Tuesday, December 2, 2008

करकरे के बाद भी क्या बेनकाब हो पाएंगे सफ़ेद पोश दहशत गर्द?

मुंबई पर आतंकवादी हमले के बाद गृह मंत्री शिवराज पाटिल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम् के नारायणन के त्यागपत्र ग़लत समय पर उठाये गए सही क़दम हैं। यह दोनों त्याग पात्र ओपेराशन बटला हाउस के बाद पुलिस की कार्यशैली पर उठाये गए प्रशनों के पश्चात् आने चाहिए थे। उडीसा, मध्यप्रदेश और कर्णाटक में ईसाइयों और गिरजाघरों पर हमले के बाद आने चाहिए थे। जयपुर, अहमदाबाद, मालेगओं, दिल्ली और गुवाहाटी में हुए बम धमाकों के बाद आने चाहिए थे। भैंसा ( आँध्रप्रदेश), धुलिया (महाराष्ट्र), में सांप्रदायिक दंगे और वाटोली (आदिलाबाद) में एक फौजी के परिवार के सभी ६ व्यक्तियों को जिंदा जला दिए जाने के बाद आने चाहिए थे। इस में कोई संदेह नहीं की मुंबई पर आतंकवादी हमला इतनी बड़ी घटना है जिस के लिए गृह मंत्री शिवराज पाटिल और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को त्याग पात्र देदेना चाहिए था। परन्तु पिछली तमाम असफलताओं के बावजूद शिवराज पाटिल और एम् के नारायणन के अपने पदों पर रहते हुए ही मुंबई ऐ टी एस प्रमुख हेमंत करकरे और उन की टीम ने मालेगओं धमाकों की जांच के दौरान कुछ ऐसे रहस्योद्घाटन किए जिन से स्पष्ट हो गया था की सांप्रदायिक राजनीतिज्ञों की छत्रछाया में कुछ साधू और साध्वियों के भगवा चोलों के पीछे आतंकवाद का खेल खेला जा रहा था। खतरनाक योजनायें तैयार हो रही थी। यहाँ तक की आतंकवाद के यह खतरनाक कीटाणु इस भगवा ब्रिगेड के गंदे मानसिकता के कारन भारतीय सेना तक पहुँच गए थे। लेफ्टनेंट कर्नल प्रोहित और भूतपूर्व सेना अधिकारी उपाध्याय को गिरफ्तार किया जा चुका था। हेमंत करकरे मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों की भेंट न चढ़े होते तो शायद आतंकवाद के इस पूरे नेटवर्क को बेनकाब कर देते। परन्तु साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर हिरासत के दौरान हुई प्रताड़ना का बहाना बना कर विपक्ष के नेता लाल कृष्ण अडवानी का प्रधान मंत्री से मिलना और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एम् के नारायणन का सफाई पेश करने के लिए लाल कृष्ण अडवानी के घर तक जाना दो ऐसी घटनाएं थी जिन्होंने इस बात का इशारा कर दिया था की अब संभवत: केन्द्र सरकार को मालेगाँव बम धमाकों के सिलसिले में चल रही ऐ टी एस की जांच पर रोक लगाने को मजबूर होना पड़े परन्तु यह सोच से परे की बात थी की जांच के प्रमुख हेमंत करकरे को एक आतंकवादी हमले में मौत के घाट उतार दिया जायेगा! क्या मोहन चंद शर्मा और हेमंत करकरे एक जैसी दुर्घटनाओं के शिकार हुए हैं। क्या आतंकवादी अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। मुंबई पर आतंकवादी हमलों में लिप्त होने का पहला आरोप दक्कन मुजाहिदीन पर आया बल्कि यह कहना ज़्यादा उचित होगा की सबसे पहले यह ज़िम्मेदारी दक्कन मुजाहिदीन ने स्वीकार की लेकिन यह नाम सामने आते ही मीडिया और बुद्धिजीवियों ने प्रशन करदिया की क्या एक अनजान संघटन जिसका सम्बन्ध केवल और केवल हैदराबाद दक्षिण तक नज़र आता है वह इतना बड़ा और भयानक हमला करसकती है तब जाकर इस मामले में पाकिस्तान के शामिल होने की बात कही जाने लगी। हम इस आरोप को न तो रद्द कर रहे हैं और न ही स्वीकार कर रहे हैं। इस आरोप से जुड़े कुछ प्रशन हैं जिनका उल्लेख करना अनिवार्य है। यदि इस के बाद यह हमला पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा किए जाना प्रमाणित हो जाए तो फिर पुलिस का बयान सच्चा और अगर उठने वाले प्रशन, परिस्थितियों और घटनाएं उस के मन घडत कहानी होने की ओर इशारा करें तो फिर निर्णय पाठकों का, हमें कुछ नहीं कहना। इस समय यह सब प्रशन केवल हमारे मस्तिष्क में ही नहीं हैं और भी लोग हैं जो इस दिशा में सोच रहे हैं की ऐ टी एस प्रमुख हेमंत करकरे के नेतृत्व में मालेगाँव बम धमाकों की जांच बहुत से ऐसे रहस्यों का परदा फाश कर रही थी जिस से साधू और संतों के चोले में छुपे आतंकवादी चेहरे बेनकाब हो रहे थे। और अब यह आग संघ परिवार ही नहीं उस की राजनितिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के दामन तक भी पहुँचने लगी थी। इस सन्दर्भ में हमारी जांच और विचार लगातार पाठकों की सेवाओं में पेश किए जाते रहेंगे। इस की पहली कड़ी के रूप में आज हम प्रकाशित कर रहे हैं हेमंत करकरे के अन्तिम संस्कार के समय दिया गया वरिष्ठ अधिकारी जूलियो रिबेरो का बयान।

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