी सहायता देने का एलान किया। इससे पूर्व भाजपा ने साध्वी के सम्बन्ध में कठोर रवैया अपनाया हुआ था। इसी तिथि को जांच एजेन्सी ऐ टी एस ने मालेगाँव धमाके के ८ आरोपियों पर मकोका लगाने का निर्णय लिया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २१ दिन पूर्व
५ नवम्बर: मुंबई ऐ टी एस ने आरोपी लेफ्टनेंट पुरोहीत को गिरफ्तार करके जांच करने की तैयारीआरम्भ कर दी एवं इसी तिथि को साध्वी पर भी मकोका लगाने की तयारी भी प्रारम्भ कर दी गई।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २० दिन पूर्व
६ नवम्बर: कर्नल पुरोहीत को गिरफ्तार किया गया। पुलिस को उस के मोबाइल से दूसरे संदिग्ध आरोपियों को किए गए कुछ एस एम् एस मिले, जो कोड वर्ड में किए गए थे। जिन में "कैट इस आउट ऑफ़ दी बास्केट"। दूसरा "सिंह हेस संग" इस के अतिरिक्त "वी आर ऑन दी राडार ऑफ़ दी ऐ टी एस", "चेंज दी सिम कार्ड" यह वह एस एम् एस जो कर्नल प्रोहित के मोबाइल से रिताइर्ड मेजर रमेश उपाध्याय को भेजा गया था इससे पूर्व पुलिस उपाध्याय को इस मामले में गिरफ्तार कर चुकी थी और इस को १५ नवम्बर तक पुलिस रिमांड पर ले लिया गया था।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १९ दिन पूर्व
७ नवम्बर: ऐ टी एस के अनुसार कर्नल प्रोहित ने स्वीकार किया की वे मालेगाँव धमाकों का मास्टर माइंड था। इस के साथ साथ उस ने यह भी स्वीकार किया की उसने धमाके का षड़यंत्र रचा था और २९ सितम्बर के लिए धमाका करने की सामग्री फौज से मुहैया करायी थी और हथ्यार भी मुहैया कराये थे और यह सभी सामान अभिनव भारत के सदस्यों के हवाले की थी।
इसी तिथि को आर्मी डिप्टी चीफ लेफ्तानेंत जनरल ने बयान दिया की कर्नल प्रोहित की गिरफ्तारी से सेना के सम्मान को ठेस पहुँची है। इसी तिथि को तोगडिया ने अभिनव भारत की आलोचना भी की।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १८ दिन पूर्व
८ नवम्बर: कर्नल पुरोहीत से सम्बंधित मुंबई ऐ टी एस ने दो और सेना अधिकारीयों से पूछताछ की। साथ ही ऐ टी एस ने यह भी बताया की कर्नल पुरोहीत पर मकोका लगाया जा सकता है। इसी तिथि में प्रमाण के सामने आने के बाद संघ परिवार ने कर्नल पुरोहीत और दूसरे गिरफ्तार आरोपियों से किसी प्रकार का सम्बन्ध होने से इंकार किया जबकि इससे पूर्व वह धमाका करने वाले आरोपियों का खुल कर समर्थन करते आरहे थे।
इसी तिथि को कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया की भाजपा सेना का भगवाकरण कर रही है। यह बयान अभिषेक मनु सिंघवी ने दिया।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १७ दिन पूर्व
९ नवम्बर: ऐ टी एस का बयान आया की ऐ टी एस ३ वी एह पि नेताओं, जो गुजरात से सम्बन्ध रखते हैं उन के बारे में जांच करना चाहती है क्यूंकि इन तीनों का सम्बन्ध समीर कुलकर्णी से है जो अभिनव भारत का बुनयादी कार्यकर्ता है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १६ दिन पूर्व
१० नवम्बर: ऐ टी एस ने एक और सनसनीखेज़ रहस्योद्घाटन करते हुए कहा की कर्नल पुरोहीत का हाथ परभनी, जालना और नांदेड धमाकों में है। ऐ टी एस के सामने यह बात कर्नल पुरोहीत के नार्को टेस्ट के दौरान आई।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १५ दिन पूर्व
११ नवम्बर: गोरखपुर के एम् पी योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस पर आरोप लगाया की वह हिंदू संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को झूठे केसों में फंसा रही है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १४ दिन पूर्व
१२ नवम्बर: केन्द्र ने सभी राज्य सरकारों से बजरंग दल से सम्बंधित एक विस्तृत रिपोर्ट मांगी। केन्द्र का मन्ना था की बजरंग दल के कार्यकर्ता विभिन्न सांप्रदायिक दंगों में लिप्त हो सकते हैं।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से १३ दिन पूर्व
१३ नवम्बर: हरियाणा पुलिस ने मालेगाँव के तार समझौता एक्सप्रेस बम धमाके से जुड़े होने की बात कही और सम्बंधित पुलिस अधिकारीयों को पूछताछ हेतु मुंबई भेजा।


