Tuesday, December 22, 2009

क़साब की ज़बान पर हेडली का नाम, सवाल बहुत बड़ा है!

26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमले में लिप्त एक मात्र जीवित पकड़ा गया आतंकवादी अजमल आमिर क़साब झूठा है, मक्कार है, नौटंकी बाज़ है, इत्यादि इत्यादि। यह तमाम बातें सामने आ रही हैं 18 दिसम्बर 2009 शुक्रवार को अदालत में क़साब द्वारा दिए गए हालिया बयान के बाद, जिसमें वह अपने अब तक के सभी बयानों से मुकर गया और पुलिस पर आरोप लगाया कि इससे पहले मैंने जो कुछ कहा था, वह पुलिस की अनुचित ज़्यादतियों के कारण कहा था।

आम धारणा यह है कि क़साब एक चालाक अपराधी है और अब झूठ बोल रहा है। हो सकता है यह आम धारणा ही दुरुस्त हो, मगर इस धारणा से भी एक बात तो स्पष्ट होती ही है कि क़साब झूठा है। क़साब अगर झूठा है तो उसके पहले के बयान को इतना सही मान लेना भी क्या बुद्धिमानीता होगी? एक झूठा व्यक्ति पहली बार झूठ बोले या बाद में झूठ बोले उससे उसका चरित्र तो स्पष्ट होता ही है कि वह विश्वसनीय नहीं है और केवल उसकी बातों पर विश्वास करके ही कोई परिणाम निकाला नहीं जा सकता।

अजमल आमिर क़साब के बयान को सच्चाई की कसोटी पर परखा जाए तो वह उसी समय झूठा साबित हो जाता है, जब उसने पहली बार पुलिस को यह बयान दिया और उसके इसी बयान के आधार पर पुलिस की कार्रवाई आगे बढ़ी। संसद में गृहमंत्री का बयान आतंकवादी अजमल आमिर क़साब के इक़बालिया बयान से बहुत अलग नहीं था।

लेखक ने 26 नवम्बर को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के बाद स्वयं हर उस स्थान पर पहुंच कर सच्चाई को जानने की कोशिश की, जिनका संबंध उन आतंकवादी हमलों से था। ‘बुधवारापीठ’ जहां नाव द्वारा आतंकवादी पहुंचे। ‘लियोपोल्ड केफे’ जहां सबसे पहले फायरिंग की गई। ‘होटल ताज’ जो आतंकवादी हमलों का निशाना बना। ‘सीएसटी स्टेशन’ जहां अजमल आमिर क़साब ने अपने साथी आतंकवादी इस्माईल के साथ मिल कर अंधाधुंध गोलीबारी की। इस रेलवे स्टेशन का वह शौचालय जिसमें जाकर आतंकवादियों ने अपने थैलों से शस्त्र बाहर निकाले। वह रेस्तोरां, जो शौचालय से बाहर आने के बाद सबसे पहले गोलियों का निशाना बना, रेलवे स्टेशन का वह द्वार जहां से आतंकवादी स्टेशन के अंदर दाख़िल हुए होंगे। रेलवे स्टेशन का वह द्वार जो टाइम्स ऑफ़ इण्डिया और कामा अस्पताल वाली गली के सामने खुलता है। कामा अस्पताल के पीछे वाली गली की वह जगह जहां शहीद हेमंत करकरे, अशोक काम्टे और विजय साल्सकर की लाशें पाई गईं। वह झाड़ियां जिनके पीछे आतंकवादियों के छुपे होने की बात कही गई। स्वयं अजमल आमिर क़साब ने स्वीकार किया कि इस्माईल और वह स्वयं उन झाड़ियों के पीछे छुपे थे, जब तीनों अधिकारियों की गाड़ी से उस पर गोलियां चलाई गईं। ‘गिरगाम चोपाटी’ जहां से अजमल आमिर क़साब को जीवित गिरफ़्तार किया गया। ‘होटल ओबराय’ आतंकवादियों का शिकार दूसरा पांच सितारा होटल। ‘नरीमन प्वाइंट’ पर समुद्र का वह तट जहां पर अन्य आतंकवादी नाॅव से उतरने के बाद होटल ओबराय पहुंचे तथा नरीमन हाउस वह जगह जो आरंभ से लेकर अंत तक आतंकवादी गतिविधियों का केन्द्र रहा यानी वह तमाम स्थान, जिन पर लेखक ने स्वयं अपनी टीम के साथ पहुंच कर हर बात को गहराई से समझने की कोशिश की और उसके बाद अपने सिलसिलेवार लेख ‘‘मुसलमानाने हिन्दह्न माज़ी, हाल और मुस्तक़बिल???’’ की कई किस्तों में प्रकाशित किया।

