Sunday, December 14, 2008


कसाब नाव से उतरा, पानी और कीचड से गुज़रा, स्टेशन पहुँचा
लेकिन न कीचड जूतों पर और न भीगने के निशान पैंट पर
"अजमल आमिर कसाब हमारी पुलिस के लिए बड़ी काम की चीज़ सिद्ध हो रहा है। एक तो उस की याददाश्त बहुत अच्छी है जो पुलिस के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रही है। उसे पूरी कहानी जुबानी याद है। कौन कौन लोग उस के साथ थे, वे सब कहाँ के रहने वाले थे, उन के पते क्या क्या थे, कब-कब, कहाँ-कहाँ, किस-किस को, किस-किस ने, किस-किस प्रकार की ट्रेनिंग दी, उसे सब याद है, जगहें भी और लोग भी। साथ ही वो पुलिस के लिए इतना को- ओपरेटिव भी है की पुलिस के प्रत्येक प्रशन का खुशी-खुशी उत्तर देने के लिए हर समय तैयार रहता है।यह पहला पैराग्राफ था मेरे उस लेख का जो मैंने अपने दिल्ली कार्यालय में बैठ कर १० दिसम्बर को लिखा था। अर्थात आपकी नज़र से गुज़रा ब्र्हुस्पतिवार, ११ दिसम्बर को। उस के बाद ब्र्हुस्पतिवार और शुक्रवार को मुझे नहीं लिखना था इसलिए मैंने अपने पाठकों की सेवा में यह प्रस्तुत किया था की मेरे इस जारी लेख की आगामी कड़ी उनके सामने होगी रविवार १४ दिसम्बर को। कारण था की सम्पूर्ण दास्ताँ मैं दिल्ली में बैठ कर नहीं लिखना चाहता था। मुझे लगा की आवयशक है की मैं मुंबई में घटना स्थल पर पहुँच कर प्रत्येक जगह का निरिक्षण करूँ, जहाँ जहाँ भी आतंकवादी कार्यवाही हुई थी। इस लिए शुक्रवार मेरे और मुंबई टीम के लिए अत्यन्त व्यस्तता का दिन था। हम लोग ऐसे प्रत्येक स्थान पर गए जहाँ जहाँ भी आतंकवादी हमले हुए थे और प्रत्येक चीज़ का ध्यानपूर्वक निरिक्षण करने का प्रयास किया।अतएवं आज बात आरम्भ करते हैं इस स्थान से जहाँ अजमल आमिर कसाब अपने सहकर्मी आतंकवादियों के साथ रबड़ की नाव से मुंबई पहुँचा। उस स्थान का नाम है बुधवार पार्क, यहाँ से सड़क पर आकर उस ने टैक्सी पकड़ी, टैक्सी से वह सी एस टी स्टेशन पहुँचा। हमारे पास अपने वाहन थे। परन्तु हम कई बातों को गहराई से समझना चाहते थे इसलिए हम ने तय किया की हमारी एक टीम जिस में दो लोग होंगे वह टैक्सी द्वारा ही सी एस टी स्टेशन पहुंचेंगे। हम आठ लोग (स्पष्ट रहे की उस स्थान तक पहुँचने वाले आतंकवादियों की संख्या भी आठ ही थी। क्यूंकि दो आतंकवादी जो होटल ओबेरॉय पहुंचे वह दूसरे पॉइंट से गए थे जिस का उल्लेख हम बाद में करेंगे) हम लोग उसी स्थान पर खड़े हो कर टैक्सी की प्रतीक्षा करने लगे। लग भाग १२ मिनट तक कोई टैक्सी वाला नहीं रुका इस लिए की सभी में यात्री पहले से ही बैठे हुए थे। इस बीच १५ से अधिक टेक्सियाँ हमारे सामने से गुजरीं जिन्हें रोकने का प्रयास किया गया परन्तु उन में पहले से ही कोई न कोई व्यक्ति बैठा था, काफ़ी प्रयास के बाद एक टेक्सी रुकी, जिस में हमारे साथी जावेद जमालुद्दीन और उन के साथ स्थानीय रिपोर्टर शराफत खान जो की उस दिन अर्थात २६ नवम्बर को उस समय सी एस टी स्टेशन के निकट ही थे, जब