मुंबई पर आतंकवादी हमले से १२ दिन पूर्व


१४ नवम्बर: ऐ टी एस ने नासिक कोर्ट में रहस्योद्घाटन किया की महंत दयानंद पाण्डेय ने पुरोहित को आर डी एक्स सप्लाई करने को कहा


दयानंद पाण्डेय कानपूर ब्लास्ट में भी संदिग्ध - ऐ टी एस
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ११ दिन पूर्व
१५ नवम्बर: राजनाथ सिंह ने इस पूरे मामले को “एक बड़ा षड़यंत्र” करार दिया। उन्होंने कहा की “ मैं पूर्णत: संतुष्ट हूँ की साध्वी आदि इस षड़यंत्र में लिप्त नहीं हैं”।


पुरोहीत ने समझौता एक्सप्रेस धमाके के लिए आर डी एक्स सप्लाई किया - ऐ टी एस
नासिक कोर्ट में पुरोहीत ने ऐ टी एस के द्वारा किसी भी प्रकार से प्रताडित किए जाने के आरोप को खारिज कर दिया।लालू ने अडवाणी को “टेरर मास्क” कहा
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ९ दिन पूर्व
१७ नवम्बर: मालेगाँव धमाके के तार अजमेर शरीफ और मक्का मस्जिद बम धमाके से जुड़े हैं - ऐ टी एस
इसी तिथि को प्रज्ञा ठाकुर ने मुंबई ऐ टी एस के द्वारा उसे प्रताडित करने से सम्बंधित शपथ पत्र दायर किया।
मुम्बई पर आतंकवादी हमले से ८ दिन पूर्व
१८ नवम्बर: मालेगाँव धमाकों की जांच से सम्बंधित बात करने के लिए विपक्षी दल के नेता एल के अडवाणी ने प्रधान मंत्री से भेंट की।इसी तिथि को अडवाणी और राजनाथ सिंह ने ऐ टी एस पर आरोप लगाया की ऐ टी एस और कांग्रेस में सांठ गाँठ है और वह अव्यसायिक ढंग से जांच कर रही है।
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ६ दिन पूर्व
२० नवम्बर: ऐ टी एस ने मालेगाँव आरोपियों पर मकोका लगाया। साध्वी प्रज्ञा की मोटर साइकिल खरीदने वाला व्यक्ति २००७ में मारा गया– ऐ टी एस
मुंबई पर आतंकवादी हमले से ५ दिन पूर्व
२१ नवम्बर: मोदी ने कांग्रेस पर आरोप लगाया की वह वोट बैंक की राजनीती कर रही है।“पाकिस्तान जो कार्य २० वर्ष में नहीं कर सका वह भारत सरकार (कांग्रेस) ने २० दिन में कर दिखाया।” मोदी
मुंबई पर आतंकवादी हमले से २ दिन पूर्व
२४ नवम्बर: प्रोहित ने सी बी आई को बयां दिया की “वी एह पी नेता अभिनव भारत की स्थापना में आगे आगे थे। उन्होंने ने कहा की आर एस एस नेता इन्द्रेश कुमार ने पाकिस्तान की संस्था आई एस आई से ३ करोड़ रूपये लिए। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने मालेगाँव धमाके के लिए प्रोहित को इस का क्रेडिट लेने से इंकार किया और कहा, “ उनके लोगों ने” यह धमाका किया है न की अभिनव भारत ने।”दयानंद पाण्डेय ने स्वीकार किया की उस ने आर डी एक्स उपलब्ध कराया था। इसी तिथि को मकोका अदालत ने साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहीत और दयानंद पाण्डेय का ऐ टी एस द्वारा रिमांड की अवधि में वृद्धि की मांग को रद्द कर दिया था क्यूंकि इन तीनों ने ऐ टी एस पर प्रताडित करने का आरोप लगाया था।इसी दिन पुलिस कंट्रोल रूम में सायं ५।२० पर करकरे की हत्या करने का धमकी भरा फ़ोन आया था जिस का खुलासा उपायुक्त पुलिस राजेंद्र सोनवाने ने एक बयान में किया था। यह फ़ोन कॉल सहकार नगर के एक पी सी ओ, जिस का नंबर २४२३१३७५ है, से आई थी.मुंबई पर आतंकवादी हमले से १ दिन पूर्व २५ नवम्बर: मकोका न्यायालय ने ऐ टी एस से प्रताडित करने के आरोपों पर जवाब माँगा। महाराष्ट्र ऐ टी एस ने मानवाधिकार के राष्ट्रीय आयोग ने प्रताड़ना के आरोपों पर सफाई पेश करने को कहा।कर्नल प्रोहित ने स्वीकार किया की उस ने इस वर्ष आर एस एस प्रमुख सुदर्शन से जबलपुर में भेंट की और आर एस एस नेता इन्द्रेश कुमार के रोल की शिकायत की।


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