आज ;१९/१२/२००९ के अधिकतर समाचार पत्रों का अध्यन करते समय अजमल आमिर क़साब का वह चित्र एक बार फिर नज़रों से गुज़रा जिसका उल्लेख कर एक राष्ट्रीय दैनिक ने किया कि क़साब के वर्तमान बयान को झूठा सिद्ध करने के लिए यह चित्र ही काफी है। हम पूर्ण रूप से सहमत हैं उस अख़बार के इस विचार से कि अजमल आमिर क़साब के बयान को झूठा सिद्ध करने के लिए यह चित्र ही काफ़ी है मगर एक बार फिर क्षमायाचना के साथ कि क़साब के वर्तमान बयान को ही नहीं पहले बयान को भी झूठा सिद्ध करने के लिए यही एक चित्र काफी है। पाठकों को याद दिलाने के लिए एक बार फिर हम इस चित्र को आजके लेख के साथ प्रकाशित कर रहे हैं और जो बात हमने उसी समय अपनी छान-बीन की बुनियाद पर, कही थी उसे फिर दोहरा रहे हैं कि यह संभव ही नहीं है कि अजमल आमिर क़साब का पहला बयान भी सच्चा हो। क़साब झूठ बोल सकता है, यह चित्र झूठ नहीं बोल सकता। हमने स्वयं बुधवारापीठ जाकर उस स्थान को देखा है, जहां नाव द्वारा क़साब पहुंचा था। पानी के रास्ते नाव से पहुंचने के बाद सड़क पर आकर टैक्सी पकड़ने तक लगभग एक हज़ार गज़ का कीचड़ भरा रास्ता क़साब और इस्माईल को पैदल ही पार करना पड़ा होगा। यह किस तरह संभव है कि उसकी कारगो पैंट और जूतों पर न तो पानी के निशान हों, न कीचड़ के दाग़ जबकि उसके बयान के अनुसार वह बुधवारापीठ पर नाव से उतरने के बाद सीधे इस्माईल के साथ टैक्सी पकड़ कर सीएसटी स्टेशन पहुंचा। हमने कामा अस्पताल के पीछे वाली गली की वह झाड़ियां भी स्वयं जाकर देखी हैं दरअसल वह झाड़ियां नहीं बल्कि कोठियों के सामने आमतौर पर लगाए जाने वाले पेड़-पौधे हैं और जिनको लावारिस जानवरों से बचाने के लिए लोहे के तार से घेर दिया गया है। अगर क़साब और इस्माईल उन्हीं झाड़ियों अर्थात पौधों के पीछे छुपे थे तो यहां से सड़क पर आने के लिए उन्हें तार को छलांग कर ही आना पड़ा होगा। घायल क़साब जो अपनी रायफल उठाने की पोज़िशन में भी नहीं था किस तरह कूद कर बाहर निकला होगा और फिर जांबाज़ पुलिस अधिकारियों और उनके साथ अन्य कांस्टेबल सबके सब निःप्रभाव और अकेला आतंकवादी इस्माईल सभी को गोलियां चलाकर मार डालने में सफल और एक-एक करके गाड़ी से लाशें फैंकने का काम भी उसने किया। अंदर मौजूद कांस्टेबल जाधव को न तो इतना अवसर मिला कि लाशें फैंकने में लगे इस्माईल पर गोलियां चला सके या उसे क़ाबू कर सके और न ही इस्माईल ने इस बात की आवश्यक्ता समझी कि विश्वास कर ले कि उस पुलिस की गाड़ी में कोई जीवित तो नहीं बचा है। इस सिलसिले में और भी विस्तार से बयान करने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है, लेकिन एक बहुत बड़ा प्रश्न जो पिछले शुक्रवार को अजमल आमिर क़साब के ताज़ा बयान के बाद खड़ा हुआ, वह है उसकी ज़बान पर डेविड कोलमैन हेडली का नाम है। सारे मीडिया क़साब की पहुंच से बहुत दूर हैं। टेलीवीज़न वह देख नहीं सकता, अख़बार उसको उपलब्ध नहीं हैं, टेलीफोन पर बातचीत की कोई संभावना नहीं, फिर हेडली का नाम उसकी ज़बान पर कैसे आया? पुलिस हिरासत में पुलिस के सिवा किसी को उससे मिलने का अवसर ही कहां रहा होगा, फिर उसे उसके वकील ने, पुलिस ने बताया या वास्तव में वह जो कुछ बोल रहा है उसका सच्चाई से भी कोई संबंध है? अजमल आमिर क़साब ने कहा कि जिन अमरीकियों ने मुझसे पूछताछ की उसमें हेडली भी शामिल था और अगर एक अन्य वेबसाइट ``That's Hindi'' की मानें तो उसके अनुसार क़साब ने यह भी कहा है कि उसे आतंकवाद का प्रशिक्षण देने वाले 4 अमरीकी थे, जिनमें से एक डेविड हेडली भी था। अगर यह दोनों बातें या दोनों में से कोई एक बात भी सच्चाई के आसपास है तो 26/11 को मुम्बई पर हुए आतंकवादी हमलों के तार किस किस से जुड़े हैं, उसकी जांच अब नए सिरे से करनी होगी। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं? उसका आधार क्या है? इसके कारण क्या हैं, इस पर बात होगी कल। लेकिन आज प्रसिद्ध लेखक व पत्रकार अमरीश मिश्रा का वह एसएमएस जो मुझे गत रात अजमल आमिर क़साब के हालिया बयान के बाद किया गया और साथ ही उनके उस लेख का अंश भी जिसका उल्लेख उन्होंने अपने उस मेसेज में किया है। प्रस्तुत हैः