यह घटना हुई, स्वर हुए। टैक्सी द्वारा उन लोगों को स्टेशन पहुँचने में १४ मिनट का समय लगा। लगभग इतना ही समय अजमल आमिर कसाब और उसके साथी इस्माइल को भी लगा होगा। उस के बाद क्या हुआ यह २६ नवम्बर से आज तक आप लगातार पढ़ते चले आरहे हैं और इस विवरण को एक मात्र जीवित बचे आतंकवादी अजमल आमिर कसाब ने अपने शब्दों में बयान किया। हम उस का पूरा बयान आप की सेवा में प्रस्तुत करेंगे परन्तु अभी नहीं। आज मैं केवल एक बात पर आप सब का ध्यान केंद्रित करना चाहता हूँ इस लिए आज का लेख अत्यन्त छोटा होगा ताकि आप का पूरा ध्यान उस चित्र में पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के वस्त्रों और मुख्य रूप से उस के जूतों पर केंद्रित रहे। आप को याद होगा हम ने इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा का भी केवल एक फोटो द्वारा ही ऑपेरशन बटला हाउस के पूरे सत्य को सामने लाने का प्रयास किया था और आज फिर एक बार येही प्रयास दोहरा रहे हैं। आज भी केवल हम एक फोटो द्वारा ही अपनी जांच आरम्भ करेंगे।ध्यान से देखें इस फोटो को, इस में कसाब के जूते बिल्कुल साफ़ हैं। उस ने जो कार्गो पेंट पहनी हुई है वह भी सफ़ेद या बहोत ही हलके रंग की है, उस पर न तो कीचड लगी है न पानी से भीगे होने के निशान हैं, न जूते कीचड में सने हैं जबकि वह नाव के सहारे बुधवार पार्क पंहुचा जिस का फोटो हमने ऊपर दिया है। आप देख सकते हैं की नाव से उतर कर सड़क तक पहुँचने से पहले आतंकवादियों को जिस मार्ग से गुज़रना था, वह अत्यन्त कीचड भरा और गन्दा है। जबकि सी एस टी स्टेशन पर ऐ के ४७ लेकर खड़ा आतंकवादी कसाब जो कपड़े पहने हुए हैं उन पर गन्दगी की एक छींट भी नहीं दिख रही है और न ही उस के आस पास की धरती पर जहाँ वह कुछ कदम जो अवश्य चला होगा और यह भी अत्यन्त आश्चर्यजनिक है की उस के जूते के सोल पर भी कीचड बिल्कुल नहीं है। यह कैसे सम्भव हुआ? क्या कसाब पहले कहीं और गया था? वहां उस ने वस्त्र बदले, जूते बदले और तैयार होकर फिर स्टेशन पहुँचा? अगर ऐसा है तो वह स्थान कौनसा था? ले जाने वाले कौन थे? अभी तक इस का उल्लेख क्यूँ नहीं? और अगर वह सीधे वहां पहुंचे तो उस के जूतों पर कीचड क्यूँ नहीं थी? पैंट के निचले भाग पर पानी का निशान क्यूँ नहीं? स्पष्ट है की केवल आधे घंटे में इतने मोटे कपड़े की कार्गो पैंट सूख तो नहीं सकती। सोचें फिर हमें बताएं की आपकी राय क्या है। यह सिलसिला जारी रहेगा परन्तु प्रत्येक दिन प्रत्येक प्रशन पर आपकी राय भी आवयशक है, चाहे वह ई-मेल द्वारा हो, एस एम् एस या फैक्स द्वारा। आज के लिए बस इतना ही। कल फिर आपकी सेवा में उपस्थित होंगे कुछ नए प्रशनों के साथ।

2 comments:

Haider Khan said...

great point...

the cargo looks like completely new ..he must have changed it

http://www.boston.com/bigpicture/2008/11/mumbai_under_attack.html

Haider Khan said...

look pic no5 on the boton page