(एस.एम.एस)

क़साब का ताज़ा बयान इस बात की पुष्टि है, जो मैं और अन्य वरिष्ठ पत्रकार जैसे अज़ीज़ बर्नी २६/११ हमले के बाद कहते थे कि मुम्बई पुलिस जिस व्यक्ति को क़साब के रूप में प्रस्तुत कर रही है वह २६/११ के लिए ज़िम्मेदार आतंकवादी न हो। क़साब ने बयान दिया है कि वह भारत में पर्यटक के रूप में आया था और मुम्बई पुलिस ने उसे २६/११ से २० दिन पूर्व गिरफ़्तार कर लिया था। क़साब ने यह भी कहा था कि मुम्बई पुलिस ने कई स्थानों पर उसके चित्र लिए थे। स्मरण कीजिए कि १ वर्ष पूर्व अज़ीज़ बर्नी ने मुम्बई पुलिस द्वारा जारी किए गए चित्र जिसमें क़साब तथा एक अन्य आतंकवादी को सीएसटी स्टेशन पर दिखाया था वह फ़र्ज़ी (Doctered) लगती है, लिखा था। इसके अलावा आज क़साब ने हेडली का नाम कैसे ले लिया? क्या ऐसा नहीं है कि उस तक अख़बार इत्यादि की पहुंच नहीं है? हेडली सीआईए का एजेंट है। यह दोबारा मेरे इस दावे को सिद्ध करता है कि २६/११ सीआईए, मूसाद तथा आरएसएस का षड़यंत्र है। आने वाले दिनों में और भी रहस्योद्घाटन होंगे।

(अंश)

मुम्बई आतंकी हमलों में मोसाद का हाथ?

अमरेश मिश्रा

मुम्बई फायरिंग का सिलसिला सर्वप्रथम नरीमन हाउस से आरंभ हुआ, यह मुम्बई की एकमात्र बिल्डिंग है जिसमं यहूदी रहते हैं। नरीमन हाउस के आसपास रहने वाले गुजराती हिन्दुओं ने कुछ टी।वी चैनलों के लाइव प्रोग्राम में यह बात खुलेआम कही कि आतंकवादियों द्वारा सर्वप्रथम फायरिंग नरीमन हाउस से आरंभ हुई तथा पिछले दो वर्षो से इस भवन में संदिग्ध गतिविधियां जारी थीं, जिनका किसी ने भी नोटिस नहीं लिया।.........................................

2 comments:

अज्जु कसाई said...

क़साब के वर्तमान बयान को झूठा सिद्ध करने वाला वह चित्र भी इस पोस्‍ट में लगा दें तो और भी अच्‍छा रहेगा, ताकि जनता उस चित्र में कोई ढोल की पोल निकाल सके, इस आधुनिक युग में सबकुछ मुमकिन है,यह बात तो वह भी जानता होगा सवाल था फिर क्‍यूँ वह ब्‍यान बदल रहा है कोई बच्‍चा नहीं फिर बच्‍चों जैसे बात क्‍यूँ रह रहा है?

कार्तिकेय मिश्र (Kartikeya Mishra) said...

बहुत खूब बरनी साहब,

अब जब पाकिस्तान भी मान चुका है कि इस साजिश को रचने और अंजाम देने का काम उसकी सरजमीं से किया गया है, नूरे-चश्म अजमल के माँ-बाप के साथ उसका पूरा सज़रा खोज निकाला गया है, तब भी आप और आपके अमरेश जी जैसे महान खोजी पत्रकार उन सड़े-गले और सरे-बाजार धज्जियां उड़ चुके अनर्गल तथ्यों को सुरेन्द्र मोहन पाठक स्टाइल में पेश कर साबित क्या करना चाहते हैं, यह मेरे जैसे छोटे आदमी की समझ से बाहर है.. थोड़ी ज्ञानवर्षा करें तो मेरा जीवन भी कृतार्थ हो।

सनसनीखेज पत्रकारिता के व्यापारियों ने तो नील आर्मस्ट्रांग के चन्द्रमा पर पहुँचने से लेकर वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हमले तक को तारक मेहता के उल्टे चश्मे से देखने की पुरजोर कोशिश की है.. लगे रहिये, बहुत जल्द उस जमात में आपका भी नाम इज्जत से लिया जाने लगेगा।

नेक्स्ट इज व्हॉट?सनसनीखेज खुलासा- कसाब पाकिस्तानी नहीं.. पुलिस द्वारा आजमगढ़ से प्रताड़ित करने के लिये उठाया गया एक मासूम नौजवान?

आप लिखते बहुत अच्छा हैं, कभी पल्प फिक्शन में हाथ आजमाइये.. सफलता अवश्य मिलेगी-

शुभकामनायें